देश में चर्चा का केंद्र बने कच्चातिवु द्वीप पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान विदेश मंत्री ने कच्चातिवु द्वीप मामले की पूरी कहानी बताई. जयशंकर ने कहा कि डीएमके ने तमिलनाडु के लिए कुछ नहीं किया.आंकड़ों से डीएमके का दोहरा चरित्र साफ दिखई देता है.
जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत करते हुए कहा कि सबसे पहले मैं समझा दूं कि आखिर कच्चातिवु द्वीप का मामला है क्या और आज के समय ये क्यों प्रासंगिक है. जयशंकर ने बताया कि जून 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ, जहां दोनों देशों ने समुद्री सीमा तय किए और सीमा तय करते हुए भारत ने श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप सौंप दिया.
जयशंकर ने इस समझौते के अंतर्गत तीन खंडों के बारे में बताया. पहले खंड के अनुसार, दोनों देश समुद्री सीमा की संप्रभुता का पालन करेंगे. यानी दोनों देश एक-दूसरे देशों की समुद्री सीमा को नहीं का उल्लंघन नहीं करेंगे. दूसरा खंड में भारत के मछुआरों को कच्चातिवु द्वीप जाकर मछलियां पकड़ने की इजाजत दी गई और इसके लिए उन्हें किसी तरह के कागजात की जरूरत नहीं होगी. तो वहीं तीसरा खंड ये था कि दोनों देशों के जहाज इस रूट से आवाजाही करते रहेंगे.
जयशंकर ने बताया जून 1974 के समय दोनों देशों की बीच ये समझौते हुए. तत्कालीन सरकार ने संसद में दावा किया था कि इस समझौते से भारत के मछुआरों के अधिकारों को नहीं छीना गया है. इसके दो वर्षो के बाद 1976 में दोनों देशों के बीच चिट्ठी लिखी गई. दो वर्ष के बाद सरकार ने फैसला कर लिया कि भारत के मछुआरे श्रीलंका की सीमा में दाखिल नहीं होंगे. तो सरकार यह रवैया कुछ ऐसा था,जिसकी वजह से विवाद गहराता चला गया.
विदेश मंत्री ने आगे कहा कि पिछले 20 वर्षों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है और 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका द्वारा जब्त कर लिए गए. पिछले 5 वर्षों में कच्चातिवु का मुद्दा और मछुआरों का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है. यह संसद के सवालों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है. जयशंकर ने कहा कि तत्कालीन सीएम तमिलनाडु सरकार ने मुझे कई बार लिखा है और मेरा रिकॉर्ड बताता है कि वर्तमान सीएम को मैंने इस मुद्दे पर 21 बार जवाब दिया है.
जयशंकर ने कहा कि यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो अचानक सामने आ गया हो. यह एक ऐसा मुद्दा है जो संसद और तमिलनाडु हलकों में इस पर वर्षों बहस हुई है. यह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच चर्चा का विषय रहा है. अब तमिलनाडु में हर राजनीतिक दल ने इस मामले में अपना कुख अपनाया है और इस तरह पेश आ रहे हैं जैसे दोनों पार्टियों, कांग्रेस और द्रमुक की इस मामले कोई जिम्मेदारी ना हो.
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