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अर्थव्यवस्था का आधार बन रहे आस्था व अध्यात्म

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ज्यों-ज्यों करीब आ रही है, वहां के अभ्युदय, आख्यान, आस्था और अध्यात्म के साथ-साथ आह्लाद और अर्थात पर चातुर्दिक चर्चाएं तेज हो गई हैं. 2024 की जनवरी और विक्रम संवत 2080 का पुनीत पौष और फाल्गुन माह अयोध्या के दृष्टिकोण से सामाजिक चिंतन और राजनीतिक विचार-विमर्श का केंद्र बिंदु बन चुका है.

प्रदीप मिश्र by प्रदीप मिश्र
Jan 10, 2024, 05:36 pm IST
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अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ज्यों-ज्यों करीब आ रही है, वहां के अभ्युदय, आख्यान, आस्था और अध्यात्म के साथ-साथ आह्लाद और अर्थात पर चातुर्दिक चर्चाएं तेज हो गई हैं. 2024 की जनवरी और विक्रम संवत 2080 का पुनीत पौष और फाल्गुन माह अयोध्या के दृष्टिकोण से सामाजिक चिंतन और राजनीतिक विचार-विमर्श का केंद्र बिंदु बन चुका है. अर्थव्यवस्था के अंकगणित के पैमाने पर भी समग्र आयोजन और प्रयोजन को परखा जा रहा है. देश में 20 लाख से अधिक मंदिर हैं लेकिन इस समय सबकुछ राममय है. सबसे ज्यादा मंदिर तमिलनाडु में हैं, जहां की सरकार की ओर से सनातन धर्म पर उठाए गए सवालों का सटीक जवाब देने का समय संभवतः सन्निकट है.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए 2023-24 के बजट में 10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. अयोध्या, काशी और प्रयागराज में विकास कार्यों के लिए अलग से व्यवस्था की गई. पर्यटन विभाग और धर्मार्थ कार्य विभाग क्रमशः 588 और 936 करोड़ रुपये से अकेले अयोध्या में ही कुंड, मठ और मंदिरों का जीर्णोद्धार करा रहा है. चित्रकूट, विंध्याचल, नैमिषारण्य, शुकताल, गोला गोकर्णनाथ, वृंदावन, बटेश्वर आदि में कॉरिडोर विकसित कर सुविधाएं बढ़ाने का प्रयास है. परिणाम, प्रदेश में 2022 में जो पर्यटक 31.85 करोड़ थे, सितंबर 2023 तक उनकी संख्या 32 करोड़ से अधिक हो गई. 9.54 लाख सैलानी विदेशी रहे. इस दौरान सबसे ज्यादा 8.42 करोड़ पर्यटक और श्रद्धालु वाराणसी पहुंचे. दूसरी पसंद प्रयागराज रही और 4.50 करोड़ पर्यटकों ने शहर देखा. 2.39 करोड़ श्रद्धालुओं के साथ तीसरे स्थान पर अयोध्या रही. प्रयागराज के आंकड़े अगले साल और अयोध्या के आंकड़े जल्दी ही बदल जाएंगे. 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ होगा, जिसमें छह करोड़ श्रद्धालु पहुंचने की आशा है. इसी मंतव्य से वहां की साज-सज्जा और सुरक्षा के साथ ही सुगम मार्ग बनाए जा रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या आने का आह्वान किया है. माना जा रहा है कि इसके बाद अयोध्या देश का सबसे बड़ा धार्मिक पर्यटन स्थल हो जाएगा. प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रदेश सरकार को यहां हर महीने दो करोड़ श्रद्धालु आने का अनुमान है. रामनगरी में 26 जनवरी से 26 दिन तक प्रतिदिन प्रत्येक राज्य से पांच-पांच हजार श्रद्धालुओं को दर्शन कराने की योजना है. सामान्य तौर पर एक पर्यटक ढाई हजार रुपये से अधिक खर्च करता है. इस आधार पर प्रत्येक वर्ष 55 हजार करोड़ रुपये की आमदनी होगी. अर्थव्यवस्था इससे सशक्त होगी. वाराणसी और अयोध्या के बीच श्रद्धालुओं के लिए हेलिकॉप्टर सेवा फरवरी में शुरू होगी, जबकि आगरा-मथुरा के बीच यह शुरू हो चुकी है.

अयोध्या का घटनाक्रम आर्थिक गतिविधियों और रोजगार के क्षेत्र में भी सफलता का नया अध्याय लिख रहा है. कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेड (कैट) का कहना है कि इस आयोजन से 50 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होगा. इसके अंतर्गत श्रीराम मंदिर के मॉडल से लेकर मूर्तियां, पूजन सामग्री, घंटा-घड़ियाल, अगरबत्ती-धूपवत्ती, चंदन, चित्र, दीपक और गंगाजल की खरीदारी बढ़ेगी. अयोध्या की यात्रा इसमें सम्मिलित नहीं है. रेलवे ने आस्था स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं तो लाखों यात्री अपने या सार्वजनिक साधनों से रामलला के दर्शन-पूजन कर स्वयं को अनुग्रहीत करेंगे. यहां यह भी जानना उपयुक्त होगा कि 2021-22 में अयोध्या से विभिन्न क्षेत्रों में 110 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था. 2022-23 में यह बढ़कर 254 करोड़ रुपये हो गया है. यही नहीं, अयोध्या में 2018-19 तक 28 हजार से अधिक रजिस्ट्री होती थीं, जो 2023-24 में अब तक 46 हजार पार हो गई हैं. यही स्थिति वाराणसी की है. यहां इसी अवधि में 40 हजार का आंकड़ा 72 हजार पहुंच गया है.

तीर्थाटन के आंकड़े मात्र आंकड़े नहीं है. इनमें आस्था और अध्यात्म का अहम आधार है. उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. यहां की चारधाम यात्रा प्रसिद्ध है. घरेलू पर्यटकों में 44 फीसदी का उद्देश्य तीर्थयात्रा और धार्मिक यात्रा का होता है. 2022 में राज्य में पांच करोड़ लोग पहुंचे थे, जिसमें 3.8 करोड़ कांवड़िये और 45 लाख चारधाम के यात्री रहे. 2023 में वैष्णो देवी के दरबार में मत्था टेकने वालों की संख्या 97 लाख रही. 2022 में यह आंकड़ा 91.25 लाख था. 2012 में यहां पहली बार 1.04 करोड़ श्रद्धालु पहुंचे थे. बीते वर्ष 62 दिन चली अमरनाथ यात्रा में 4.45 लाख श्रद्धालु शामिल हुए थे,जबकि 2022 में यह संख्या 3.65 लाख थी. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में कॉरिडोर बनने के बाद पहली बार 8.10 लाख भक्तों ने दर्शन पूजन कर 2024 की शुरुआत की. एक दिन पहले यानी 32 दिसंबर को संख्या तीन लाख से अधिक थी. यही नहीं, तिरुपति बालाजी मंदिर में हर दिन 50 हजार से एक लाख के बीच श्रद्धालु पहुंचते हैं.

एक कालखंड में बुजुर्ग ही तीर्थयात्रा के लिए उपयुक्त पात्र माने जाते थे. वह भी तब, जब उनकी मनौती पूरी होती थी या और मांगने की इच्छा होती थी. बाद में इसमें बदलाव आया. फिर भी देशाटन, तीर्थाटन और पर्यटन साधनों, संसाधनों और सुरक्षा की कमी के कारण अनियमित था. अब श्रद्धालुओं की श्रेणी में युवक-युवतियां और बच्चे भी आ गए हैं. आर्थिक सामर्थ्य बढ़ने के कारण एक बड़ा वर्ग वर्ष में कम से एक बार पौराणिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजने वाले स्थानों पर जाता है. तीर्थयात्री आने-जाने से लेकर परिवहन, होटल, धर्मशाला, भोजनालय आदि पर खर्च करने के साथ स्थानीय महत्व की स्मृतियां संजोने के लिए खरीदारी भी करते हैं.

यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा उत्सव देखने के लिए कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं. इन्हें समझते हुए छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने राम की महत्ता को समझते हुए राम वन गमन पथ बनवाया. छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का घर माना जाता है. हरियाणा सरकार ने सूरजकुंड में दिवाली उत्सव मनाने की योजना बनाई है तो कुरुक्षेत्र में दो सौ करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर ज्योतिसर पार्क खोला जा रहा है. यहां देश में पहली बार महाभारत की कहानी के वाचन के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरणों का प्रयोग किया जाएगा. जिले में 164 अन्य तीर्थस्थलों का विकास किया जा रहा है. कुरुक्षेत्र में 1989 में जिला स्तरीय गीता जयंती महोत्सव अब वैश्विक हो गया है. 24 दिसंबर 2023 को गीता जयंती के उपलक्ष्य में कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में एक लाख श्रद्धालुओं द्वारा गीता पाठ का विश्व रिकॉर्ड अविस्मरणीय हो गया है. असम में कामाख्या मंदिर के विकास कार्यों पर 500 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. महाराष्ट्र के कोल्हापुर में महालक्ष्मी मंदिर कॉरिडोर और नासिक से त्र्यंबकेश्वर तक सुविधाजनक मार्ग निर्माणाधीन है. यदि तेलंगाना में भगवान नृसिंह का मंदिर बन रहा है तो राजस्थान में गोविंद देव मंदिर और पुष्कर तीर्थ में सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश है.

तीर्थाटन का महत्व सरकारों को भी पता चल गया है. यही कारण है कि पंजाब सरकार ने नवंबर में गुरुनानक देव के प्रकाशोत्सव पर मुख्यमंत्री तीर्थ योजना शुरू की. इसमें तीन महीने तक 53,850 बुजुर्ग श्रद्धालुओं को देश भर के तीर्थस्थलों के दर्शन के लिए लाने-ले जाने से जुड़े सारे खर्च सरकार देगी. इस पर 40 हजार करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है. मध्य प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव से चंद दिन पहले अपनी तीर्थ दर्शन योजना में बड़ी सोच प्रदर्शित कर राज्य के 32 वृद्धजनों को दर्शन-पूजन के लिए हवाई जहाज से प्रयागराज भेजा. इससे पहले यह योजना हरियाणा और दिल्ली में भी चलाई जा चुकी है. दिल्ली सरकार ने 75 हजार लोगों को तीर्थयात्रा कराई थी.

भारत में सैर सपाटा वाले प्रमुख स्थानों में 75 से 80 प्रतिशत से अधिक तीर्थस्थल हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगेश्वर श्रीकृष्ण, देवाधिदेव महादेव, दुष्ट विनाशनी दुर्गा और काली के अलावा अमोघ आशीषों से आच्छादित हनुमान देशवासियों की आस्था के केंद्र रहे हैं. यही कारण है कि धीरे-धीरे तीर्थस्थल ही पर्यटन के प्रमुख स्थान बन गए. पर्यटन पहले से अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है. अब तीर्थाटन आस्था के साथ अर्थव्यवस्था का नया आधार बन गया है. यही कारण है कि इनके लिए सरकारें ब्रांडिंग और व्यवस्थाएं विकसित कर रही हैं. रोजगार और अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. पर्यटन उद्योग की देश की जीडीपी में 9.2 प्रतिशत और रोजगार में 8.1 फीसदी हिस्सेदारी है.

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

Tags: Ayodhya Ram MandirEconomy SuccessReligious Faith
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