देश में बैसाखी का पर्व आज 13 मार्च को मनाया जा रहा है. इस पर्व को सिख समुदाय के लोग नव वर्ष के रूप में बहुत धूमधाम से मनाते हैं. इस पर्व को मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. वैशाख महीने में रबी की फसल तैयार होती है. इस फसल की अच्छी पैदावार के लिए सिख अनाज की पूजा कर, प्रभु को धन्यवाद देते हैं. तो आइए जानते हैं क्या है इस पर्व का महत्व और इतिहास?
कैसे मनाते हैं बैसाखी का पर्व?
बैसाखी के दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारे को भव्य तरीके से सजाते हैं और गुरु वाणी सुनते हैं. लोग अपने-अपने घरों में पूजा-अर्चना भी करते हैं. इसके अलावा घर के बाहर लकड़ी का घेरा बना कर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य कर इस पर्व का आनन्द लेते हैं और लोग एक दूसरे को गले लगाकर बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं. इस मौके पर शरबत और विशेष तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं.
बैसाखी का महत्व
बैसाखी पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. यह त्योहार पंजाबी नए वर्ष की शुरुआत का दिन है. बैसाखी को पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. इस महीने में रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी की जाती है. बैसाखी फसल, नई शुरुआत और सिख समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के उत्सव के रूप में मनाया जाता है. वर्ष 1699 में सिख पंथ के गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने इस दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस दिन से सिखों के नए वर्ष की शुरुआत होती है.
बैसाखी का इतिहास
30 मार्च 1699 में बैसाखी पर्व की शुरुआत हुई थी. इस दिन सिख पंथ के गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. तभी से बैसाखी का त्योहार मनाया जाता आ रहा है. गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख समुदाय के लोगों से गुरु और भगवान के लिए बलिदान देने के लिए आगे आने को कहा था. जिन लोगों ने बलिदान दिया था, उन्हें पंज प्यारे कहा जाता था. जिसका मतलब गुरु के पांच प्रियजन है. सिखों के लिए बैसाखी के दिन से ही नव वर्ष की शुरुआत होती है. इसके अलावा बैसाखी के दिन कार्यभार सौंपा था. जिन्होंने एकीकृत राज्य की स्थापना की थी.
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