27 फरवरी का ये दिन कौन भूल सकता है आज से 22 वर्ष पहले 2002 में गुजरात के गोधरा में एक ऐसी दुखद घटना हुई थी जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस घटना ने इस्लामिक कट्टरपंथ के उस घृणित चेहरे को उजागर किया था, जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होती रहती है. दरअसल, 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर इस्लामिक कट्टरपंथियों के द्वारा साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के S-6 डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिससे अयोध्या से लौट रहे 59 तीर्थयात्री जिन्दा जल गए थे. इस घटना को 22 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी इसके घाव हरे हैं, भरे नहीं.
क्या है पूरा मामला
27 फरवरी 2002 को अहमदाबाद जाने के लिए साबरमती एक्सप्रेस, जिसमें अयोध्या से तीर्थयात्री लौट रहे थे, गोधरा से निकली ही थी कि प्लान के तहत इस्लामिक कट्टरपंथियों ने चेन खींचकर गाड़ी को रोककर उस पर पथराव करना शुरू कर दिया. साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के S-6 डिब्बे को बंद कर दिया गया. इसके बाद इसमे आग लगा दी गई, जिससे S-6 डिब्बे में मौजूद 59 तीर्थयात्री जिंदा जलकर मर गए. जिसमें 25 महिलाएं, 25 बच्चे और 9 पुरुष शामिल थे.
इस घटना की पूरी दुनिया में निंदा हुई. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि गोधरा कांड की घटना को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया. पहले से ही अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों के ऊपर हमला करने की योजना बना ली गई थी. जब 27 फरवरी को अहमदाबाद जाने के लिए साबरमती एक्सप्रेस गोधरा से निकली तो योजना के तहत आरोपी सलीम पानवाला और महबूब अहमद ने कारसेवकों के खिलाफ मुस्लिम लड़कियों के कथित दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाकर शोर मचाना शुरू किया. जिसके बाद 900 से अधिक मुस्लिम भीड़ लाठी, लोहे की पाइप, छड़, धारिया, गुप्तियों, एसिड बल्ब और जलते हुए मशाल लेकर ट्रेन पर हमला कर दिया. इतना ही नहीं इस दौरान पास में मौजूद एक मस्जिद की लाउडस्पीकर से घोषणा कर भीड़ को उकसाया गया. जिससे ट्रेन में मौजूद यात्री डर की वजह से ट्रेन से बाहर कूदने की कोशिश नहीं की और फिर ट्रेन को आग के हवाले कर 59 हिंदूओं को जिंदा जला दिया गया.
इस मामले की जांच फास्ट ट्रैक कोर्ट ने की और वर्ष 2011 में कोर्ट ने ये बात मानी कि गोधरा कांड को पहले से योजना के तहत अंजाम दिया गया. अयोध्या से तीर्थयात्रा कर लौट रहे कारसेवकों को टारगेट करने के बाद से कट्टरपंथियों ने मजहबी नारे लगाए थे और पास में मौजूद मस्जिद के लाउडस्पीकर से घोषणा भी हुई थी जो साफ-साफ इस बात का संकेत देता है कि ये घटना कोई आकस्मिक घटना नहीं बल्कि पूरे सोच विचार कर एक प्लान के तहत की गई थी. इस दुखद घटना के बाद से गुजरात में दंगे भड़क गए थे.
मामले की सुनवाई के दौरान जज का कहना था कि गोधरा में हिन्दू-मुस्लिम दोनों की जनसंख्या लगभग बराबर है. जज ने कहा, ‘गोधरा सांप्रदायिक दंगों के इतिहास के लिए जाना जाता है. गोधरा के लिए, हिन्दू समुदाय से संबंधित निर्दोष व्यक्तियों को जिंदा जलाने की यह कोई पहली घटना नहीं है.’ इस दौरान कोर्ट ने 1965 से लेकर 1992 तक की 10 ऐसी घटनाओं का भी जिक्र किया, जिनमें इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं को जिंदा जलाया था.
गोधरा कांड में शामिल 31 दोषियों को 9 साल बाद दोषी ठहराया गया था. साल 2011 में एसआईटी कोर्ट ने इस कांड में शामिल 11 दोषियों को फांसी की सजा तो वहीं 20 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. लेकिन वर्ष 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
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