लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही केंद्र सरकार ने देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (CAA) लागू कर दिया है. केंद्र सरकार ने इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी है. यह कानून संसद के दोनों सदनों से 4 साल पहले मंजूर हो गया था. राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई थी. सिर्फ नोटिफिकेशन जारी होने का इंतजार किया जा रहा था. और अब 4 साल के इंतजार और 8 एक्सटेंशन के बाद सरकार ने आखिरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. ऐसे में लोगों के मन में नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर कई सवाल आ रहे होंगे. यहां हम आपके सभी सवालों का जवाब देंगे.
1. संसद में कब पर आया नागरिकता संशोधन अधिनियम बिल?
नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. बिल लोकसभा से पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर 2019 का चुनाव आ गया. फिर से मोदी सरकार बनी. दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया गया. इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों ही सदनों से पास हो गया. इसके बाद 10 जनवरी 2020 को बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी.
2. इतने वर्षों तक क्यों अटका रहा नागरिकता संशोधन अधिनियम?
नागरिकता संशोधन अधिनियम के लागू होने में देरी के कई कारण रहे हैं. शुरुआती विरोध के कारण पूरे देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम पर बहस तेज हो गई थी. विशेषकर असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में व्यापक प्रदर्शनों ने चिंताएं बढ़ा दी थीं. दिल्ली और असम में इसे लेकर कई विरोध प्रदर्शन हुए. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं और इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गएं.आलोचकों ने तर्क दिया कि ये कानून भेदभावपूर्ण है. इसमें म्यांमार के रोहिंग्या और तिब्बती बौद्धों जैसे कुछ उत्पीड़ित समूहों को शामिल नहीं किया गया है. इस बीच कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया. जिससे विरोध-प्रदर्शन थम गए थे. फिर नागरिकता संशोधन अधिनियम पर लंबी खामोशी बनी रही. संसद में पारित होने के 4 वर्ष बाद भी नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू नहीं हो सका. इसके नियमों और प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाना बाकी था.
3. लगातार एक्सटेंशन क्यों लेती रही केंद्र सरकार?
दरअसल, संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के अनुसार किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के 6 महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए. ऐसा ना होने पर लोकसभा और राज्यसभा में अधीनस्थ विधान समितियों से एक्सटेंशन की मांग की जानी चाहिए. नागरिकता संशोधन अधिनियम के केस में 2020 से गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए संसदीय समितियों से नियमित अंतराल में विस्तार लेता रहा है.
4. किन लोगों को दी जाएगी नागरिकता?
नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है. बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई समुदायों से आने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम को संशोधित किया गया है. ऐसे प्रवासी नागरिक, जो अपने देशों में धार्मिक उत्पीड़न से तंग आकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आकर शरण ले चुके हैं. इस कानून के तहत उन सभी लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज (पासपोर्ट और वीजा) के बगैर घुस आए हैं या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन तय अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक गए हों.
5. आवेदक कैसे करें आवेदन?
केंद्र सरकार ने पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन किया है. ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदक अपने मोबाइल फोन से भी एप्लाई कर सकता है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था. आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा. इन एप्लीकेशन को गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता जारी कर देगा.
6. क्या अब तक किसी को नागरिकता नहीं मिली?
सरकार ने 9 राज्यों के डीएम को नागरिकता देने के मामले में बड़े अधिकार दिए हैं. पिछले 2 साल में 9 राज्यों के 30 से ज्यादा जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को अथॉरिटी दी गई है. डीएम को अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां मिली हैं. गृह मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 1 अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक इन गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है. जिन 9 राज्यों में नागरिकता दी गई है, उनमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का नाम शामिल है.
7. नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होने से क्या किसी की नागरिकता जाएगी?
सरकार ने साफ किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम में किसी भी भारतीय की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है. गृह मंत्री का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम किसी की नागरिकता छीनने का कानून नहीं है. नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए गैर मुस्लिम छह समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है.
8. आमतौर पर कैसे मिलती है देश कि नागरिकता?
कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी होता है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश) के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, फिर चाहे वो किसी भी धर्म के हों.
9. उत्तर-पूर्व में क्यों बस गए शरणार्थी?
– उत्तर-पूर्व इस समय अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ बन गया है. इसकी वजह भी सामने आई है. दरअसल, पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (वर्तमान में बांग्लादेश) में बड़ी संख्या में बंगाली भाषी बसे हुए थे, जिन पर लगातार हिंसा हो रही थी. वहां युद्ध हुआ और बांग्लादेश बन गया. लेकिन, कुछ ही समय में बांग्लादेश में भी हिंदू बंगालियों पर अत्याचार होने लगे, क्योंकि बांग्लादेश भी मुस्लिम बहुसंख्यक है.
– पाकिस्तान और बांग्लादेश में अत्याचार से परेशान होकर लोगों ने पलायन शुरू कर दिया और भागकर भारत आने लगे. इन लोगों को वैसे तो अलग-अलग राज्यों में बसाया जा रहा था, लेकिन पूर्वोत्तर का कल्चर इन्हें अपने ज्यादा करीब लगा और वह वहीं बसने लगे. चूंकि पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है इसलिए भी वहां से लोगों का आना आसान होता है.
10. नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होने से क्या बदल जाएगा?
मेघालय में वैसे तो गारो और जैंतिया जैसी ट्राइब वहां के मूल निवासी हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों के आने के बाद वे पीछे रह गए. हर जगह माइनोरिटी का दबदबा हो गया. इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय वहां के मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं. यहां तक कि सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके ही पास जा चुके हैं. अब अगर नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होता है तो मूल निवासियों की बचीखुची ताकत भी चली जाएगी. दूसरे देशों से आकर बसे हुए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर अधिकार कर लेंगे. यही डर है, जिसकी वजह से पूर्वोत्तर नागरिकता संशोधन अधिनियम का भारी विरोध कर रहा है.
11. असम में क्या फर्क पड़ेगा?
असम में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. असम के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम कमेटी ने वर्ष 2019 यह दावा किया था. यही हालात बाकी राज्यों के भी हैं.
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