होलिका दहन की लपटें बहुत शुभकारी होती हैं. होलिका दहन की अग्नि में हर चिंता, दुख और तकलीफ भस्म हो जाती है. होलिका दहन की इस अग्नि से इच्छाओं को पूर्ण होने का वरदान मिलता है. बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी है. ये मान्यता है कि विधि विधान से होलिका पूजा और दहन करने से सारी मुश्किलें जल्द ही समाप्त हो जाती हैं. हर साल फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है. फिर अगले दिन यानी चैत्र प्रतिपदा के दिन रंग वाली होली खेली जाती है. ऐसे में सवाल ये कि आखिर होलिका दहन की प्रथा कैसे शुरू हुई? और इसका महत्व क्या है? तो आइए जानते इसके पीछे की पौराणिक कथा…
क्यों मनाया जाता है ये त्योहार?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकशिपु नाम का एक राजा था, जो कई असुरों की ही तरह, अमर होने की कामना करता था. अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए, उसने ब्रह्मा जी से वरदान पाने के लिए कठोर तपस्या की. प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हिरण्यकशिपु को वरदान स्वरूप उसकी पांच इच्छाओं को पूरा किया: कि वह ब्रह्मा द्वारा बनाए गए किसी भी प्राणी के हाथों नहीं मरेगा, कि वह दिन या रात, किसी भी हथियार से, पृथ्वी पर या आकाश में, अंदर या बाहर नष्ट नहीं होगा, पुरुषों या जानवरों, देवों या असुरों द्वारा नहीं मरेगा यही नहीं उसने ब्रह्मा से मांगा कि वह अप्रतिम हो, उसके पास कभी न खत्म होने वाली शक्ति हो, और वह सारी सृष्टि का एकमात्र शासक हो. वरदान प्राप्ति के बाद हिरण्यकशिपु ने लगा कि वह अजेय हो गया है. लंबे समय तक ऐसा हुआ भी. जिस किसी ने भी उसके वर्चस्व पर आपत्ति जताई, उसने उन सभी को दंडित किया और मार डाला.
हिरण्यकशिपु का एक पुत्र था प्रह्लाद. जो विष्णु को बहुत बड़ा भक्त था. हिरण्यकशिपु चाहता था कि उसका पुत्र उनकी पूजा करे लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता को एक देवता के रूप में पूजने से इनकार कर दिया. उसने विष्णु में विश्वास करना और उनकी पूजा करना जारी रखा.
प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति आस्था ने हिरण्यकशिपु को बहुत क्रोधित कर दिया, और उसने अपने ही पुत्र को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन वह असफल रहा. एक बार राजा हिरण्यकशिपु की ने बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने के लिए कहा. दरअसल विष्णु पुराण के अनुसार, होलिका को ब्रह्माजी से वरदान में ऐसा वस्त्र मिला था जो कभी आग से जल नहीं सकता था. होलिका उसी वस्त्र को ओढ़कर प्रह्लाद को जलाने के लिए आग में बैठ गई. जैसे ही प्रह्लाद ने भगवान विष्णु के नाम का जाप किया, होलिका का अग्निरोधक वस्त्र प्रह्लाद के ऊपर आ गया और वह बच गया, जबकि होलिका भस्म हो गई.
मान्यता है, कि तब से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के उत्साह के रुप में सदियों से हर वर्ष होलिका दहन मनाया जाता है. होलिका दहन की कथा पाप पर धर्म की विजय का प्रतीक है.
कमेंट