डॉ. बीआर आम्बेडकर वाकई भारत रत्न हैं. प्रख्यात मनीषी, संविधान सर्जक व श्रद्धेय राष्ट्रनिर्माता. वे अद्वितीय थे, प्रेरक थे, अमर थे. उन्होंने भारतीय सार्वजनिक जीवन में हस्तक्षेप किया. उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और विचार आधुनिक राजनीति को भी लगातार प्रभावित कर रहे हैं. वे अपने जीवनकाल से ज्यादा आधुनिक काल में भी प्रभावी हैं. वर्तमान जैसे विद्यमान श्रीमान है. प्रखर राष्ट्रवादी हैं. डॉ. आम्बेडकर अपने समकालीन विद्वानों, राजनेताओं के मध्य श्रेष्ठ बुद्धिजीवी थे. राष्ट्रनिष्ठ और बहुपठित थे. वे भारतीय समाज संरचना के तर्कनिष्ठ आलोचक थे. उन्होंने ऋग्वेद सहित सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय वाड्.मय पढ़ा. उपनिषद पुराण और स्मृति ग्रन्थ भी उनके प्रिय विषय रहे. उन्होंने प्राचीन इतिहास का गहन अध्ययन किया. मार्क्सवाद पढ़ा और भारतीय परिस्थितियों खासतौर से दलितों के लिए अनुपयोगी बताया. उन्होंने बहुचर्चित ‘आर्य आक्रमण के सिद्धांत’ का प्रतिकार किया. भारतीय इतिहास बोध के प्रेमी उनके ऋणी रहेंगे.
राजनीति ने ‘जाति और शूद्र’ को भारतीय इतिहास का प्राचीन तत्व बनाया है. ब्रिटिश विद्वान व जातिवादी राजनीति का एक बड़ा धड़ा आर्यों को विदेशी हमलावर और शूद्रों को पराजित नस्ल बताता रहा है. डॉ. आम्बेडकर ने लिखा, “यह धारणा गलत है कि आर्य आक्रमणकारियों ने शूद्रों को जीता. पहली बात तो यह कि आर्य भारत में बाहर से आए थे और उन्होंने यहां के मूल निवासियों पर आक्रमण किया, इस कहानी के समर्थन के लिए कोई भी प्रमाण नहीं है. भारत ही आर्यों का मूल निवास स्थान था, यह सिद्ध करने के लिए प्रमाण-सामग्री काफी बड़े परिमाण में है. आर्यों और दस्युओं में युद्ध हुआ, यह साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है. फिर दस्युओं का शूद्रों से कुछ लेना-देना नहीं है.” (डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर राइटिंग्स एण्ड स्पीचेज खण्ड 7 पृष्ठ 420) आर्यों को विदेशी मानने का झूठ अभी भी जारी है.
डॉ. आम्बेडकर की पुस्तक “हू वेयर शूद्राज” (शूद्र कौन थे?) (1946) पठनीय है. उन्होंने एक विद्वान अधिवक्ता की तरह पहले पाश्चात्य विद्वानों के विचार दिये हैं. उन स्थापनाओं को तर्क सहित गलत बताया है. उन्होेंने ऐसे विद्वानों की 7 मुख्य स्थापनाएं बनाई – 1. जिन लोगों ने वैदिक साहित्य रचा था, वे आर्य नस्ल के थे. 2. आर्य नस्ल बाहर से आई थी और उसने भारत पर आक्रमण किया था. 3. भारत के निवासी दास और दस्यु रूप में जाने जाते थे और ये आर्यों से नस्ल के विचार से भिन्न थे. 4. आर्य श्वेत नस्ल के थे, दास और दस्यु काली नस्ल के थे. 5. आर्यों ने दासों और दस्युओं पर विजय प्राप्त की. 6. दस और दस्यु विजित होने के बाद दास बना लिए गए और शूद्र कहलाए. 7. आर्यों में रंगभेद की भावना थी. इसलिए उन्होंने चातुर्वण्र्य का निर्माण किया. इसके द्वारा उन्होंने श्वेत नस्ल को काली नस्ल से, यथा दासों और दस्युओं से अलग किया. (वही, खण्ड 7, पृष्ठ 65) इसके बाद सातों विचार बिन्दुओं की सभी स्थापनाओं को गलत बताया. ऋग्वेद के उद्धरण दिये और लिखा “इन (शब्दों) के प्रयोग देखने से निष्कर्ष यह निकलता है कि ये शब्द नस्ल के अर्थ में कहीं भी प्रयुक्त नहीं हुए” (वही पृष्ठ 70) वे आर्यों को विदेशी बताने का तर्क काटते हैं “जहाँ तक वैदिक साहित्य का सम्बंध है, वह इस सिद्धांत के प्रतिकूल है कि आर्यों का मूल निवास भारत से कहीं बाहर था.” (वही) आर्य विदेशी होते तो भारतीय नदियों को माता कहकर प्रणाम न करते. आर्य हम सबके पूर्वज थे.
डॉ. आम्बेडकर ने रंग (वर्ण) भेद के आधार पर आर्यों और शूद्रों को अलग बताने वाली स्थापना को भी गलत बताया. उन्होंने ऋग्वेद के तमाम उद्धरण दिये और लिखा, “आर्य गौर वर्ण के थे और श्याम वर्ण के भी थे. अश्विनी देवों ने श्याव और रूक्षती का विवाह करवाया. श्याव श्याम वर्ण है, रूक्षती गौर वर्ण है.” डाॅ. अम्बेडकर की स्थापना है “इन उद्धरणों से ज्ञात होता है कि वैदिक आर्यों में रंगभेद की भावना नहीं थी. ऋग्वेद के एक ऋषि दीर्घ तमस् है, वे श्याम वर्ण के, और कण्व भी श्याम वर्ण के थे.” आर्यों के दोनों अवतारी पुरुष श्रीराम व श्रीकृष्ण सांवले थे. महाभारत के प्रतिष्ठित योद्धा अर्जुन भी श्याम रंग के थे. समूचा आर्य समाज एक था. हिन्दू प्राचीन आर्य समाज की ही नई संज्ञा है.
डॉ. आम्बेडकर ने लिखा “हिन्दुओं से अछूतों को अलग करने की मांग पर मुसलमानों ने जोर दिया था. 27 जनवरी 1910 को उन्होंने सरकार के सामने एक आवेदन प्रस्तुत किया था. उनका दावा था कि देश की राजनीतिक संस्थाओं में उनके प्रतिनिधित्व का अनुपात सभी हिंदुओं की संख्या के अनुसार निश्चित न किया जाना चाहिए वरन् सवर्ण हिंदुओं की संख्या के अनुरूप ही निश्चित होना चाहिए. उनका कहना था कि अछूत हिंदू नहीं हैं.” (खण्ड 5 पृष्ठ 7) लिखा कि “1909 में मुसलमानों की ओर से आगा खां ने वायसराय मिंटों के सामने आवेदन पेश किया था-राजनीतिक संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में मुसलमानों को पृथक् और पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. 1901 में जो मर्दुमशुमारी हुई थी उसमें मुसलमान कुल आबादी का चैथाई या पांचवां हिस्सा थे. यदि हिन्दू समुदाय से अस्पर्श्य अंगों को निकाल दिया जाए, जो प्रकृति पूजक हैं या छोटे-मोटे धर्म मानने वाले हैं, वे निकाल दिये जाएँ, तो बहुसंख्यक हिंदुओं के मुकाबले मुसलमानों की संख्या का अनुपात पहले से बढ़ जाता है.” (खण्ड 7, पृष्ठ 311-12)
ऋग्वेद में कहीं भी 4 वर्ण नहीं है. शब्द ब्राह्मण का भी वर्ण के अर्थ में प्रयोग नहीं हुआ. डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा (भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेष, पृष्ठ 53) है, “ऋग्वेद में ब्रह्मन् शब्द बहुत बार आया है. इसका अर्थ ब्राह्मण वर्ण नहीं है. ब्रह्मन् की तरह अनेक बार ब्रह्मा का भी प्रयोग हुआ है. इसका मूल अर्थ प्रषस्तिपरक काव्य है. कवि इन्द्र से कहता है, हम तेरे लिए अभूतपूर्व स्तोत्र कहते हैं. (8.90.3) ब्रह्मन् की तरह ब्रह्मा भी कवि, गायक, स्तोता हैं. वशिष्ठ इसी अर्थ में ब्रह्मन् है. (8.90.3) इन्द्र वशिष्ठ से कहते हैं-हे वशिष्ठ, ब्राह्मन्, तू उर्वषी के मन से उत्पन्न हुआ है. (7.33.11) इन तमाम संदर्भों में स्तुति और स्तोत्र की चर्चा है. ब्राह्मणाम् का अर्थ ब्राह्मण जाति या वर्ण नहीं, कवि, ब्र्ह्मकार गायक है.”
राष्ट्र सर्वोपरि आस्था है. डॉ. आम्बेडकर ने लिखा, “भारत एक भौगोलिक इकाई है. इस इकाई का निर्माण प्रकृति ने किया है. यह सही है कि भारतवासी आपस में झगड़ते रहते हैं परन्तु इन झगड़ों से उस एकता का नाश नहीं हो सकता जो प्रकृति के समान ही सनातन है. भौगोलिक एकता के साथ ही यहां सांस्कृतिक एकता भी है.”
डॉ० आम्बेडकर के निष्कर्ष रोमांचकारी हैं. भारत प्रकृति निर्मित राष्ट्र है. राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता प्रकृति के समान सनातन है. संविधान निर्माण के आखिरी दिन (25.11.1949) उन्होंने भावुक भाषण दिया. अन्त में कहा, “यहां मैं अपना भाषण खत्म कर देता किन्तु मेरा मस्तिष्क देश की भविष्य चिन्ता से परिपूर्ण है. क्या भारत अपनी स्वतंत्रता बनाये रखने में कामयाब होगा? जाति और मत-मतान्तर राजनैतिक पक्ष बन रहे हैं. क्या भारतीय मत-मतान्तरों को राष्ट्र से श्रेष्ठ मानेंगे या राष्ट्र के मत मतान्तरों से ऊपर?” डॉ. आम्बेडकर की आस्था का केन्द्र राष्ट्र था. हम सबको अपने भारत रत्न पर गर्व है.
(लेखक, उप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं.)
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