सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (4 मार्च) को सदन में वोट के बदले नोट केस को लेकर बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने सदन में पैसे लेकर वोट या भाषण देने वाले सांसदों/विधायकों को कानूनी संरक्षण देने से मना कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने 4 मार्च को साफ कर दिया कि अगर कोई विधायक या सांसद नोट के बदले वोट या भाषण देते हैं तो उनके खिलाफ केस चलाया जा सकेगा. SC ने 1998 के पी. वी. नरसिम्हा राव मामले का फैसला बदल दिया है. आखिर क्या था 1998 का पी वी नरसिम्हा राव मामले का फैसला जिसको कोर्ट ने बदल दिया है आइये समझते हैं.
क्या है शिबू सोरेन रिश्वतकांड मामला?
1998 के नरसिम्हा राव मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समझने से पहले आपको शिबू सोरेन (Shibu Soren) रिश्वतकांड को समझना होगा. दरअसल, साल 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपनी सरकार बनाई थी और पी. वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे. हालांकि, 2 साल के बाद जुलाई 1993 में मॉनसून सत्र के दौरान उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. जिसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन और उनके पार्टी के 4 सांसदों के खिलाफ आरोप लगा कि उन्होंने पैसे लेकर लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की है और फिर CBI ने आरोपी सांसदों के खिलाफ जांच शुरू कर दी.
हालांकि, इस मामले को लेकर शिबू सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और SC ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत कानूनी कार्रवाई रद्द कर दिया. बता दें कि SC ने 1998 में शिंबू सोरेन और उनके पार्टी के सांसदों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई रोकते हुए संविधान के अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) में सांसदों और विधानसभा के सदस्यों को बैगर किसी चिंता और डर से स्वतंत्र रूप से वोटिंग और भाषण के अधिकार का हवाला दिया था.
सीता सोरेन रिश्वतकांड जिसकी सुनवाई के दौरान SC ने बदला अपना फैसला
सीता सोरेन (Sita Soren) रिश्वतकांड मामला साल 2012 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान का है. दरअसल, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की भाभी सीता सोरेन पर साल 2012 के राज्यसभा चुनाव में पैसे लेकर वोटिंग करने का आरोप लगा था. उस समय सीता सोरेन जामा सीट से विधायक थी. राज्यसभा चुनाव में रिश्वत लेने के आरोपों के बाद उनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हुआ. हालांकि, उन्होंने हाईकोर्ट में इस मामले को रद्द करने के लिए याचिक दायर कर दिया था. लेकिन 17 फरवरी 2014 को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए आपराधिक केस रद्द करने से इनकार कर दिया.
जिसके बाद सीता सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए अपने ससुर शिबू सोरेन के 1998 के नरसिम्हा राव वाले मामले का हवाला दिया था. हालांकि, सोमवार (4 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने सीता सोरने के हवालों को गलत मानते हुए 5 जजों के 1998 के नरसिम्हा राव के फैसले को भी पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से अब सदन में पैसे लेकर वोट या भाषण देने वाले सांसदों/विधायकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी.
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