अयोध्या: बात 6 मार्च 1983 की है. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था. सम्मेलन के संयोजन हिन्दू जागरण मंच के दिनेश त्यागी थे. उस सम्मेलन में गुलजारी लाल नंदा और रज्जू भैया (प्रो. राजेंद्र सिंह) सरीखे अति महत्वपूर्ण लोग आए थे. वहीं मंच से दाऊदयाल खन्ना ने अयोध्या-काशी-मथुरा की मुक्ति का प्रश्न पहले-पहल उठाया था. देश की आजादी के बाद यह पहली घटना थी, जब किसी सार्वजनिक मंच से यह मुद्दा उठा था.
देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने बताया कि इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर तीनों धार्मिक स्थल मथुरा-काशी-अयोध्या को हिन्दुओं को सौंपने की मांग हुई थी. उस सम्मेलन के बाद भी दाऊदयाल खन्ना इस बात के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अयोध्या का मसला पूरी शक्ति के साथ उठाए. वे रज्जू भैया (प्रो.राजेंद्र सिंह) से अक्सर हर आयोजन में यही बात कहते सुने जाते थे. आखिरकार वे सफल हुए. इसी दिशा में पहला कदम 1984 में उठाया गया. राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्मसंसद का आयोजन हुआ. 8 अप्रैल 1984 को संत समाज के 500 अति महत्वपूर्ण लोग वहां एकत्र हुए. इस सम्मेलन के पीछे विश्व हिन्दू परिषद थी.
दरअसल, अयोध्या से दो हजार किलोमीटर दूर वर्ष 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में धर्म-परिवर्तन की घटना सम्मेलन के केंद्र में थी. यहां चार सौ परिवारों ने सामूहिक रूप से इस्लाम कबूल कर लिया था. इनमें ज्यादातर पिछड़ी जाति के हिंदू थे. हिन्दू नेताओं ने इस घटना को देश में बढ़ते इस्लामिक खतरे के रूप में देखा था. अशोक सिंघल के प्रयास से दिल्ली में ‘विराट हिन्दू समाज’ बना था, जिसका पहला सम्मेलन दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ था. उन्हीं दिनों दाऊदयाल खन्ना के जीवन में बड़ा परिवर्तन आया. तब तक वे कांग्रेस पार्टी के नेता था. उस वक्त मुसलमानों की देखभाल के लिए कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता नमाज स्थल पर कैंप लगाया करते थे. मुरादाबाद में ऐसा ही कैंप लगा था, जिसका इंतजाम कांग्रेस के दाऊदयाल खन्ना कर रहे थे. एक बार नमाज स्थल पर सुअर के घुस जाने की अफवाह फैल गई और उपद्रव के हालात पैदा हो गए. कुछेक मुस्लिम उपद्रवी तत्वों ने खन्ना और दूसरे कांग्रेसियों पर हमला कर दिया. इस घटना की जानकारी देने के लिए खन्ना दिल्ली पहुंचे. लेकिन, खन्ना को कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दरबार से निराश होकर लौटना पड़ा था.
इस घटना के बाद उनका कांग्रेस पार्टी से मोह भंग हो गया. स्मरण रहे कि पहली धर्मसंसद (अप्रैल 1984) में प्रस्ताव पारित होने के बाद राम जन्मभूमि यज्ञ समिति बनी थी. दाऊदयाल खन्ना को समिति का महामंत्री बनाया गया था. इसके बाद सीता माता की जन्मस्थली बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक की रथयात्रा निकाली गई थी, जिसका नेतृत्व स्वयं दाऊदयाल खन्ना कर रहे थे.
उन्होंने बताया कि वैसे तो दाऊदयाल खन्ना उत्तर प्रदेश की तीसरी विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे. उन्होंने मुरादाबाद जिले की कांठ सीट से चुनाव जीता था. वह प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके थे. लेकिन, अनुभव के आधार पर कांग्रेस पार्टी की राजनीति से स्वयं को अलग कर लिया और धीरे-धीरे विहिप के नजदीक आ गए. फिर राम मंदिर आंदोलन के अगुवा लोगों में गिने जाने लगे.
साभाार- हिन्दुस्थान समाचार
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