Wednesday, May 21, 2025
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer
Ritam Digital Hindi
Advertisement Banner
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Legal
    • Business
    • History
    • Viral Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
No Result
View All Result
Ritam Digital Hindi
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Legal
    • Business
    • History
    • Viral Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
No Result
View All Result
Ritam Digital Hindi
No Result
View All Result
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
Home Opinion

4 दिसंबर 1889 महानायक टंट्या भील का बलिदान

कोई कल्पना कर सकता है कि दो हजार सशस्त्र सिपाहियों की अंग्रेजी फौज उनके पीछे सालों पर पड़ी रही लेकिन वे हाथ न आये अंग्रेजों को छकाते रहे न रुके न थके और अंत में अंग्रेजों ने एक चाल चली वे जिसे शक्ति से न पकड़ पाये उसे धोखा देकर पकड़ा

रमेश शर्मा by रमेश शर्मा
Dec 7, 2023, 11:34 am IST
FacebookTwitterWhatsAppTelegram

स्वतंत्रता के जिस शुभ्र प्रकाश में हम आज स्वछंद श्वांस ले रहे हैं। यह साधारण नहीं है । इसके पीछे अगणित हुतात्माओं का बलिदान हुआ है। कुछ को हम जानते हैं, याद करते हैं, गीत गाते हैं लेकिन कितने ऐसे हैं जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते। जिन्हे हम याद तक नहीं करते हैं, जिनका उल्लेख इतिहास के पन्नो पर मिल तो जाता है पर अत्यल्प। ऐसे योद्धा अनगिनत हैं जिन्होंने इस राष्ट्र के लिये, राष्ट्र की संस्कृति के लिये बलिदान दिया और समय की परतों में कहीं खो गये हैं।

वनवासी महानायक टंट्या भील ऐसे ही बलिदानी हैं। जिन्हे अंग्रेजों ने अपराधी कहा और स्वतंत्रता के बाद की आरंभिक पीढ़ियों ने भी वही माना। लेकिन अब सच सामने आ रहा है इतिहास की परतें खुल रहीं हैं, हम उनके बलिदान से अवगत हो रहें हैं और इस वर्ष मध्यप्रदेश सरकार और समाज दोनों स्मरण कर रहे हैं। जिन्होंने अपना जीवन, अपना परिवार ही नहीं पीढ़िया कुर्बान कर दीं। वनवासी नायक टंट्या भील की संघर्ष गाथा से भी परतें उठ रहीं हैं और समाज उनके शौर्य वीरता संकल्पशीलता से अवगत हो रहा है। हालांकि वन अंचलों में उनकी किंवदंतियां हैं।

वे कहानियों में अमर हैं, पर इतिहास के पृष्ठों पर उतना स्थान नहीं, पर्याप्त विवरण भी नहीं। कोई कल्पना कर सकता है कि दो हजार सशस्त्र सिपाहियों की अंग्रेजी फौज उनके पीछे सालों तक पड़ी रही लेकिन वे हाथ न आये अंग्रेजों को छकाते रहे न रुके न थके। और अंत में अंग्रेजों ने एक चाल चली। वे जिसे शक्ति से न पकड़ पाये उसे धोखा देकर पकड़ा। इसके लिये एक ऐसा विश्वासघाती गणपत सामने आया जिसकी पत्नि टंट्या भील को राखी बाँधती थी। टंट्या श्रावण की पूर्णिमा को राखी बंधवाने आये और राखी का यह बंधन उन्हे फाँसी के फंदे पर ले गया।
उनका प्रभाव 1700 गांवो तक था।

वे अंग्रेजों और उनके दलालों के सख्त दुश्मन थे। जब वे किशोर वय के थे तब उन्होंने अंग्रेजी फौज और उनके दलालों का जन सामान्य पर अत्याचार देखा था। वनवासियों और गाँवों में ढाया गया कहर देखा था यह अग्रेजों द्वारा 1857 की क्रान्ति के दमन का दौर था। क्रांति की असफलता के बाद अंग्रेजों ने उन भूमिगत लोगों को ढूंढा था जो भूमिगत हो गये थे। उनकी तलाश में गाँव के गाँव जलाये गये। वनवासियों पर जुल्म ढाकर पूछताछ हुई। यह सब दृश्य टंट्या की आँखो में जीवन भर सजीव रहे। इसलिये उनके निशाने पर अंग्रेजी सिपाही और उनके मददगार व्यापारी और माल गुजार आ गये। उन्होंने वनवासी युवकों की टोली बनाई। वे तात्या टोपे से मिले, मराठों की छापामार युद्ध का तरीका सीखा और अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़ दिया अभियान।

बलिदानी टंट्या मामा का जन्म खंडवा जिले की पंधाना तहसील के अंतर्गत ग्राम बड़दा में हुआ था। उनके पिता भाऊसिंह एक सामान्य कृषक थे। माता का निधन बचपन में हो गया था। एक समय ऐसा भी आया जब पिता भी कुछ दिनों के लिये बंदी बनाये गये। टंट्या का पालन मामा मामी के यहाँ हुआ। उनका शरीर दुबला पतला और लंबा था, उनमें फुर्ती अद्भुत थी। मनोबल इतना कि बिना रुके मीलों दौड़ सकते थे। वनवासियों की भाषा में जो पौधा पतला और लंबा होता है उसे ‘तंटा’ कहते हैं। यही नाम पड़ गया जो आगे चलकर टंट्या हो गया।
उन्होंने बचपन में तीर कमान गोफन चलाना लाठी चलाना बहुत अच्छे से सीख लिया था। आगे चलकर उनका विवाह वनवासी युवती कागज बाई से हो गया संतान भी हुई। आरंभिक जीवन एक सामान्य वनवासी की भांति बीता। वे तीस वर्ष के हो गये। तब दो घटनाएं आसपास घटी। यह वो समय था जब ब्रिटिश सरकार 1857 की क्रान्ति के हुये नुकसान को लगान बढ़ा कर वसूल कर रही थी।

वनोपज और कृषि उपज मानों बंदूक की ताकत से एकत्र की जा रही थी। यह 1872 के आसपास का कालखंड था। प्राकृतिक आपदा आरंभ हुई। जो लगभग छह साल चली। कृषि और वनोपज दोनों घटी। उत्पादन इतना भी नहीं कि किसान अपना परिवार और पशु पाल सके। लेकिन वसूली में कोई कटौती न हो सकी। भय और भूख से बेहाल लोगों का पलायन शुरु हुआ। नौबत भुखमरी तक आ गई। भूख से तड़पते लोग टंट्या से न देखे गये। वह 1876 का वर्ष था और 30 जून की तिथि। टंट्या ने जमीदार से बात की जो अंग्रेजों के कहने पर अनाज कहीं भेजने वाला था। टंट्या के साथ बड़ी संख्या में वनवासी और ग्राम वासियों ने आग्रह किया कि यह अनाज भूख से मरते लोगों की जीवन रक्षा के लिये दे दो। लेकिन जमींदार अंग्रेजी दबाव से मजबूर था बात न बनी। और अंत मे गोदाम पर धावा बोल दिया टंट्या ने जमीदार के लठैत कुछ न कर सके।

इससे अंग्रेज बौखला गये टंट्या के साथ पूरे गाँव और अंचल के लोगों की गिरफ्तारी हुई यह संख्या 80 बताई जाती है। टंट्या बीस अन्य वनवासी साथियों के साथ जेल की दीवार फांद कर भाग निकले। वस यहाँ से उनके और अंग्रेजी सिपाहियों के बीच भागदौड शुरू हुई। पूरा नवांचल और ग्रामीण क्षेत्र टंट्या के साथ कोई पता न बताता। टंट्या की टीम बढ़ती जा रही थी। हर गाँव में उनके साथी होते। टंट्या के दो ही लक्ष्य होते थे। एक जहाँ कहीं अंग्रेज सिपाही दिखते उनपर हमला बोलना और दूसरे अंग्रेजों के दलाल मालगुजारों और जमींदारों के गोदाम लूटकर अनाज जनता के बीच बांटना।

समय के साथ उनका दायरा बढ़ा। संपूर्ण निमाड़ के साथ इससे लगी महाराष्ट्र की सीमा, खानदेश, विदर्भ होशंगाबाद बैतूल के समस्त पर्वतीय क्षेत्र में उनका दबदबा था। इस इलाके में शायद ही कोई ऐसी रेलगाड़ी सुरक्षित निकली हो जिसपर टंटया की टीम ने धावा न बोला हो।
उन्हे पकड़ने के लिये एक तरफ अंग्रेजों ने इनाम घोषित किये दूसरी तरफ दो हजार सिपाहियों की कुमुक ने पीछा शुरू किया।
कहते है टंटया पशु पक्षी की भाषा समझते थे। मिलिट्री मूवमेंट से भयभीत पशु पक्षी के संकेतों से टंट्या उनकी दिशा समझ लेते थे और सावधान हो जाते थे।

हारकर अंग्रेजों ने एक चाल चली । वनेर गाँव में उनकी बहन रहती थी। वे अक्सर राखी पर वहां जाते थे। अंग्रेजों ने पहले बहनोई गुप्त संपर्क किया और इनाम का लालच देकर टंट्या को सिरेन्डर केलिये तैयार करने कहा। टंट्या न माने। अंत मे 1889 को राखी का त्यौहार आया। गणपत ने आग्रह पूर्वक बुलाया। टंट्या अपने बारह साथियों के साथ राखी बंधवाने आये और वहां पहले से वेश बदल कर मौजूद अंग्रेज सिपाहियों के साथ लग गये उनपर लूट डकैती सिपाहियों से मारपीट और हथियार छीनने के कुल 124 मामले दर्ज थे। इन सब के लिये 4 दिसंबर 1889 को फाँसी दे दी गयी। उनपर बहुत अत्याचार हुये कि वे अपने सहयोगियों और साथियों के नाम बता दें। लेकिन टंट्या का मुंह न खुला। यह भी कहा जाता है कि टंट्या के प्राण यातनाओं और भूखा प्यासा रखने मे ही निकल गये थे। फांसी पर उनकी मृत देह को लटकाया गया।

जो हो आज बलिदानी टंट्या भील पूरे वन अंचल में मामा के रूप में जाना जाता है। हर वनवासी महिला चाहती सै कि उसका भाई टंट्या जैसा हो। टंटया जितने प्रसिद्ध वन अंचल की लोक गाथा में है, कहानियों मे किंवदंतियों में है उतने ही इतिहास में कम।

 

Tags: SanatanFARMERFORESTTRIBALRitamNewsEnglishGovTanyaBhil
ShareTweetSendShare

संबंधितसमाचार

Buddhh Purnima 2025
Opinion

Buddha Purnima 2025: महात्मा बुद्ध दया- करूणा और मानवता के पक्षधर

Operation Sindoor
Opinion

Opinion: ऑपरेशन सिंदूर- बदला हुआ भारत, बदला लेना जानता है

ऑपरेशन सिंदूर से आतंक पर प्रहार
Opinion

Opinion: ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्या?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला
Opinion

Opinion: पहलगाम में हिन्‍दुओं की पहचान कर मार दी गईं गोलियां, कौन-सा भारत बना रहे हम

कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर संसद में हंगामा
Opinion

Opinion: मुस्लिम आरक्षण का खेल खेलती कांग्रेस

कमेंट

The comments posted here/below/in the given space are not on behalf of Ritam Digital Media Foundation. The person posting the comment will be in sole ownership of its responsibility. According to the central government's IT rules, obscene or offensive statement made against a person, religion, community or nation is a punishable offense, and legal action would be taken against people who indulge in such activities.

ताज़ा समाचार

स्कूलों में 'शुगर बोर्ड' क्यों है जरूरी?

मोटापा और डायबिटीज की बच्चों में बढ़ती समस्या: स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड’ क्यों है जरूरी?

अवैध बांग्लादेशियों पर लगातार कार्रवाई जारी

अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं पर लगातार कार्रवाई जारी, जानिए कितने घुसपैठियों पर कसा शिकंजा

कभी मंदिर तो कभी हिन्दुओं पर निशाना, मानसिक विक्षिप्तता की आड़ में खतरनाक खेल!

कभी मंदिर तो कभी हिन्दुओं पर निशाना, मानसिक विक्षिप्तता की आड़ में खतरनाक खेल!

पाकिस्तान जासूसों को गिरफ्तार

पाकिस्तानी जासूसों पर भारत का लगातार एक्शन जारी, जानिए पहले कब-कब आए ऐसे मामले

आतंक के समर्थक तुर्की पर भारत का कड़ा प्रहार

आतंक के समर्थक तुर्की पर भारत का कड़ा प्रहार, पर्यटन से व्यापार तक सर्वव्यापी बहिष्कार

'शरिया' बंदिशों में बंधा अफगानिस्तान, जानिए 2021 से अब तक के बड़े प्रतिबंध

‘शरिया’ बंदिशों में बंधा अफगानिस्तान, जानिए 2021 से अब तक के बड़े प्रतिबंध

सामने आई पाकिस्तान की एक और जिहादी साजिश

सोशल मीडिया पर कर्नल सोफिया कुरैशी के घर पर हमले की कहानी झूठी, मामला निकला फर्जी

पाकिस्तान ने भारत के सामने टेके घुटने

पाकिस्तान ने BSF जवान पूर्णिया कुमार को छोड़ा, DGMO की बैठक के बाद हुई रिहाई

बीआर गवई बने भारत के मुख्य न्यायधीश

जस्टिस बीआर गवई बने भारत के 52वें चीफ जस्टिस, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ

हिन्दू पहचान के आधार पर अब तक देश में कहां और कितनी हत्याएं?

हिन्दू पहचान के आधार पर अब तक देश में कहां और कितनी हत्याएं?

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer

© Ritam Digital Media Foundation.

No Result
View All Result
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
  • Politics
  • Opinion
  • Business
  • Entertainment
  • Lifestyle
  • Sports
  • About & Policies
    • About Us
    • Contact Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Disclaimer

© Ritam Digital Media Foundation.