अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. सात जजों की संविधान पीठ इस पेचीदा मुकदमे की सुनवाई कर रही है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ ने गुरुवार को लगातार तीसरे दिन की सुनवाई में पूछा कि जब एएमयू राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बना हुआ है, तो अल्पसंख्यक दर्जा कैसे मायने रखता है?
अदालत ने साफ किया कि संविधान के अनुच्छेद 30 का उदेश्य ‘अल्पसंख्यकों को खास इलाके में बसाना’ (ghettoise the minority) नहीं है. अनुच्छेद 30 देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और इनके प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार से जुड़ा है. शीर्ष अदालत ने 2006 में पारित इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ के फैसले पर भी विचार किया. इस बात पर भी गौर किया गया कि एस अजीज बाशा बनाम भारत सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट के 1967 में पारित फैसले को गलत मानने पर हाईकोर्ट के आदेश पर क्या असर पड़ेगा?
सात जजों की पीठ ने कहा कि अल्पसंख्यक टैग के बिना भी संस्थान राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बना हुआ है, लोगों को इससे क्या फर्क पड़ता है कि यह अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं? यह केवल ब्रांड का नाम- एएमयू है.
अल्पसंख्यक दर्जा देने का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी कर रहे वकील शादान फरासत ने कहा, बाशा केस में 1967 में फैसला पारित होने तक यूनिवर्सिटी को ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ माना जाता था. उन्होंने कहा कि एक अल्पसंख्यक संस्थान को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए अलग कोटा नहीं देने की स्वतंत्रता मिलती है.
दिन भर चली बहस के दौरान, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 30 में यह प्रावधान नहीं हैं कि संस्थान का प्रशासन केवल अल्पसंख्यक समुदाय के हाथों में होना चाहिए. प्रशासनिक पदों पर काबिज लोगों का अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित होना जरूरी नहीं है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने साफ किया कि अनुच्छेद 30 के तहत पसंद का अधिकार मिलता है, इसके तहत अल्पसंख्यक अपनी पसंद और विवेक के आधार पर प्रशासन चला सकते हैं, जिसे वे ठीक मानते हैं. इसलिए अगर संस्था में केवल आपके समुदाय के लोग नहीं हैं, तो ‘अल्पसंख्यक दर्जा’ खोने का जोखिम है, ऐसा नहीं लगता, क्योंकि विकल्प आपके पास है.
इससे पहले अदालत ने बुधवार की सुनवाई के दौरान हैरानी व्यक्त करते हुए पूछा था कि 180 सदस्यीय गवर्निंग काउंसिल में केवल 37 मुस्लिम सदस्य हैं, ऐसे में एएमयू को ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ वाला संस्थान क्यों माना गया? चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं, अब मामले की सुनवाई 23 जनवरी को होगी.
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