बिहार में पिछले कुछ दिनों से सियासत चरम पर है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के महागठबंधन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में एंट्री तय बताई जा रही है. हालांकि, इसे लेकर अभी औपचारिक ऐलान तो नहीं हुआ है लेकिन खबर है कि नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर 28 जनवरी को एनडीए सरकार का हाथ थाम कर मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले सकते हैं.
दरअसल बिहार की राजधानी पटना में हलचल बढ़ गई है. जेडीयू ने अपने सभी विधायकों से तत्काल पटना पहुंचने के लिए कहा है तो वहीं दूसरी तरफ लालू यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल भी एक्टिव मोड में आ गया है. आरजेडी ने राबड़ी देवी के आवास पर विधायकों की आपात बैठक बुलाई है और उन संभावित विकल्पों पर मंथन भी जोर दिया जा रहा है जिनसे नीतीश के साथ छोड़कर जाने के बाद भी सरकार खड़ी की सके.
लालू यादव ने कभी महागठबंधन का हिस्सा रहे हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम पार्टी के अध्यक्ष जीतनराम मांझी से भी बातचीत जारी है. लालू ने मांझी को उनके बेटे संतोष मांझी को डिप्टी सीएम बनाने का ऑफर दिया है. हालांकि, संतोष मांझी ने इस तरह की खबरों को सिरे से खारिज करते ये साफ कर दिया कि वह एनडीए के साथ हैं और एनडीए के साथ ही रहेंगे. बिहार में बीजेपी से लेकर जेडीयू और आरजेडी तक, तीनों खेमों में हलचल मचा हुआ है. आरजेडी ने जोड़-तोड़ की कोशिशें शुरू कर दी हैं. ऐसे में आरजेडी के पास क्या विकल्प हैं, ये समझने से पहले बिहार विधानसभा का नंबर गेम समझना भी बहुत जरूरी है.
बिहार विधानसभा में 243 सदस्यों वाले सदन में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 122 विधायकों का है. लालू के नेतृत्व वाली आरजेडी 79 सदस्यों के साथ बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है तो वहीं बीजेपी 78 विधायकों के साथ दूसरे नंबर पर है. दोनों बड़ी पार्टियां बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से बहुत पीछे हैं.
अब गठबंधन का गणित देखें तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के 45 विधायकों हैं और पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी है. महागठबंधन की पार्टिया जैसे कांग्रेस के पास 19 विधायक है और लेफ्ट के 16 विधायक हैं. अब अगर आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट, तीनों के विधायकों की संख्या जोड़ लें तो कुल सदस्य संख्या 114 हो गई है जो बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से आठ कम है.
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की बात करें तो गठबंधन की अगुवाई कर रही पार्टी के 78 विधायक हैं. जीतनराम मांझी की हम पार्टी के चार विधायक हैं. नीतीश कुमार को माइनस करके देखें तो एनडीए के विधायकों की संख्या 82 हो जाएगी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का एक विधायक है जो न तो एनडीए में शामिल है और ना ही महागठबंधन में. आंकड़ों के अनुसार, एनडीए हो या महागठबंधन, नीतीश कुमार की पार्टी जिस तरफ अपनी रुख कर ले उधर आसानी से सरकार बन और बच जाएगी.
ऐसे में अब सवाल यह है कि विधानसभा का नंबर गेम नीतीश के एनडीए में जाने के बावजूद भी आरजेडी को आखिर सरकार बनाने की उम्मीद क्यों और कैसे नजर आ रही है? तो आइए समझते हैं.
महागठबंधन को नीतीश के बिना सरकार बनाने के लिए आठ विधायकों का समर्थन जुटाना होगा. जीतनराम मांझी की हम पार्टी और एआईएमआईएम अगर महागठबंधन ले आती है तो महागठबंधन विधायकों का आंकड़ा 119 तक पहुंच जाएगा. जिसके बाद महागठबंधन को बस तीन विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी.
दूसरा विकल्प यह भी है कि महागठबंधन मांझी और एआईएमआईएम को साथ लाए और फिर जेडीयू या बीजेपी में सेंध लगा दे यानी विधायकों को लुभावने ऑफर देकर अपनी ओर आकर्षित कर ले. मांझी और ओवैसी के विधायक के साथ आने के बाद जेडीयू या बीजेपी के छह विधायक अगर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें तो बिहार विधानसभा की सदस्य संख्या 237 रह जाएगी और फिर बहुमत का आंकड़ा 119 विधायकों का होगा. जिसके बाद महागठबंधन के सरकार बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा.
महागठबंधन सरकार के लिहाज से तीसरी स्थिति यह है कि नीतीश या एनडीए के खेमे से एक साथ 16 विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें. अगर ऐसा होता है तो बिहार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 227 रह जाएगी. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 114 विधायकों का रह जाएगा और इस स्थिति में भी महागठबंधन सरकार बना सकती है. लेकिन ये इतना आसान नहीं होगा.
हालाकि विधानसभा के आंकड़ों का ऊंट नीतीश के पाला बदलने के बावजूद महागठबंधन के पक्ष में भी बैठ सकता है लेकिन यह इतना आसान नहीं है. क्योंकि पूर्व सीएम जीतनराम मांझी के पुत्र संतोष मांझी भी एनडीए के साथ ही रहने की प्रतिबद्धता जता रहे हैं. नीतीश के बिना महागठबंधन की राह में तमाम चुनौतियां हैं लेकिन लालटेन की सरकार बनाने की उम्मीदें अगर टिमटिमा रही हैं तो उसके पीछे एक वजह यह भी है कि स्पीकर की कुर्सी पार्टी के ही पास है यानी स्पीकर आरजेडी के हैं.
बहरहाल, बिहार की सियासत के पुराने दिग्गज लालू यादव एक्टिव मोड में हैं. आरजेडी की ओर से जोड़तोड़ की कोशिशें जोरों पर हैं और पार्टी हर वह दांव आजमा रही है जिससे नीतीश के साथ छोड़ने के बाद भी सरकार बची रह सके और तेजस्वी की ताजपोशी का रास्ता साफ हो सके. अब देखना होगा कि नीतीश या तेजस्वी में से किसकी सियासी गोटी सेट होती है.
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