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चंद्रशेखर आजाद पुण्यतिथि: जिनके नाम से कांपते थे अंग्रेज, जानिए उस महान क्रांतिकारी के जीवन से जुड़ी खास बातें

देश में जब-जब आजादी के लिए शहीद हुए क्रांतिकारियों को याद किया जाएगा, उसमें चंद्रशेखर आजाद का नाम जरूर लिया जाएगा. किस तरह उनका नाम सुनते ही अंग्रेजों की रूह कांप जाती थी.

Editor Ritam Hindi by Editor Ritam Hindi
Feb 27, 2024, 02:09 pm IST
Chandra Shekhar Azad Punyatithi

Chandra Shekhar Azad Punyatithi

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देश में जब-जब आजादी के लिए शहीद हुए क्रांतिकारियों को याद किया जाएगा, उसमें चंद्रशेखर आजाद का नाम जरूर लिया जाएगा. किस तरह उनका नाम सुनते ही अंग्रेजों की रूह कांप जाती थी. आज 27 फरवरी को चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि है, देश उन्हें नमन कर रहा है. आइए इस मौके पर जानते हैं देशभक्त क्रांतिकारी चंद्रशेखर के जीवन से जुड़े कुछ खास पहलू…

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1960 को भाबरा गांव, अलीपुर जिला, मध्य प्रेदश के ब्राहाण परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था. उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था. आजाद का बचपन जनजातीय समाज के संपर्क में गुजरा था. जिसके चलते वहां उन्होंने बच्चों के साथ धनुष-बाण चलाना सीखा था. उनकी निशानेबाजी की आज भी चर्चा होती है. इसके साथ ही वह आजादी और बलिदान से जुड़ी कुछ कविताएं भी लिखते थे, जिसकी कुछ पंक्तियां ‘दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे… आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे…’ आज भी लोगों के बीच प्रसिद्ध है.

छोटी उम्र में की गांधी जी से मुलाकात

चंद्रशेखर की उम्र केवल 15 वर्ष थी, जब उन्होंने पहली बार गांधी जी से मुलाकात थी. उसके बाद वह गांधी जी का देश की प्रति लगाव देख उनसे बहुत प्रभावित हुए थे. जिसके बाद आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे. इतना ही नहीं, अंग्रेंजों के खिलाफ आवाज उठाने के चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था, एक बार जज के द्वारा पूछे गए प्रश्नों पर शेखर ने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता और घर का पता जेल बताया था. जिस पर जज काफी क्रोधित हुए थे और उन्हें सजा के तौर पर 15 कोड़े मारने का आदेश दिया. लेकिन आश्चर्य करने वाली बात यह है कि आजाद फिर भी अंग्रेजों के आगे डटे रहे. उन्हें पड़ने वाले हर कोड़े पर आजाद भारत माता की जय, वंदे मातरम और महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहे. इसी साहस के चलते उनके नाम में आजाद को शामिल किया गया.

बिस्मिल से मिलने के बाद क्रांति की चिंगारी बनी ज्वाला

गांधी जी के मिलने के कुछ समय उनके बाद उनकी मुलाकात क्रांतिकारी मन्मथनाथ से हुई थी, जिन्होंने उन्हें रामप्रसाद बिस्मिल से मिलवाया था. जिसके बाद से हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में शामिल होने का निर्णय लिया था. उस दौरान आजाद में काफी सारे बदलाव आए. वह बड़े क्रांतिकारियों में गिने जाने लगे.

इस तरह हुए थे वीरगति को प्राप्त

27 फरवरी, 1931 में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया था. आजाद ने कसम खाते हुए कहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए, परंतु वह जिंदा अंग्रेजों के हाथ कभी नहीं आएंगे. यही वजह थी कि घिर जाने के बाद पहले उन्होंने खुद वहां मौजूद अंग्रेज सिपाहियों से डट कर मुकाबला किया, परंतु जब उनकी बंदूक में आखिरी गोली बची, तो उन्होंने वह खुद पर चला दी थी. उनका बलिदान देश सदा याद करता रहेगा.

Tags: Chandra Shekhar Azad PunyatithiChandra Shekhar Azad
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