कुछ किसान संगठन जिन पर किसानों की मांगों की आड़ में केंद्र की मोदी सरकार को अस्थिर करने के आरोप लग रहे हैं, वे मोडिफाइड ट्रैक्टर, हथियार और हजारों लोगों की उग्र भीड़ को लेकर दिल्ली में दाखिल होना चाहते हैं. कानून व्यवस्था को कायम रखने के लिए दिल्ली पुलिस और हरियाणा सरकार लगातार इस कोशिश में जुटी है कि इन प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में दाखिल होने से रोका जाए. वैसे तो किसान आंदोलन करने वाले संगठन हमेशा से खुद को राजनीति से अलग करते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिला है कि अब जो किसान आंदोलन हो रहे हैं, वो किसानों के मुद्दों से प्रेरित न होकर राजनीतिक दलों के मोहरों के रूप में सामने आए हैं.
वजह भी यही है कि किसान आंदोलन पूरी तरह राजनीति का केंद्र बन रहे हैं. और जब किसान नेता खुलकर सरकार बदलने की बात करने लगते हैं तो इसे किस तरह राजनीति से अलग माना जाए. पंजाब के कुछ किसान संगठनों द्वारा शुरू हुए किसान आंदोलन को लेकर लोगों में चर्चा है कि आखिर बिना राजनीतिक दलों के सपोर्ट के इतना बड़ा आंदोलन इतनी जल्दी कैसे खड़ा हो सकता है. कुछ ऐसे वीडियों भी सामने आए हैं, जिसमें आंदोलन करने वाले किसान संगठन के शीर्ष नेता कह रहे हैं कि मोदी का ग्राफ बहुत ऊपर पहुंच गया है, समय कम है, उसे नीचे लाना है. इससे साफ हो जाता है कि इस आंदोलन का मकसद किसानों के हित से कम, मोदी को हटाने की मुहिम से ज्यादा जुड़ा है.
तो आइये उन कारणों पर गौर करते हैं जो इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि इस किसान आंदोलन में किसानों की फिक्र कम है, ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि किस तरह मोदी सरकार को हटाया जाए, किस तरह से इस सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में हराया जाए. आंदोलन शुरू हुए चंद दिन हुए हैं लेकिन इन दिनों में कुछ ऐसे वीडियो वायरल हुए, कुछ ऐसी घटनाएं सामने आईं, जिससे किसान आंदोलन की नीयत पर सवाल खड़े हुए हैं.
1- सवालों के घेरे में आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठन!
इस बार के आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठनों में प्रमुख है ‘पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति’. इस संगठन के महासचिव हैं सरवन सिंह पंढेर यानि इसके कर्ताधर्ता यही हैं. यह वही संगठन है जिसने 26 जनवरी 2021 को लालकिले में घुसकर उपद्रव मचाया था. दूसरा संगठन, भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर. इसके अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल है. जिनके वायरल वीडियो ने इनकी मंशा साफ कर दी है. इसके अलावा पंजाब में पीएम मोदी का काफिला रोकने की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी भी इस आंदोलन में शामिल है. साथ ही हरियाणा से जुड़े कुछ और संगठन हैं जो इस आंदोलन में भाग ले रहे हैं. वर्ष 2020-21 में हुए किसान आंदोलन मे लगभग 34 किसान संगठन शामिल थे, जबकि इस बार गिने- चुने कुछ ही संगठन सामने आए हैं और उनमें से ज्यादातर पर सवाल उठे हैं और कहा जा रहा है कि ये लोग घोर मोदी विरोधी हैं और किसानों के हित की बात करके राजनीतिक दलों के इशारे पर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं.
2- आंदोलन का असली चेहरा दिखा रहा है डल्लेवाल का वायरल वीडियो!
भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल इस बार किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक हैं. पिछली बार के किसान आंदोलन में जिस तरह से गुरुनाम सिंह चढ़ूनी और राकेश टिकैत के नाम लगातार चल रहे थे, वैसे ही इस बार जगजीत सिंह डल्लेवाल और सरवन सिंह पंढेर का नाम मीडिया में आ रहा है. लेकिन जगजीत सिंह डल्लेवाल का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उनके मुंह से किसान आंदोलन की सच्चाई निकल कर लोगों के सामने आ गई है. इस वीडियो में डल्लेवाल कह रहे हैं कि राम मंदिर बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ग्राफ बहुत बढ़ गया था, उसे नीचे लाना है. वीडियो में डल्लेवाल कहते सुनाई पड़ रहे हैं, ‘मैं गांव में बात करता था, मौका बहुत थोड़ा है और मोदी का ग्राफ बहुत ऊंचा, क्या थोड़े दिनों में हम ग्राफ नीचे ला सकते हैं’.
"We have to bring graph of PM @narendramodi down" ~ Farmer Leader Jagjit Singh Dallewal is upset by the fact that Modi's popularity graph has 'gone up' because of #ShriRamTemple.
This is truth of #FarmerProtest2024, staged politically motivated 'drama'. https://t.co/qtbXSvhjvO
— दा लॉस्ट बॉय (@iM_lost_boy) February 15, 2024
अब डल्लेवाल का वीडियो आने के बाद किसान आंदोलन पर सवाल उठना स्वभाविक है. भले ही डल्लेवाल अब कह रहे हैं कि यह मेरा आधिकारिक बयान नहीं है लेकिन लोग तो यही कह कहे हैं कि किसान आंदोलन की असली मंशा सामने आ चुकी है. डल्लेवाल की बात से साफ संकेत मिलते हैं कि किसान आंदोलन का उद्देश्य लोकसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लगने से पहले मोदी के खिलाफ माहौल तैयार करने की है.
3- कुछ और भी मामले, जो आंदोलन की मंशा पर खड़े कर रहे सवाल
किसान आंदोलन में शामिल पंजाब के किसान नेता तेजवीर सिंह का एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वो देश को ही बदलने की बात कर रहे हैं. और तो और वो किसान आंदोलन को विपक्ष की लड़ाई लड़ने वाला भी बता रहे हैं. ऐसे में लोगों का मानना है कि कहीं न कहीं तो किसान नेताओं को एक बात समझाई गई है कि ये लड़ाई किसानों के अधिकारों और एमएसपी की गारंटी की आड़ में मोदी सरकार को ही बदलने की है.
इतना ही नहीं किसान आंदोलन को कवर कर रहे बहुत से यूट्यूबर्स और मीडिया हाउसेस के वीडियो भी सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखकर आप यकीन से कह सकते हैं कि किसान आंदोलन भ्रमित है या गलत लोगों के हाथों में चला गया है. बहुत से किसान अलग पंजाब या अलगाववाद की बात करते हुए मिलते हैं. इनमें से कुछ तो पीएम नरेंद्र मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए मिल जाते हैं. इतना ही नहीं यहां तो ये किसान मरने-मारने की बात भी कर रहे हैं. ये लोग किसानों की मांगों की बात नहीं कर रहे सिर्फ मोदी सरकार और पीएम मोदी के खिलाफ जहर उगल रहे हैं. इससे तो यही लगता है ये लोग सिर्फ केंद्र सरकार को अस्थिर करने के लिए आंदोलन का चोला पहनकर आए हैं.
4- राजनीतिकरण से प्रेरित आंदोलन!
जैसे ही किसान आंदोलन की शुरुआत हुई तो उसके समर्थन में कई राजनीतिक दल कूद पड़े. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरह से आंदोलन के दो दिन पहले ट्विट कर मोदी सरकार को घेरा, इससे संदेह को बल मिला कि इस आंदोलन का उद्देश्य किसानों के अधिकार से कहीं ज्यादा मोदी सरकार को 2024 में किसी तरह से हराना है. सवाल ये भी उठे कि लोकसभा चुनाव से सिर्फ दो महीने पहले कांग्रेस किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी की देने की बात कर रही है लेकिन इससे पहले या जब कांग्रेस की सरकारें आईं, तब भी किसान आंदोलन हुए लेकिन उस वक्त कभी भी कांग्रेस ने ऐसी जल्दबाजी नहीं दिखाई. जिस तरह से कांग्रेस एमएसपी और भारत बंद को लेकर किसान आंदोलन को हवा दे रही है, उससे तो लोगों को लग रहा है कि इस आंदोलन को इतनी जल्दी खड़ा करने में कहीं कांग्रेस का हाथ तो नहीं है? सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर कांग्रेस पार्टी एमएसपी की गारंटी पूरे देश के किसानों के लिए कर रही है तो यकीनन इसकी तैयारी पहले से की गई होगी. लोगों का मानना है कि कोई भी पार्टी तुरंत इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकती, यह सब पहले से बनाई गई योजना के तहत हुआ होगा. इसके अलावा इस आंदोलन को खुलकर समर्थन देने में आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं रही. पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल लगातार आंदोलन के समर्थन में बयानबाजी कर रहे है. इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार ने आंदोलन के मद्देनजर बवाना स्टेडियम को जेल बनाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया.
जिस तरह से किसान आंदोलन के बाद लगातार खुलासे सामने आ रहे हैं, उससे तो यही कहा जा सकता है कि ‘किसान आंदोलन तो बहाना है, असल मकसद तो मोदी सरकार को हटाना है’.
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