नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका दिया है. देश की सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए तत्काल रोक लगा दी है. सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को अब तक मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देने के लिए कहा है.
इलेक्टोरल बॉन्ड अब गोपनीय नहीं रहेगा, अब जनता को पता होगा कि किसने, किस पार्टी को कितनी फंडिंग की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मौजूदा स्वरूप में सूचना के अधिकार कानून का उल्लंघन कर रहा है. इसका मतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को खत्म तो नहीं किया जाएगा, लेकिन डोनर यानि दानदाता की पहचान गुप्त रखने के प्रावधान को हटाया जा सकता है. तो आइये जानते हैं कि क्या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम जिसे लेकर शीर्ष अदालत ने कड़ा फैसला दिया है.
क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
वर्ष 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई. इसे लागू करने के पीछे मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में धन देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम प्राप्त करते हैं. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं.
इसकी शुरुआत का उद्देश्य था चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार करना. 2 जनवरी 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था. इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी होते हैं. इसके लिए चंदा देने वाला बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीदा जा सकता है.
कोई भी डोनर अपनी पहचान छुपाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में धन दे सकता है. ये व्यवस्था डोनर की पहचान सार्वजनिक नहीं करती और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. आम चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बॉन्ड से चंदा हासिल हो सकता है.
केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आएगी और साफ-सुथरा धन आएगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाई गई है.
बता दें कि इस बॉन्ड की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया है. मामले में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3 दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बॉन्ड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को भी कहा था.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं.
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