“ये लोग कबीर सिंह को हिंसक कहते हैं, मैं उन्हें दिखाऊंगा कि हिंसक फिल्म क्या होती है.” चार साल पहले निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने एक इंटरव्यू में इन शब्दों से अपने आलोचकों को जवाब दिया था. अब यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि संदीप ने वर्ष 2023 में ‘एनिमल’ जैसी फिल्म देकर अपने शब्दों को पूरा किया. रणबीर कपूर की बहुचर्चित ‘एनिमल’ आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है, लेकिन असल में यह फिल्म सिर्फ ये दिखाने की कोशिश है कि एक हिंसक फिल्म क्या होती है.
दरअसल, यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘एनिमल’ में संदीप ने भारतीय फिल्मों को एक अलग मोड़ दिया है, क्योंकि संदीप ने उन्हीं चीजों को हिंदी में बिना किसी रुकावट के दिखाने की कोशिश की है, जो साउथ फिल्मों और खासकर तेलुगु में बेधड़क दिखाई जाती हैं. निश्चित रूप से यह फिल्म कई लोगों को आहत कर सकती है, इसके किरदारों, घटनाओं, रिश्तों, स्त्री-पुरुष समानता पर आपत्ति होगी. इतना ही नहीं, हमें आलोचना सुनने को मिलेंगी कि इससे युवा पीढ़ी में एक अलग संदेश जाएगा. कई लोग यह राग अलापते भी दिख जाएंगे कि इससे समाज बिगड़ सकता है, लेकिन इन सबके बारे में मैं एक बात कहना चाहता हूं कि जैसे कीर्तन से समाज नहीं सुधरता, वैसे ही तमाशा से बिगड़ता भी. संदीप रेड्डी वांगा ने कहा कि अगर आप इसे सिर्फ एक फिल्म के तौर पर देखेंगे तो ‘एनिमल’ आपके पैसे के बदले आपका मनोरंजन करेगी. आप बिना किसी पूर्वाग्रह के और थोड़े कठोर दिल से यह फिल्म देखें. क्योंकि ये फिल्म हर किसी के लिए नहीं है.
जहां तक फिल्म की कहानी की बात है तो यह एक नाज़ुक और उतने ही अजीब पिता-बेटे के रिश्ते की कहानी है, जो रोमांस, कॉमेडी से लेकर रिवेंज ड्रामा तक अलग-अलग मोड़ लेती है. भारत के सबसे अमीर और सम्मानित उद्योगपतियों में से एक बलबीर सिंह पर जानलेवा हमला होता है और बलबीर सिंह के बेटे रणविजय सिंह यह पता लगाने की जिम्मेदारी लेते हैं कि इस हमले के पीछे कौन है. ऊपर से देखने पर यह एक सीधी-सादी कहानी लगती है, लेकिन धीरे-धीरे हमें एहसास होता है कि यह इतनी सरल नहीं है. लगभग 3 घंटे 21 मिनट की इस फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले बेहतरीन नहीं है, फिल्म कुछ जगहों पर थोड़ी फीकी है, लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि संदीप आखिरी मिनट तक सस्पेंस बरकरार रखने में कामयाब रही हैं.
उन्हांने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि इस फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद और चरित्र विकास के साथ बहुत सावधानी से काम किया गया है. हालांकि रणबीर फिल्म का केंद्र बिंदु हैं, लेकिन उनके आसपास के किरदार भी उतने ही मजबूत हैं. इस तथ्य के अलावा कि इस फिल्म ने पिता-पुत्र के इस अजीब रिश्ते को न्याय दिया है, जिस तरह से इस फिल्म में रणबीर और रश्मिका के रिश्ते को उजागर किया गया है, हमारे मन में कई विचार आ सकते हैं. इस प्रेम कहानी के जरिए इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि जब आप किसी को पूरे दिल से प्यार करते हैं तो उस रिश्ते में कोई बाधा नहीं होती, कोई सीमा नहीं होती, बेशक यह बात हर किसी को पचने वाली बात नहीं है. हालांकि फिल्म में पिता-पुत्र के रिश्ते में कुछ सीमाएं होती हैं और संदीप ने इसे अनिल कपूर और रणबीर कपूर के क्लाइमेक्स सीन में बहुत चतुराई से प्रस्तुत किया है.
फिल्म का बाकी संगीत बहुत अलग है. मूल रूप से यह कहानी के अनुरूप है, आपको गाने वहां सुनने को मिलते हैं, जहां उनकी आवश्यकता होती है. हर्षवर्द्धन रामेश्वर का बैकग्राउंड स्कोर भी बेहतरीन है. खासकर उस बैकग्राउंड स्कोर का असली मजा रणबीर और बॉबी देओल के बीच फाइट सीन के दौरान देखा जा सकता है. अमित रॉय की सिनेमैटोग्राफी अद्भुत है. इसके साथ ही फिल्म में एक्शन भी काफी जबरदस्त और हिंसक है. खासतौर पर इंटरवल से पहले का 18 मिनट का एक्शन सीक्वेंस और फिल्म खत्म होने के बाद का पोस्ट-क्रेडिट सीन बेचैन करने वाला है. यह फिल्म बच्चों के लिए नहीं है क्योंकि इसमें कई बोल्ड सीन, किसिंग सीन, गाली-गलौज, खून-खराबा है.
अभिनय के मामले में, बॉबी देओल भी हैं, लेकिन पूरी फिल्म में उनका कोई संवाद नहीं है, बॉबी का किरदार कौन है? उसकी पृष्ठभूमि क्या है? यह सब आपको फिल्म के मध्यांतर के बाद पता चलता है. बॉबी का काम शानदार है. प्रेम चोपड़ा, सुरेश ओबेरॉय, तृप्ति डिमरी और शक्ति कपूर ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है. कहानी में अनिल कपूर का किरदार थोड़ा कमज़ोर लगता है, लेकिन उन्होंने हमेशा की तरह बढ़िया काम किया है. अन्य सह-कलाकारों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है.
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