भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपित गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. कोर्ट ने गौतम नवलखा से मंगलवार को साफ कर दिया कि नजरबंदी के दौरान मुहैया कराए गए पुलिस कर्मियों के खर्च का भुदतान करना होगा.
कोर्ट ने कहा कि आपने स्वयं घर में नजरबंदी का अनुरोध किया था. ऐसे में आप नजरबंदी के दौरान महाराष्ट्र सरकार द्वारा सुरक्षा के लिए मुहैया कराए गए पुलिस कर्मियों का खर्च उठाने के दायित्व से बच नहीं सकते हैं.
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने यह तब कहा जब एनआईए का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने कहा कि नवलखा पर एजेंसी का लगभग 1.64 करोड़ रुपये बकाया है. इस राशि का भुगतान गौतम नवलखा को कड़ना पड़ेगा. नवलखा की ओर से पेश वकील ने नजरबंदी के लिए भुगतान करने की इच्छा व्यक्त की लेकिन रकम को लेकर आपत्ति जताई है.
दूसरी ओर एसवी राजू ने कहा,”उनकी नजरबंदी के दौरान सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात किए गए हैं. नवलखा ने पहले 10 लाख रुपये का भुगतान किया था और अब वह भुगतान नहीं रहे हैं. यह प्रतिदिन बढ़ रहा है और वह इससे बच नहीं सकते हैं.” गौरतलब है कि नवलखा नवंबर 2022 से मुंबई में सार्वजनिक पुस्तकालय में नजरबंद हैं.
एसवी राजू की दलील पर जवाब देते हुए नवलखा के वकील ने कहा कि भुगतान में समस्या नहीं है लेकिन मुद्दा गणना का है. आपको बता दें कि गत 7 मार्च को नवलखा के वकील ने शीर्ष अदालत में इस सुरक्षा खर्च के आंकड़े पर विवाद खड़ा कर दिया था और एजेंसी पर ‘जबरन वसूली’ का आरोप लगाया था.
नवलखा ने की थी नजरबंदी की मांग
अगस्त 2018 में गिरफ्तार किए गए नवलखा ने शीर्ष अदालत से मांग की थी कि उसे महाराष्ट्र की तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत के बजाय घर में नजरबंद रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा की मांग को स्वीकार कर लिया था. और 10 नवंबर, 2022 को नवलखा बिगड़ते स्वास्थ्य की वजह से घर में नजरबंद करने की अनुमति दी थी.
नवलखा पर क्या है आरोप?
भीमा कोरेगांव मामले में कई नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं में से एक नवलखा पर सरकार गिराने की कथित साजिश के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के कड़े प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है. उन्हें जांच एजेंसी ने अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया था.
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