सुप्रीम कोर्ट ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी एक जनहित याचिका पर विचार करने से मना कर दिया. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता अमर हैं और उन्हें न्यायिक आदेश के माध्यम से मान्यता देने की आवश्यकता नहीं है.
इस याचिका में बोस को राष्ट्र पुत्र घोषित करने का निर्देश देने को कहा गया था, साथ ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को कथित तौर पर कमतर करने व उनके लापता होने या मृत्यु के बारे में सच्चाई न बताने के लिए कांग्रेस से माफी की मांग की गई थी.
न्यायाधीश सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, “देश के स्वतंत्रता संग्राम में बोस की भूमिका को स्वीकार करने की घोषणा के लिए न्यायिक आदेश उचित नहीं होगा, क्योंकि यह उनके जैसे नेताजी के कद के अनुकूल नहीं है कि उन्हें अदालत से मान्यता की जरूरत हो. नेताजी जैसे नेता को कौन नहीं जानता? देश में हर कोई उन्हें और उनके योगदान को भलीभांति जानता है, उनके जैसे नेता अमर है.”
दरअसल, यह जनहित याचिका कटक स्थित पिनाक पानी मोहंती ने दायर की थी. उन्होंने अदालत से यह घोषणा करने की मांग की थी कि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सेना यानि आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश शासन से आजादी हासिल की है. इस याचिका में बोस के योगदान को मान्यता देने में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाया गया था, साथ ही कहा गया था कि कांग्रेस ने बोस के लापता होने/मृत्यु से जुड़ी फाइलों को छिपा दिया है. याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार को बोस के जन्मदिन 23 जनवरी को राष्ट्रीय दिवस और नेताजी को राष्ट्र पुत्र घोषित किया जाए.
पीठ ने 1997 के फैसले का हवाला देते हुए मोहंती से कहा कि “आपको बोस के लापता होने या मौत से जुड़े मुद्दे नहीं उठाने चाहिए. इस पर अदालत द्वारा 1997 में पहले ही निपटाया जा चुका है. आपको ऐसे मुद्दों को यहां उठाने से पहले उस फैसले को समझना चाहिए था. यदि आप चाहते हैं कि सरकार कुछ करे, तो आपको उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करना होगा.”
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