नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की कौशल विकास निगम घोटाला मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर विभाजित फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच में मतभेद होने के बाद अब यह मामला बड़ी बेंच के सामने जाएगा.
भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 17ए की व्याख्या को लेकर दोनों जजों के बीच मतभेद है. जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने नायडू के पक्ष में फैसला दिया, जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने याचिका खारिज़ कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर, 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
नायडू ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से एफआईआर निरस्त करने की मांग को खारिज करने को चुनौती दी थी. चंद्रबाबू नायडू को 10 सितंबर, 2023 को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. नायडू ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग की थी. हाई कोर्ट ने 22 सितंबर, 2023 को उनकी याचिका खारिज कर दी थी. नायडू की ओर से पेश वकील हरीश साल्वे और सिद्धार्थ लूथरा ने कहा था कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 17ए के मुताबिक एफआईआर दर्ज करने के पहले स्वीकृति जरूरी होती है.
हाई कोर्ट ने कहा था कि दस्तावेज का फर्जीवाड़ा और पैसों की हेराफेरी आधिकारिक कार्य करना नहीं है इसलिए धारा 17ए का संरक्षण नहीं दिया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज करने के पहले आंध्र प्रदेश सीआईडी ने 140 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किए थे और चार हजार से ज्यादा दस्तावेज का परीक्षण किया था. ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता है कि एफआईआर दर्ज करने में मेरिट नहीं है.
साभार – हिन्दुस्थान समाचार
कमेंट