चीन कुछ समय से भारत पर लगातार हमलावर है. चीन एलएसी का उल्लंघन निरंतर करता रहा है. लेकिन हर मोर्चे पर विफल रहने के बाद उसने भारत के खिलाफ अत्यक्ष युद्ध छेड़ दिया है. वह यह काम भारत के पड़ोसी देशों को अपनी कर्जजाल नीति में उलझाकर कर रहा है. भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लक्ष्यद्वीप यात्रा के बाद जिस तरीके से मालदीव के तीन मंत्रियों- मालशा शरीफ, मरियम शिउना और अब्दुल्ला महजूम ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर जुबानी हमला किया, वह मालदीव का हमला नहीं है बल्कि उसने यह काम साम्राज्यवादी चीन के इशारे पर किया है.
ध्यातत्व है कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू चीन के समर्थक हैं और वह अपने देश में भारत विरोधी राजनीति कर ही सत्ता में आए हैं. सितंबर 2023 में प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के उम्मीदवार मोइज्जू वहां के राष्ट्रपति चुने गए थे. उनका चीन के साथ मजबूत संबंधों पर जोर है. मोइज्जू ने भारतीय सैनिकों को मालदीव से बाहर करने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था. इसलिए ऐसा माना जा रहा था कि वह राष्ट्रपति बनने के बाद चीन के इशारे पर काम करेंगे.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि मालदीव के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत के खिलाफ जहर क्यों उगला? इसके पीछे निहितार्थ क्या थे? इसके पीछे चीन क्यों है? वास्तविकता तो यह है कि चीन केवल मालदीव को ही नहीं, बल्कि भारत के पड़ोसी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका सहित सार्क देशों में तेजी से अपनी पैठ बना रहा है. इसके लिए वह इन देशों को अपनी कर्ज जाल नीति और विस्तारवादी नीति के तहत अपने चंगुल में फंसा रहा है.
चीन ने नेपाल में 1.34 अरब डॉलर का निवेश किया है. नेपाल में ड्रैगन कई प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर चुका है. नेपाल में चीन एयरपोर्ट, रोड, कॉलेज, शॉपिंग मॉल तक बना रहा है और रेलवे लाइन बिछा रहा है. नेपाल भारत के लिए बहुत प्रासंगिक है लेकिन ओली सरकार ने भारत के साथ अत्यंत पुराने रिश्तों को बिगाड़ दिया था. हालांकि मौजूदा प्रधानमंत्री प्रचंड ने रिश्तों को सुधारने की अच्छी कोशिश की है.
भारत के एक और पड़ोसी देश म्यामांर पर चीन लगातार लोन का बोझ डालता रहा है. उसने वहां के रखाइन में पानी के भीतर बंदरगाह बनाने का काम शुरू कर दिया है. म्यांमार का आर्थिक गलियारा, हाईस्पीड ट्रेन प्रोजेक्ट, हाइवे और एक्सप्रेस-वे चीन के ही भरोसे हैं. इसके अलावा ड्रैगन अपनी वन बेल्ट वन रोड परियोजना के लिए वह म्यांमार से पहले दिसंबर 2016 में बांग्लादेश को अपने चंगुल में ले चुका है. वहां पायरा बंदरगाह भी 600 मिलियन डॉलर के निवेश से चीनी कंपनियां ही बना रही हैं.
चीन और पाकिस्तान के बीच नजदीकी सर्वविदित है. भारत के खिलाफ किसी भी पाकिस्तानी गतिविधि में प्राय: चीन का हाथ रहता है. वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत ही चीन वहां पर ग्वादर पोर्ट बना रहा है. इसके लिए पाकिस्तान को चीन ने 10 अरब डॉलर का कर्ज दिया है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के नाम पर चीन उस पर 62 अरब डॉलर के कर्ज का बोझ डाल चुका है. यही नहीं, चीन ग्वादर में ही ऐसी कॉलोनी बसा रहा है, जहां पांच लाख चीनी रहेंगे.
ड्रैगन वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट के लिए श्रीलंका में भी अरबों डॉलर का निवेश कर चुका है. पहले तो चीन ने वहां के बंदरगाह विकसित करने के नाम पर लिए और फिर उन पर कब्जा ही कर लिया. यहां तक कि इनके किनारे की डेढ़ हजार एकड़ जमीन भी ले ली है. सर्वविदित है कि वर्ष 2022 में किस तरीके से श्रीलंका सरकार दिवालिया हो गई और वहां की जनता ने जमकर बवाल काटा था. इसके अलावा चीन भूटान और अफगानिस्तान जैसे भारत के करीबी देशों को भी पटाने में लगा रहता है.
मालदीव के साथ सोशल मीडिया टिप्पणियों से शुरू हुआ विवाद राजनयिक रूप ले चुका है. सवाल यह है कि मालदीव के मंत्रियों ने ऐसा क्यों किया? क्या उन्होंने एक सुनियोजित रणनीति के तहत ऐसा किया? इसके जवाब में मैं कहना चाहूंगा कि जी हां, यह मालदीव के मंत्रियों ने आपत्तिजनक टिप्पणियां स्वेच्छा से नहीं कीं. जिस समय उन्होंने ये टिप्पणियां कीं, उस दौरान मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू चीन की ही यात्रा पर थे. चीन के इशारे पर ही भारत को घेरने की कोशिश की गई.
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने पद संभालने के बाद भारत से दूरी बनानी शुरू कर दी थी. मुइज्जू ने राष्ट्रपति बनने के बाद भारत की नहीं बल्कि चीन की यात्रा की. उन्होंने मालदीव से भारतीय 75 सैनिकों को हटाने की घोषणा की. हालांकि मालदीव, भारत का अच्छा पड़ेासी मित्र रहा है जब-जब मुसीबत आई भारत ने उसकी मदद की. नवंबर 1988 पीपुल्स लिबरेशन संगठन और मालदीव के विद्रोहियों ने 80 सशस्त्र लोगों के साथ देश का तख्ता पलट करना चाहा तो भारत ने 16 घंटे के भीतर 500 सैनिकों के साथ ऑपरेशन कैक्टस कर वहां की सत्ता को बचाया था. इस ऑपरेशन में भारत के कई सैनिकों ने बलिदान भी दिया. 2018 में ही भारत ने मालदीव को 140 करोड़ डॉलर का आर्थिक सहयोग प्रदान किया. वर्ष 2020 में भारत ने मालदीव को चेचक के 30 हजार टीके मुहैया करवाए. इसके बाद कोरोना काल में वैक्सीन से लेकर आवश्यक स्वास्थ सुविधाएं भी दीं. सवाल यह है कि चीन मालदीव और भारत के अन्य पड़ोसी देशों में निवेश कर अपना प्रभुत्व क्यों बढ़ा रहा है? और अब ड्रैगन मालदीव को ढाल बनाकर भारत पर क्यों कर रहा हमला?
वास्तविकता तो यह है कि भारत की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से देखें तो मालदीव काफी खास है. यह भारत के करीब है. इसलिए अगर मालदीव में चीन का कब्जा बढ़ता है तो यह भारत के लिए खतरा बढ़ना लाजमी है. भारत आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. चीन पहले भी वर्ष 1962 में सीधा युद्ध कर और एलएसी का उल्लंघन कर गलवान घाटी में घुसपैठ का असफल प्रयास कर चुका है. अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व पांचवें नंबर पर आ चुकी है. इसके अलावा आसियान, जी 20 और ब्रिक्स जैसे सम्मेलनों के आयोजन के बाद वैश्विक स्तर पर भारत का कद बढ़ा है. यूनाइटेड नेशन्स आर्गनाइजेशन की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने का लगातार प्रयास कर रहा है.
चीन को लगता है कि भारत से सीधे तौर पर युद्ध लड़ना मुमकिन नहीं है. ऐसी स्थिति में वह भारत के पड़ोसी राज्यों को अपनी कर्ज जाल में फंसाकर भारत पर अप्रत्यक्ष तौर पर हमला कर रहा है. ड्रैगन को लगता है कि वह इन देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाकर भारत को वैश्विक स्तर पर कमजोर कर सकता है. चीन अपनी इस मंशा में कामयाब न होने पाए इसके लिए भारतीय नीत नियंताओं को वैश्विक स्तर पर सशक्त कूटनीतिक प्रयास करने होंगे.
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
साभार – हिन्दुस्थान समाचार
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