युद्ध के इतिहास में भारत की वीरगाथा विश्वविख्यात है. चाहे वो लड़ाई इस्लामिक आक्रान्ताओं से रही हो या आजादी के बाद कट्टरपंथी दुश्मन देशों से भारत ने हर मोर्चे पर मुहतोड़ जवाब दिया है. 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान की नापाक नजर भारत के बड़े भूभाग जम्मू-कश्मीर पर थी. बंटवारे के बाद वर्ष 1948 में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने की इच्छा से भारतीय क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर हमला कर दिया. 24 दिसंबर 1947 में झांगर गांव पर हमला करके अपना कब्जा जमाने के बाद पाकिस्तान का अगला निशाना जम्मू कश्मीर का नौशेरा सेक्टर था. भारतीय सेना ने सूझभूझ से अग्रिम मोर्चे पर डंटकर पाकिस्तान के साथ इस युद्ध को लड़ा.
‘नौशेरा के शेर’ ने छोटी-छोटी टुकड़ियों में जवानों को किया तैनात
नौशेरा सेक्टर को दुश्मनों से बचाने के लिए भारतीय सेना मुस्तैद थी. सेना की राजपूत बटालियन को इसकी सुरक्षा की कमान सौंपी गई थी. ‘नौशेरा के शेर’ कहे जाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे. भारतीय सेना के वीर जवानों ने ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में अपना मोर्चा संभाला. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 50वीं पैरा ब्रिगेड के कमांडिंग के ऑफिसर थे. उन्होंने स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए नौशेरा के उत्तर-पश्चिम में जवानों की टुकड़ियों को भेजने का फैसला किया. उन्होंने जवानों को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बंटकर मुह तोड़ जवाब देने की स्थिति में तैनात होने का निर्देश दिया. ब्रिगेडियर के निर्देश थे कि वह पाकिस्तानियों को घेरकर हमला करें ताकि वो पीछे भाग जाएं.
लगातार पाकिस्तान के हमले का भारतीय जवान दे रहे थे मुहतोड़ जवाब
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सीमा में नौशेरा से उत्तर में स्थित तानघर टॉप की कमान नायक जदुनाथ सिंह को मिली थी. बिना देर किए नायक जदुनाथ ने जवानों को हमलावरों के हमले का मुहतोड़ जवाब देने के लिए तैनात कर दिया. बारूद और कोहरे के कारण कुछ भी देख पाना इस दौरान असंभव था. नौशेरा में उस दौरान एक गुट ऐसा भी था जिनकी मदद से हमलावर भारतीय पोस्ट में दाखिल होने के लिए अपना रास्ता बनाने में कामयाब रहे. फिर भी नौशेरा पर पाकिस्तान के हमले की तमाम कोशिशे नाकाम साबित हो रही थी. बावजूद इसके पाकिस्तान की ओर से लगातार हमला जारी था.
भारतीय सेना ने 6 फरवरी 1948 में नौशेरा सेक्टर को वापस जीता
1 फरवरी 1948 का दिन था जब पाकिस्तान नौशेरा सेक्टर में औंधेमुह गिरा और भारत की 50 पैरा ब्रिगेड ने अपनी भूमि को वापस जीत लिया. इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान को भयंकर नुसकान भी हुआ. इस युद्ध के 5 दिन बाद यानि 6 फरवरी 1948 को भारतीय सेना ने वीरता की एक मिसाल पेश की. इस दिन तेनधर के युद्ध में भारत ने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा. इस युद्ध में तेनधर टॉप पर अपनी टुकड़ी के साथ अदम्य साहस का परिचय देने वाले नायक जदुनाथ सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बगैर नौशेरा सेक्टर को वापस जीतने में मदद की. लगतार नायक जदुनाथ सिंह पाकिस्तान के हमले का जवाब दे रहे थे. दिनभर चले इस युद्ध में पाकिस्तान की तरफ से लगतार फायरिंग हो रही थी. नौशेरा से उत्तर में स्थित तानघर टॉप पर 29 जवान तैनात थे. शाम तक इनमें से 24 बलिदान हो गए. पाकिस्तान के तीसरे हमले का मुहतोड़ जवाब देते हुए नायक जदुनाथ सिंह ने मशीन गन से मौत की गोलियां बरसनी शुरू कर दी और अंत में पाकिस्तान के हमलावरों को मौत की नींद सुलाकर भारत ने नौशेरा सेक्टर में बड़ी जीत दर्ज की.
ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता भी उनकी प्रसिद्धि बनीं
1947-1948 के भारत-पाक युद्ध के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की बहादुरी और उनकी नेतृत्व की कला अद्भुत थी. वह अपनी रणनीतिक योजना, वीरतापूर्ण कार्यों और विभिन्न सैन्य ऑपरेशनों के दौरान असाधारण कमान के लिए जाने जाते थे.
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