नीतीश कुमार, भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम, जो सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक उठापटक में माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. कहा जाता है कि इन्हें पाला पदलने और फिर से उसी पाले में आकर सत्ता सुख भोगने में महारत हासिल है. बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अब महागठबंधन से मोहभंग हो चुका है और एक बार फिर से वह बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं. नीतीश कुमार ने पहली बार सियासी पाला नहीं बदलने जा रहे हैं बल्कि पांच दशक के राजनीतिक कैरियर में वो कई बार पलटी मार चुके हैं. खास बात यह है कि उनके पलटी मारने में सिर्फ मोहरे बदलते हैं लेकिन वजीर तो नीतीश ही रहते हैं. तो आइये एक नजर डालते हैं कि आखिर नीतीश कुमार कब-कब और क्यों पलटे…
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में धुरी बनाए हुए हैं और उन्हीं के इर्द-गिर्द बीते 20 वर्षों से राजनीति केंद्रित है. दस वर्षों में कई बार नीतीश पलटी मार चुके हैं और माना जा रहा है कि एक बार ऐसा करने जा रहे हैं. नीतीश ने 1974 के छात्र आंदोलन के जरिये राजनीति में कदम रखा तो 1985 में पहली बार विधायक बने. इसके बाद नीतीश कुमार ने पलटकर नहीं देखा और सियासत में आगे ही बढ़ते चले गए. लालू प्रसाद यादव 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1994 में नीतीश कुमार ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नीतीश और लालू एक साथ जनता दल में थे, लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षाओं में टकराव हुआ और दोनों एक दूसरे से अलग हो गए.
वर्ष 1994 में नीतीश ने जनता दल छोड़कर जार्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई. इसके बाद वर्ष 1995 में वामपंथी दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े, लेकिन नतीजे पक्ष में नहीं आए. नीतीश ने वामदलों से गठबंधन तोड़ लिया और 1996 में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन गए. इसके बाद नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी के साथ वर्ष 2013 तक साथ मिलकर चुनाव लड़ते रहे और बिहार में सरकार भी बनाते रहे.
बिहार में बीजेपी और नीतीश 17 वर्ष तक साथ रहे. नीतीश कुमार का बीजेपी से पहली बार मोहभंग तब हुआ जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. नीतीश ने नरेंद्र मोदी का विरोध करते हुए बीजेपी से नाता तोड़ लिया और साल 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा. जब 2014 के चुनाव में बेहतर नतीजे जेडीयू के पक्ष में नहीं आए तो नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया.
वर्ष 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू ने आरजेडी, कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और बिहार में बीजेपी का सफाया कर दिया. नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और सीएम बने और तेजस्वी यादव ने डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाली. बिहार में आरजेडी के साथ दो वर्ष तक सरकार चलाने के बाद 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया. इसके बाद बीजेपी के साथ मिलकर फिर सरकार बना ली. नीतीश मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने.
जेडीयू और बीजेपी ने 2017 से लेकर 2022 तक सरकार चलाई. इस दौरान 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव भी नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन चुनावी नतीजे में बीजेपी को फायदा और जेडीयू को नुकसान हुआ. जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई. जेडीयू ने 45 सीटें जीतीं तो बीजेपी ने 78 सीटों पर बड़ी जीत हासिल की. इसके बावजूद बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंपी और अपने दो उपमुख्यमंत्री बनाए.
नीतीश कुमार वर्ष 2020 में सीएम जरूर बन गए लेकिन राजनीति में और लंबी छलांग लगाने के लिए नीतीश ने बिहार में दो साल सरकार चलाने के बाद 2022 में पलटी मारकर आरजेडी व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव एक बार फिर उपमुख्यमंत्री. डेढ़ वर्ष के बाद नीतीश कुमार का मन फिर से बदल गया है और अब फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद में हैं. बता दें कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की सियासत में होने वाले इस बदलाव का प्रभाव देश की राजनीति पर पड़ना तय है?
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