इसरो ने अपना सबसे पहला हाईटेक मौसम उपग्रह INSAT-3DS को लॉन्च कर दिया है. श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से GSLV-F14 रॉकेट के माध्यम से INSAT-3DS सैटेलाइट को उसकी तय कक्षा में छोड़ा गया. यह सीरीज का तीसरी पीढ़ी सैटेलाइट है.
इस लॉन्चिंग में तीन बड़ी उपलब्धियां मिली हैं. पहली, यह GSLV की 16वीं उड़ान है. दूसरी, स्वदेशी क्रायो स्टेज की 10वीं उड़ान है. तीसरी, स्वदेशी क्रायो स्टेज की सातवीं ऑपरेशनल फ्लाइट होगी. GSLV-F14 रॉकेट इनसैट-3डीएस सैटेलाइट को लॉन्चिंग के लगभग 18 मिनट बाद उसकी तय कक्षा में पहुंचा देगा.
इस सैटेलाइट का काम अंतरिक्ष में रह कर बदलते मौसम के अलावा आने वाली आपदाओं की जानकारी समय पर देना है. ऐसे में आइए इसरो की इस नई लॉन्चिंग से जुड़े अहम बाते जानते हैं.
ISRO ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जियोसिंक्रोनस लॉन्च वाहन F14 (GSLV-F14) पर INSAT-3DS मौसम उपग्रह लॉन्च किया। pic.twitter.com/9k0tzOf7yq
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 17, 2024
इस सैटेलाइट का वजन 2,274 किलोग्राम है और इसकी मिशन लाइफ 10 साल है. यानी ये सैटेलाइट 10 सालों तक इसरो को मौसम में होने वाले हर बदलाव की सटीक जानकारी देती रहेगी. ये सैटेलाइट एक बार ऑपरेशनल होने पर जमीन और समुद्र दोनों जगहों पर अडवांस्ड मौसम की जानकारी दे पाएगी. इसके जरिए हर तरह की तूफानी घटनाओं का पता लगाया जा सकेगा. इसके अलावा जंगल की आग, बर्फ का कवर, धुआं और बदलते जलवायु के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी.
INSAT-3DS सैटेलाइट को तैयार करने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा फंडिंग की गई है. इस सैटेलाइट को तैयार करने में कुल 480 करोड़ रुपये का खर्चा आया है.
इसरो के अनुसार, जीएसएलवी रॉकेट का यह 16वां मिशन है तो वहीं स्वदेशी क्रायोजॉनिक इंजन का इस्तेमाल करते हुए 10वीं फ्लाइट है. जीएसएलवी रॉकेट को ‘नॉटी बॉय’ का नाम इसलिए मिला है, क्योंकि इसके फेल होने की दर 40 प्रतिशत है. इस रॉकेट से अंजाम दिए गए 15 लॉन्च में से 4 फेल भी हुए हैं.
यह मिशन जीएसएलवी रॉकेट के लिए भी बहुत ही जरूरी है. क्योंकि जीएसएलवी रॉकेट के जरिए इस साल पृथ्वी की जानकारी जुटाने वाले सैटेलाइट NISAR को भी लॉन्च किया जाना है. इस सैटेलाइट को अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और इसरो मिलकर तैयार कर रहे हैं.
बता दें, ‘नॉटी बॉय’ के नाम से मशहूर जीएसएलवी तीन स्टेज वाला रॉकेट है, जिसकी ऊंचाई 51.7 मीटर है. इस रॉकेट के जरिए 420 टन के भार को अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है. रॉकेट भारत निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करता है हालांकि इसरो कुछ और लॉन्चिंग के बाद इसे रिटायर करने की योजना बना रहा है.
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