भारत युवाओं की प्रेरणास्थली रहा है. यहां की मिट्टी में ऐसे महापुरुषों का जन्म हुआ है, जिन्होंने न केवल भारत के नौजवानों के लिए उत्साहवर्धन का काम किया है अपितु दुनिया भर में साहस और शौर्य का प्रतीक बने हैं. भारत विविधताओं से भरी क्षमताओं वाला देश है. विपरीत परिस्थितियों से लड़कर जीत हासिल करने में पारंगत लोगों की फेहरिस्त में अग्रिणी नाम है नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का, जिनके जन्म दिवस 23 जनवरी को भारत ’’पराक्रम दिवस’’ के रूप में मनाता है. उनकी सूझबूझ और रणनीति से प्रेरित होकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें नेताजी कहकर संबोधित किया.
23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावतीदत्त बोस के घर जन्मे सुभाषचन्द्र बोस युवाओं के जोशीले नेताजी के रूप में तमाम नवयुवकों के हीरो हैं. जो जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना जानते हैं. सदियों से कहावत रही है कि ’पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’ जिसका बेहतरीन उदाहरण सुभाषचन्द्र बोस हैं. साहस के साथ समाज सेवा, देश प्रेम के साथ राष्ट्र भक्ति की मिसाल हैं सुभाषचन्द्र बोस. बचपन में आप जितने साहसी थे उतने ही उदार भी. कहते हैं कि ओडिशा के कटक शहर में स्थित उड़िया बाजार में प्लेग फैला हुआ था. उस इलाके में केवल बापू पाडा मोहल्ला इस बीमारी से बचा हुआ था. उसकी बड़ी वजह थी वहां पर मौजूद साफ-सफाई के पुख्ता इंतजाम. जिसे करने के लिए 10 वर्ष से 18 वर्ष के नवयुवकों ने एक टीम बनाई हुई थी उस टीम का नेतृत्व कर रहा था 12 साल का एक बालक. इस बाजार में हैदर अली नाम के एक व्यक्ति का दबदबा था.
हैदर बापू पाडा में साफ-सफाई करने वाले बच्चों को अकसर डांट फटकार कर भगा देता. लोग उससे बहुत परेशान थे. कुछ समय बाद हैदर के बेटे और पत्नी को भी प्लेग हो गया यह खबर सुनते ही अभियान दल का मुखिया हैदर की मदद में जुट गया. जबकि लोग उससे दूर भागने लगे. हैदर के मन में उस बालक के सेवाभाव को देखकर और स्वयं के किए गए बर्ताव को देखकर आत्मग्लानि का भाव उत्पन्न हो गया और उसका हृदय परिवर्तन हो गया. हैदर का हृदय परिवर्तन करने वाला वह असाधारण बालक और कोई नहीं बल्कि सुभाषचन्द्र ही था. उनमें नेतृत्व की कमाल की शक्ति थी. बडे़ से बडे़ सूरमा भी परास्त हो जाते थे. बडे़ होकर अंग्रेजों को नाको चने चबवाने का काम सुभाषचन्द्र बोस ने बखूबी किया.
जीवन की जटिलताओं को सरल बनाने का साहस जैसा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस में दिखाई देता है. आज भी भारतीय युवाओं में सिविल सेवा की परीक्षा को पास करने के जज्बे पर नेताजी को देखा जा सकता है. आप ने वर्ष 1919 में भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की परीक्षा उत्तीर्ण की और बाद में इस्तीफा देकर देश की आजादी के सपने को सच करने के मिशन में लग गए. सुभाषचन्द्र बोस अपने आध्यात्मिक गुरु विवेकानन्द एवं राजनीतिक गुरु चितरंजन दास को बहुत मानते थे. सन 1921 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने चितरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ’फारवर्ड’ के सम्पादन का कार्यभार संभाला.
भारत पूर्ण स्वराज के साथ दुनिया से नजर मिलाए यह सपना नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का था. ऐसे कई मौके आए जब नेताजी ने भारत की गुलामी की जंजीरों को पिघलाने की कोशिश की. कभी जेल गए तो कभी ब्रिटिश हुकूमत को आसानी से चकमा देकर अपने सीक्रेट मिशन को पूरा करने में सफल रहे. उन्होंने कभी भी अंग्रेजी हुकूमत को चैन से सोने न दिया. भारत में आजादी का दिन 15 अगस्त 1947 के दिन के रूप में दर्ज है लेकिन आजादी के इस दिन से लगभग चार साल पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने हिन्दुस्तान की पहली सरकार का गठन कर दिया था. 21 अक्टूबर 1943 का दिन इतिहास कभी न भुला पाएगा, जब भारत पर अंग्रेजी हुकूमत थी और नेताजी ने सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना कर सबको अचंभे में डाल दिया. नेताजी का यह कदम अंग्रेजी सरकार को यह बतलाने के लिए पर्याप्त था कि भारत में उनकी सरकार का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है भारतीय अपनी सरकार चलाने में सक्षम है.
आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के तौर पर सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई. उसे नौ देशों ने मान्यता दी, जिसमें जर्मनी, फिलीपींस, जापान जैसे देश शामिल थे. जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप आजाद हिंद सरकार को दे दिए गए. सुभाषचन्द्र बोस ने इनका नामकरण किया. अंडमान को शहीद द्वीप और निकोबार को स्वराज द्वीप के नाम से संबोधित किया. 30 दिसम्बर 1943 को अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द सरकार का तिरंगा फहराया. आजाद हिन्द सरकार ने अपना बैंक, अपनी मुद्रा, अपना डाक टिकट और अपना गुप्ततंत्र स्थापित कर ब्रिटिश हुकूमत को भारतीयों की शक्ति का आभास कराया. नेताजी ने लोगों को संगठित होकर एकजुटता के साथ अंग्रेजी सूरज को अस्त करने की राह सुझाई .
सुभाषचन्द्र बोस ने अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करने की परम्परा का आगाज किया. उनके दिल्ली चलो के नारे ने नई राह दिखाई. उन्होंने नारा दिया, तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा. सुभाषचन्द्र बोस के जीवन से जुड़े कई प्रेरणादायक किस्से हैं जिन्हें देख उनकी क्रान्तिमय जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है. कहते हैं एक बार बचपन में सुभाष अपनी माता के साथ मां काली के मन्दिर गए थे उनकी मां पूजा के लिए घर से सिंदूर लाना भूल गईं तभी उनकी मां को ध्यान आया और उन्होंने सुभाष से घर जाकर सिंदूर लाने के लिए कहा. घर दूर था तभी सुभाष ने सोचा घर से सिंदूर लाने में काफी वक्त लगेगा और तभी पास पड़े एक चाकू से अपने अंगूठे पर चीरा लगा कर अपनी मां से कहा कि वह उनके रक्त को सिंदूर मानकर मां काली के चरणों में अर्पित कर दें. बाल्यकाल में ऐसा उदाहरण उनके साहस एवं पराक्रमी जीवन को दर्शाता है. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जीवन स्वतंत्रता, समानता, साहस से भरपूर आपसी सौहार्द्र को बनाये रखने में एक मिसाल है. ऐसे हीरो सदैव जीवित रहकर अपने राष्ट्र के युवाओं को राष्ट्रसेवा के लिए सदैव प्रेरित करते रहते हैं.
(लेखिका, इतिहास विशेषज्ञ और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
साभार – हिन्दुस्थान समाचार
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