Monday, July 7, 2025
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer
Ritam Digital Hindi
Advertisement Banner
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Legal
    • Business
    • History
    • Viral Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
No Result
View All Result
Ritam Digital Hindi
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
    • Special Updates
    • Rashifal
    • Entertainment
    • Legal
    • Business
    • History
    • Viral Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
No Result
View All Result
Ritam Digital Hindi
No Result
View All Result
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
  • Politics
  • Business
  • Entertainment
  • Sports
  • Opinion
  • Lifestyle
Home Opinion

Ram Mandir Special: जय श्री राम, अब होगा प्राचीन भारतीय विज्ञान का पुनरुत्थान

अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ राम की पुरातन एवं सनातन ऐतिहासिकता के साथ-साथ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना भी हो जाएगी. अब विभिन्न रामायणों में दर्ज उस विज्ञान को भी मान्यता देने की जरूरत है, जिन्हें वामपंथी पूर्वाग्रहों के चलते वैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवी न केवल नकारते रहे हैं, बल्कि इनकी ऐतिहासिकता को भी कपोल-कल्पित कहकर उपहास उड़ाते रहे हैं.

प्रमोद भार्गव by प्रमोद भार्गव
Jan 19, 2024, 04:12 pm IST
FacebookTwitterWhatsAppTelegram

अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ राम की पुरातन एवं सनातन ऐतिहासिकता के साथ-साथ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना भी हो जाएगी. अब विभिन्न रामायणों में दर्ज उस विज्ञान को भी मान्यता देने की जरूरत है, जिन्हें वामपंथी पूर्वाग्रहों के चलते वैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवी न केवल नकारते रहे हैं, बल्कि इनकी ऐतिहासिकता को भी कपोल-कल्पित कहकर उपहास उड़ाते रहे हैं. अतैव यह समय प्राचीन भारतीय विज्ञान के पुनरुत्थान का भी काल है, क्योंकि रामायण और महाभारत कथाएं नाना लोक स्मृतियों और विविध आयामों में प्रचलित बनी रहकर वर्तमान हैं. इनका विस्तार भी सार्वभौमिक है. देश-दुनिया के जनमानस में राम-कृष्ण की मूर्त-अमूर्त छवि बनी हुई है. शायद इसीलिए भवभूति और कालिदास ने रामायण को इतिहास बताया. वाल्मीकि रामायण और उसके समकालीन ग्रंथों में ‘इतिहास’ को ‘पुरावृत्त’ कहा गया है. गोया, कालिदास के ‘रघुवंश’ में विश्वामित्र राम को पुरावृत्त सुनाते हैं. मार्क्सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने रामायण को महाकाव्यात्मक इतिहास की श्रेणी में रखा है. जबकि इन ग्रंथों में विज्ञानसम्मत अनेक ऐसे सूत्र मौजूद हैं, जिनके जरिए नए आविष्कार की दिशा में बढ़ा जा सकता है. विज्ञानसम्मत अंशों को संकलित कर पाठ्यक्रमों में शामिल करने की जरूरत है. ऐसा करने से मेधावी छात्रों में विज्ञानसम्मत महात्वाकांक्षा जागेगी और भारतीय जीवन-मूल्यों के इन आधार ग्रंथों से मिथकीय आध्यात्मिकता की धूल झाड़ने का काम भी संपन्न होगा. वैसे भी ज्यादातर रामायणों में उल्लेख है की भगवान राम लंका विजय के बाद माता सीता, भाई लक्षमण, हनुमान और सुग्रीव के साथ पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या पहुंचे थे.

इतिहास तथ्य और घटनाओं के साथ मानव की विकास यात्रा की खोज भी है. यह तय है कि मानव, अपने विकास के अनुक्रम में ही वैज्ञानिक अनुसंधानों से सायास-अनायास जुड़ता रहा है. ये वैज्ञानिक उपलब्धियां या आविष्कार रामायण, महाभारतकाल मे उसी तरह चरमोत्कर्ष पर थे, जिस तरह ऋग्वेद के लेखन-संपादन काल के समय संस्कृत भाषायी विकास के शिखर पर थी. रामायण का शब्दार्थ भी राम का ‘अयण’ अर्थात ‘भ्रमण’ से है. तीन सौ रामायण और अनेक रामायण विषयक संदर्भ गंथ, जिनके प्रभाव को नकारने के लिए पाउला रिचमैन ने 1942 में ‘मैनी रामायणस द डाइवर्सिटी ऑफ ए नैरेटिव ट्रेडिशन इन साउथ एशिया’ लिखी और एके रामानुजन ने थ्री हंड्रेड रामायण फाइव एग्जांपल एंड थ्री थॉट्स आन ट्रांसलेशन निबंध लिख कर अनर्गल अंशों को गढ़कर सच्चाई को झुठलाया. जबकि इन्हीं रामायणों, रामायण विषयक संदर्भ ग्रंथों और मदन मोहन शर्मा शाही के बृहद् उपन्यास से विज्ञानसम्मत आविष्कारों की पड़ताल की जा सकती है. रामायण एकांगी दृष्टिकोण का वृतांत भर नहीं है. इसमें कौटुम्बिक सांसारिकता है. राज-समाज संचालन के कूट-मंत्र हैं. भूगोल है. वनस्पति और जीव जगत हैं. राष्ट्रीयता है. राष्ट्र के प्रति उत्सर्ग का चरम है. अस्त्र-शस्त्र हैं. यौद्धिक कौशल के गुण हैं. भौतिकवाद है. कणाद का परमाणुवाद है. सांख्य दर्शन और योग के सूत्र हैं. वेदांत दर्शन है और अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियां हैं. गांधी का राम-राज्य और पं. दीनदयाल उपाध्याय के आध्यात्मिक भौतिकवाद के उत्स इन्हीं रामायणों में हैं. वास्तव में रामायण और उसके परवर्ती ग्रंथ कवि या लेखक की कपोल-कल्पना न होकर तात्कालिक ज्ञान के विश्व कोश हैं. जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने तो ऋग्वेद को कहा भी था कि यह अपने युग का विश्व-कोश है. अर्थात एन-साइक्लोपीडिया ऑफ वर्ल्ड !

लंकाधीश रावण ने नाना प्रकार की विधाओं के पल्लवन की दृष्टि से यथोचित धन व सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं. रावण के पास लडाकू वायुयानों और समुद्री जलपोतों के बड़े भण्डार थे. प्रक्षेपास्त्र और ब्रह्मास्त्रों का अकूत भण्डार व उनके निर्माण में लगी अनेक वेधशालाएं थीं. दूरसंचार व दूरदर्शन की तकनीकी-यंत्र लंका में स्थापित थे. राम-रावण युद्ध केवल राम और रावण के बीच न होकर एक विश्व युद्ध था. जिसमें उस समय की समस्त विश्व-शक्तियों ने अपने-अपने मित्र देश के लिए लड़ाई लड़ी थी. परिणामस्वरूप ब्रह्मास्त्रों के विकट प्रयोग से लगभग समस्त वैज्ञानिक अनुसंधान-शालाएं उनके आविष्कारक, वैज्ञानिक व अध्येता काल-कवलित हो गए. यही कारण है कि हम कालांतर में हुए महाभारत युद्ध में वैज्ञानिक चमत्कारों को रामायण की तुलना में उत्कृष्ट व सक्षम नहीं पाते हैं. यह भी इतना विकराल विश्व-युद्ध था कि रामायण काल से शेष बचा जो विज्ञान था, वह महाभारत युद्ध के विध्वंस की लपेट में आकर नष्ट हो गया. इसीलिए महाभारत के बाद के जितने भी युद्ध हैं, वे खतरनाक अस्त्र-शस्त्रों से न लड़े जाकर थल सेना के माध्यम से ही लड़े गए दिखाई देते हैं. बीसवीं सदी में हुए द्वितीय विश्व युद्ध में जरूर हवाई हमले के माध्यम से अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा-नागाशाकी में परमाणु हमले किए थे.

वाल्मीकि रामायण एवं नाना रामायणों तथा अन्य ग्रंथों में ‘पुष्पक-विमान’ के उपयोग के विवरण हैं. इससे स्पष्ट होता है, उस युग में राक्षस व देवता न केवल विमान-शास्त्र के ज्ञाता थे, बल्कि सुविधायुक्त आकाशगामी साधनों के रूप में वाहन उपलब्ध थे. रामायण के अनुसार पुष्पक-विमान के निर्माता ब्रह्मा थे. ब्रह्मा ने यह विमान कुबेर को भेंट किया था. कुबेर से इसे रावण ने छीन लिया. रावण की मृत्यु के बाद विभीषण इसका अधिपति बना और उसने फिर से इसे कुबेर को दे दिया. कुबेर ने इसे राम को उपहार में दे दिया. राम लंका विजय के बाद अयोध्या इसी विमान से पहुंचे थे.

रामायण में दर्ज उल्लेख के अनुसार पुष्पक-विमान मोर जैसी आकृति का आकाशचारी विमान था, जो अग्नि-वायु की समन्वयी ऊर्जा से चलता था. इसकी गति तीव्र थी और चालक की इच्छानुसार इसे किसी भी दिशा में गतिशील रखा जा सकता था. इसे छोटा-बड़ा भी किया जा सकता था. यह सभी ऋतुओं में आरामदायक यानी वतानुकूलित था. इसमें स्वर्ण-खंभ, मणि निर्मित दरवाजे, मणि-स्वर्णमय सीढ़ियां, वेदियां (आसन) गुप्त-गृह, अट्टालिकाएं (केबिन) तथा नीलम से निर्मित सिंहासन (कुर्सियां) थे. अनेक प्रकार के चित्र एवं जालियों से यह सुसज्जित था. यह दिन और रात दोनों समय गतिमान रहने में समर्थ था. इस विवरण से ज्ञात होता है, यह उन्नत प्रौद्योगिकी और वास्तुकला का अनूठा नमूना था.

‘ऋग्वेद’ में भी चार तरह के विमानों का उल्लेख है. जिन्हें आर्य-अनार्य उपयोग में लाते थे. इन चार वायुयानों को शकुन, त्रिपुर, सुन्दर और रुक्म नामों से जाना जाता था. ये अश्वहीन, चालक रहित , तीव्रगामी और धूल के बादल उड़ाते हुए आकाश में उड़ते थे. इनकी गति पतंग (पक्षी) की भांति, क्षमता तीन दिन-रात लगातार उड़ते रहने की और आकृति नौका जैसी थी. त्रिपुर विमान तो तीन खण्डों (तल्लों) वाला था तथा जल, थल एवं नभ तीनों में विचरण कर सकता था. रामायण में ही वर्णित हनुमान की आकाश-यात्राएं, महाभारत में देवराज इन्द्र का दिव्य-रथ, कार्तवीर्य अर्जुन का स्वर्ण-विमान एवं सोम-विमान, पुराणों में वर्णित नारदादि की आकाश यात्राएं एवं विभिन्न देवी-देवताओं के आकाशगामी वाहन रामायण-महाभारत काल में वायुयान और हेलीकॉप्टर जैसे यांत्रिक साधनों की उपलब्धि के प्रमाण हैं.

किंवदंती यह भी है कि गौतम बुद्ध ने भी वायुयान द्वारा तीन बार लंका की यात्रा की थी. ऐरिक फॉन डानिकेन की किताब ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में तो भारत समेत कई प्राचीन देशों से प्रमाण एकत्रित करके वायुयानों की तात्कालीन उपस्थिति की पुष्टि की गई है. इसी प्रकार डॉ. ओंकारनाथ श्रीवास्तव ने अनेक पाश्चात्य अनुसंधानों के मतों के आधार पर संभावना जताई है कि रामायण में अंकित हनुमान की यात्राएं वायुयान अथवा हेलीकॉप्टर की यात्राएं थीं या हनुमान ‘राकेट-बेल्ट‘ बांधकर आकाश गमन करते थे, जैसा कि आज के अंतरिक्ष-यात्री करते हैं. हनुमान-मेघनाद में परस्पर हुआ वायु-युद्ध हावरक्रफ्ट से मिलता-जुलता है. आज भी लंका की पहाड़ियों पर चौरस मैदान पाए जाते हैं, जो शायद उस कालखण्ड के वैमानिक अड्डे थे. प्राचीन देशों के ग्रंथों में वर्णित उड़ान-यंत्रों के वर्णन लगभग एक जैसे हैं. कुछ गुफा-चित्रों में आकाशचारी मानव एवं अंतरिक्ष वेशभूषा से युक्त व्याक्तियों के चित्र भी निर्मित हैं. ये चित्र मूर्तियों के रूप में दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में भी मिलते हैं. मिस्र में दुनिया का ऐसा नक्शा मिला है, जिसका निर्माण आकाश में उड़ान-सुविधा की पुष्टि करता है. इन सब साक्ष्यों से प्रमाणित होता है कि पुष्पक व अन्य विमानों के रामायण में वर्णन कोई कवि की कोई कोरी कल्पना की उड़ान नहीं है.

ताजा वैज्ञानिक अनुसंधानों ने तय किया है कि रामायण काल में वैमानिकी प्रौद्योगिकी इतनी अधिक विकसित थी, जिसे आज समझ पाना भी कठिन है. रावण का ससुर मयासुर अथवा मय दानव ने भगवान विश्वकर्मा (ब्रह्मा) से वैमानिकी विद्या सीखी और पुष्पक विमान बनाया. जिसे कुबेर ने हासिल कर लिया. पुष्पक विमान की प्रौद्योगिकी का विस्तृत ब्यौरा महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित पुस्तक यंत्र-सर्वेश्रवम् में भी किया गया था. वर्तमान में यह पुस्तक विलुप्त हो चुकी है, लेकिन इसके 40 अध्यायों में से एक अध्याय ‘वैमानिक शास्त्र’ अभी उपलब्ध है. इसमें भी शकुन, सुन्दर, त्रिपुर एवं रुक्म विमान सहित 25 तरह के विमानों का विवरण है. इसी पुस्तक में वर्णित कुछ शब्द जैसे ‘विश्व क्रिया दर्पण’ आज के राड़ार जैसे यंत्र की कार्यप्रणाली का रूपक है.

नए शोधों से पता चला है कि पुष्पक-विमान एक ऐसा चमत्कारिक यात्री विमान था, जिसमें चाहे जितने भी यात्री सवार हो जाएं, एक कुर्सी हमेशा रिक्त रहती थी. यही नहीं यह विमान यात्रियों की संख्या और वायु के घनत्व के हिसाब से स्वमेव अपना आकार छोटा या बड़ा कर सकता था. इस तथ्य के पीछे वैज्ञानिकों का यह तर्क है कि वर्तमान समय में हम पदार्थ को जड़ मानते हैं, लेकिन हम पदार्थ की चेतना को जागृत कर लें तो उसमें भी संवेदना सृजित हो सकती है और वह वातावरण व परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालने में सक्षम हो सकता है. रामायण काल में विज्ञान ने पदार्थ की इस चेतना को संभवतः जागृत कर लिया था, इसी कारण पुष्पक- विमान स्व-संवेदना से क्रियाशील होकर आवश्यकता के अनुसार आकार परिवर्तित कर लेने की विलक्षणता रखता था. तकनीकी दृष्टि से पुष्पक में इतनी खूबियां थीं, जो वर्तमान विमानों में नहीं हैं. ताजा शोधों से पता चला है कि यदि उस युग का पुष्पक या अन्य विमान आज आकाश गमन कर लें तो उनके विद्युत चुंबकीय प्रभाव से मौजूदा विद्युत व संचार जैसी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी. पुष्पक विमान के बारे में यह भी पता चला है कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था, जिसने विमान संचालन से संबंधित मंत्र सिद्ध किया हो, मसलन जिसके हाथ में विमान को संचालित करने वाला रिमोट हो. शोधकर्ता भी इसे कंपन तकनीक (वाइब्रेशन टेकनोलॉजी) से जोड़ कर देख रहे हैं. पुष्पक की एक विलक्षणता यह भी थी कि वह केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ही उड़ान नहीं भरता था, बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आवागमन में भी सक्षम था. यानी यह अंतरिक्षयान की क्षमताओं से भी युक्त था.

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

साभार – हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Ayodhya Ram MandirAyodhya DhamRam mandir Consecration
ShareTweetSendShare

संबंधितसमाचार

Buddhh Purnima 2025
Opinion

Buddha Purnima 2025: महात्मा बुद्ध दया- करूणा और मानवता के पक्षधर

Operation Sindoor
Opinion

Opinion: ऑपरेशन सिंदूर- बदला हुआ भारत, बदला लेना जानता है

ऑपरेशन सिंदूर से आतंक पर प्रहार
Opinion

Opinion: ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्या?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला
Opinion

Opinion: पहलगाम में हिन्‍दुओं की पहचान कर मार दी गईं गोलियां, कौन-सा भारत बना रहे हम

कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर संसद में हंगामा
Opinion

Opinion: मुस्लिम आरक्षण का खेल खेलती कांग्रेस

कमेंट

The comments posted here/below/in the given space are not on behalf of Ritam Digital Media Foundation. The person posting the comment will be in sole ownership of its responsibility. According to the central government's IT rules, obscene or offensive statement made against a person, religion, community or nation is a punishable offense, and legal action would be taken against people who indulge in such activities.

ताज़ा समाचार

Martyrdom Day of Captain Vikram Batra

7 जुलाई 1999: कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरगाथा – कारगिल युद्ध में शहादत

Dalai Lama Birthday

दलाई लामा जन्मदिन: तिब्बत की पहचान और अस्तित्व के लिए चीन के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक

Shyama Prasad Mukherjee Birthday

देश की अखंडता का सपना, अनुच्छेद-370 का विरोध… जानिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन से जुड़ी बड़ी उपलब्धियां

राष्ट्र ध्वज के निर्माता पिंगली वेंकैया की पुण्यतिथि

Pingali Venkaiah Death Anniversary: 30 देशों के झंडे की स्टडी के बाद तैयार हुआ तिरंगा, जानिए पिंगली वेंकैया का योगदान

Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर विशेष… हिंदू संस्कृति को पूरे विश्व में दिलाया था सम्मान

कजाकिस्तान सरकार ने बुर्के पर लगाया बेैन

कजाकिस्तान ने बुर्के हिजाब पर लगाया बैन, इन देशों में भी है चेहरा ढकने पर रोक, 10 पॉइंट्स में समझें

Old Delhi Railway Stations Name Change Proposal

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम महाराजा अग्रसेन स्टेशन करने की मांग, जानें इससे जुड़े 10 महत्वपूर्ण तथ्य

Courts Ban Namaz

सार्वजनिक जगहों पर नमाज पर कोर्ट की रोक: 7 अहम फैसले (2018–2025)

ग्रेटर नोएडा

15 प्वाइंट्स में समझे ग्रेटर गाजियाबाद की संकल्पना और जिले का महत्व

Doctors Day

National Doctor’s Day: डॉ. बिधान चंद्र रॉय: एक महान चिकित्सक, दूरदर्शी नेता और राष्ट्र निर्माता

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions
  • Disclaimer

© Ritam Digital Media Foundation.

No Result
View All Result
  • Home
  • Nation
  • World
  • Videos
  • Politics
  • Opinion
  • Business
  • Entertainment
  • Lifestyle
  • Sports
  • About & Policies
    • About Us
    • Contact Us
    • Privacy Policy
    • Terms & Conditions
    • Disclaimer

© Ritam Digital Media Foundation.