कर्नाटक सरकार ने बुधवार (21 फरवरी) को विधानसभा में कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक- 2024 पारित कर दिया है. इस विधेयक में कहा गया है कि जिन मंदिरों की वार्षिक आय एक करोड़ रुपये से अधिक है, सरकार उस पर 10 प्रतिशत टैक्स वसूल करेगी और जिन मंदिरों को 10 लाख से एक करोड़ के बीच राजस्व मिला, उन पर 5 प्रतिशत टैक्स लगेगा. इसे लेकर कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार सवालों के घेरे में है. इस विधेयक को लेकर कहा जा रहा है कि यह सनातन के खिलाफ कांग्रेस सरकार की नई साजिश है, जिसे तुष्टिकरण की नीति के तहत रचा गई है.
विपक्षी दल भाजपा कांग्रेस पर हमलावर है और आरोप लगा रही है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार हिंदू विरोधी नीतियां अपना रही है और अब उसकी नजर हिंदू मंदिरों के दान पर है. भाजपा ने आरोप लगाया है कि ‘भ्रष्ट, अयोग्य ‘लूट सरकार’ ने धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदू विरोधी विचारधारा के साथ, मंदिरों के राजस्व पर अपनी बुरी नजर डाली है. हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती संशोधन अधिनियम के माध्यम से, यह सरकार अपने खाली खजाने को भरने के लिए हिंदू मंदिरों और धार्मिक संस्थानों से दान के साथ-साथ चढ़ावे को भी हड़पने की कोशिश कर रही है.’
भाजपा का कहना है कि सिद्धारमैया सरकार टैक्स से वसूले गए पैसों का उपयोग तुष्टिकरण के लिए करेगी. सरकार इन पैसों का उपयोग अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाइयों के पक्ष में लिए गए फैसले पर करेगी.
बता दें कि कर्नाटक सरकार ने बजट में अल्पसंख्यक छात्रों के मुफ्त शुल्क और वक्फ संपत्तियों के विकास के लिए 100 करोड़ रुपये दिए हैं. मंगलुरु में हज भवन बनाने के लिए 10 करोड़ दिए हैं, ईसाइयों के लिए 200 करोड़ रुपये का बजट रखा है, इसके अलावा अल्पसंख्यक विकास निगम के जरिए 393 करोड़ के कार्यक्रम होंगे. भाजपा इन सारे फैसलों को तुष्टिकरण कहकर विरोध कर रही है.
84 प्रतिशत हिन्दू जनसंख्या वाले राज्य कर्नाटक में लगभग 13 प्रतिशत मुस्लिम और 4 प्रतिशत ईसाई हैं. करीब 23 विधानसभा सीटों में मुस्लिम वोटों से हार-जीत भी होती है. साल 2018 में कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद भी 7 मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे. इस बार 10 मुस्लिम उम्मीदवार चुनकर विधानसभा में आए हैं. इस वोट बैंक को खुश करने और अपने पाले में रखने के लिए कांग्रेस लगातार नई-नई चाल चलती रहती है. सनातन पर आस्था रखने वाले लोग हिन्दू मंदिरों के दान पर टैक्स कांग्रेस की नई चाल मान रहे हैं.
वहीं कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का दावा है कि इकट्ठा किए गए धन का इस्तेमाल धार्मिक परिषद से जुड़े उद्देश्यों के लिए किया जाएगा. जिससे पुजारियों की आर्थिक स्थिति बेहतर की जाएगी और जिन मंदिरों की स्थिति बहुत खराब है, उनमें सुधार किया जाएगा तथा मंदिर के पुजारियों के बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाएगी. लेकिन कांग्रेस कुछ भी कहे उसकी मंशा पर सवाल उठ रहे हैं.
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार भले इस विधेयक को मंदिरों और यहां काम करने वाले लोगों के हितों से जोड़ें लेकिन हिन्दू मंदिरों पर आस्था रखने वाले लोग सवाल उठा रहे हैं कि टैक्स के लिए केवल हिंदू मंदिर ही क्यों? दूसरे धार्मिक संस्थान भी तो हैं, उन पर इस तरह के कानून क्यों नहीं?
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