दिल्ली का शराब घोटला इन दिनों खूब चर्चा में है. अरविंद केजरीवाल के खिलाफ ई़डी ने तमाम सबूत एकत्रित किए हैं. देखा जाए तो अब अरविंद केजरीवाल का बच पाना मुमकिन नजर नहीं आ रहा है. इस मामले में केजरीवाल के अलावा आम आदमी पार्टी के कई शीर्श नेतृत्व पर भी जांच एजेंसियों ने शिकंजा कसा है. आपको बता दें कि केजरीवाल सरकार फिलहाल शराब घोटाला से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले को लेकर चर्चाओं में हैं. लेकिन दिल्ली आबकारी नीति घोटाले के अवाला भी केजरीवाल सरकार के खिलाफ कई मामले हैं. तो चलिए हम आपको इन घोटालों को बारे में बताते हैं-
फीडबैक यूनिट मामला
केजरीवाल की सरकार वर्ष 2012 में सत्ता में आई थी. भ्रष्टाचार के मुद्दे को आधार बना कर सत्ता में आने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के खिलाफ 2015 के फीडबैक यूनिट मामले को लेकर भी जांच जारी है. वर्ष 2015 में दोबारा सरकार बनने के बाद सितंबर में दिल्ली सरकार ने एक फीडबैक यूनिट (FBU) बनाई थी जिसका काम हर विभाग पर नजर रखना था. इस समय ये तर्क दिया गया था कि FBU के गठन के पीछे सरकार का मतसद है कि इसके तमाम विभागों के भ्रष्टाचार पर नजर रखना. लेकिन गठन के समय बाद ही केजरीवाल गर्वमेंट पर आरोप लगे कि इसके जरिए वो विपक्षी दलों के कामकाज पर नजर रख रही थी.
दरअसल, दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग के एक अधिकारी की शिकायत पर CBI ने मामले में प्रारंभिक जांच की थी. 2016 में CBI की ओर से कहा गया कि FBU ने सौंपे गए कामों के अलावा भी विपक्ष के नेताओं की जासूसी की थी. CBI ने इस मामले के बारे में जानकारी देते हुए ये दावा किया कि महज 8 महीनों के भीतर FBU ने 700 से ज्यादा मामलों की जांच की जिसमें से तकरीबन 60% मामलों में राजनीतिक खुफिया जानकारी जुटाई गई थी. फीडबैक यूनिट मनीष सिसोदिया के ही अधीन काम कर रही थी ऐसे में राष्ट्रपति ने 17 फरवरी 2023 को केंद्र सरकार की ओर से सिसोदिया के खिलाफ केस चलाने की अनुमति दी थी.फिलहाल इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है.
अस्पतालों में नकली दवाओं का मामला
बीते वर्ष ही दिल्ली सरकार के अस्पतालों में खराब गुणवत्ता वाले दवाओं का मामला सामने आया था. ये मामला तब सामने आया जब Amlodipine, Levetiracetam, Pantoprazole दवाएं टेस्टिंग में फेल हो गई. इसके बाद दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने विजिलेंस विभाग की रिपोर्ट के आधार पर मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की थी.
मोहल्ला क्लीनिकों में इलाज में फर्जीवाड़े से जुड़ा मामला
ये मामला दिल्ली की मोगल्ला क्लीनिकों में इलाज में फर्जीवाड़े से जुड़ा है. आरोप है कि इन क्लीनिकों में फर्जी मरीजों के नाम पर जांच कर बिल बनाया गया. सतर्कता निदेशालय की रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि दिल्ली में संचालित हो रहे मोहल्ला क्लीनिकों में ऐसे मरीजों के नाम पर बिल बनाएं गए जो वास्तव में अस्तित्व में थे हीं नहीं. रिपोर्ट के अनुसार नकली मरीजों के नकली रिपोर्ट तैयार किए गए. इस मामले में करीब 100 करोड़ के घपले का आरोप है. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है.
जल बोर्ड घोटाला
दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व मुख्य अभियंता जगदीश कुमार अरोड़ा के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने एनकेजी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को गलत तरह से 38 करोड़ रुपए का ठेका दिया.
दिल्ली की एंटी करप्शन को मिली शिकायत के अनुसार दिल्ली जल बोर्ड ने कॉर्पोरेशन बैंक को अपने उपभोक्ताओं के बिल कलेक्शन का जिम्मा दिया था. इसके लिए बैंक के साथ 2012 में 3 साल के लिए कॉन्ट्रेक्ट हुआ. बाद में इसे 2016, फिर 2017 और फिर 2019 तक के लिए बढ़ा दिया गया. उपभोक्ताओं के कैश और चेक के लिए जल बोर्ड के ही स्थानीय दफ्तरों में ई-क्योस्क मशीनें लगाई गईं ताकि उपभोक्ता अपने-अपने पानी के बिलों का भुगतान जमा करा सकें.
एंटी करप्शन ब्यूरो के अनुसार, कॉरपोरेशन बैंक ने कैश और चेक कलेक्शन की जिम्मेदारी M/s Freshpay IT Solution Pvt Ltd को सौंप दी. उसे इस पैसे को सीधा दिल्ली जल बोर्ड के एकाउंट में जमा कराना चाहिए था लेकिन इस कंपनी ने ई-क्योस्क मशीन से चेक और कैश कलेक्ट कर फेडरल बैंक के खाते में जमा करा दिए थे. फेडरल बैंक के जिस खाते में M/s Freshpay IT Solution Pvt Ltd ने पैसा जमा कराया वह खाता M/s Aurrum E-Payment Pvt Ltd के नाम था.
इसके बाद फेडरल बैंक के जिस खाते में पैसा जमा कराया गया था, उस खाते से RTGS के जरिए अलग-अलग तारीखों में पैसा ट्रांसफर कर दिया गया लेकिन पैसा जल बोर्ड के अकाउंट में ट्रांसफर न करके कहीं और किया गया. साल 2019 में इस फर्जीवाड़े की जानकारी दिल्ली जल बोर्ड को हुई. लेकिन जल बोर्ड ने अपना पैसा रिकवर करने के बजाए कॉन्ट्रेक्ट रिन्यू किया. चेक और कैश कलेक्शन के लिए दी जाने वाली फीस 5 रुपये प्रति बिल की जगह बढ़ाकर 6 रुपये कर दिया.
स्कूल रूम घोटाला
अप्रैल 2015 में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने PWD को दिल्ली के 193 सरकारी स्कूलों में 2405 एक्स्ट्रा क्लासरूम बनाने के निर्देश दिए थे. CVC ने 17 फरवरी 2020 की एक रिपोर्ट में PWD के दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हुए भ्रष्टाचार को बताया. विभाग ने रिपोर्ट भेजकर DoV से जवाब मांगा था. लेकिन इस मामले को तब दबाया गया. अगस्त 2022 में दिल्ली LG के मुख्य सचिव को निर्देश पर रिपोर्ट तैयार की गई.
आयोग को 25 अगस्त 2019 को क्लासरूम कंस्ट्रक्शन में भ्रष्टाचार और लागत बढ़ने की शिकायत मिली थी. बेहतर सुविधाओं के नाम पर कंस्ट्रक्शन कॉस्ट 90% तक बढ़ाई गई थी. केजरीवाल सरकार ने बिना टेंडर के 500 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी को मंजूरी भी दे दी. रिपोर्ट में कहा गया कि जीएफआर, सीपीडब्ल्यूडी वर्क्स मैनुअल का जमकर उल्लंघन करते हुए घटिया क्वालिटी का अधूरा काम भी किया. इस मामले में 1 वर्ष पहले 1300 करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपी गई थी.
मुख्यमंत्री आवास नवीनीकरण घोटाला या शीशमहल घोटाला
सीएम अरविंद केजरीवाल के आवास के नवीनीकरण में खर्च हुए 45 करोड़ रुपये में वित्तीय नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगा है. आरोप है लगभग 45 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए कोई भी सार्वजनिक निविदा जारी नहीं की गई.
दरअसल, 10 करोड़ से अधिक की किसी भी योजना की सैद्धांतिक मंजूरी के लिए मुख्य अभियंता के अनुमोदन की आवश्यक्ता होती है, लेकिन उस प्रक्रिया से बचने के लिए दिल्ली मुख्यमंत्री आवास के जीर्णोद्धार में 10 करोड़ से कम की कई योजनाएं बनाकर निर्माण कार्य पूरा कराया गया, ताकि योजना की मंजूरी के लिए सचिव और मुख्य अभियंता स्तर के अधिकारियों तक फाइल न भेजी ही जाए.
राशन घोटाला
कैग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में चार लाख फर्जी राशन कार्ड मिले. जिससे 150 करोड़ रुपये प्रति माह का राशन एडजस्ट करने की कोशिश हुई.
आम तौर पर राशन कार्ड घर की महिला सदस्यों के नाम पर बनाया जाता है, रिपोर्ट में पाया गया कि 13 मामलों में घर की सबसे बड़ी सदस्य की उम्र 18 साल से नीचे की पाई गई. 12,852 मामलों में तो घर में एक भी महिला सदस्य नहीं पाई गई. यहीं नहीं 412 राशन कार्ड तो ऐसे पाए गए जिनमें परिवार के एक सदस्य का नाम कई बार लिखा गया था. रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि सभी राशन कार्ड धारकों को एसएमएस पर अलर्ट आने थे, लेकिन 2453 मामलों में नंबर राशन दुकानदारों के ही निकले.
तो वहीं राशन का सामान ढोने वाली 207 गाड़ियों में 42 गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन परिवहन विभाग के पास था ही नहीं. इसके अलावा 8 गाड़ियां ऐसी थीं जिन्होंने 1500 क्विंटल से ज्यादा राशन ढुलाई की, लेकिन उनके रजिस्ट्रेशन नंबर बस, टू व्हीलर या थ्री व्हीलर का था. यही नहीं अधिकारियों ने तो फिल्ड इंस्पेक्शन भी नहीं किया. इस मामले में आरोप है कि 3 वर्षों में 5400 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ.
श्रम विभाग गैर निर्माण श्रमिक पंजीकरण घोटाला
वर्ष 2018 में दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड (डीबीओसीडब्ल्यूडब्ल्यू) के कामकाज में कथित अनियमितताओं की शिकायत हुई. दिल्ली में भवन और अन्य निर्माण गतिविधियों से जुड़े 13,13,309 श्रमिक बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं जिनमें 9,07,739 श्रमिक 2018 और 2021 के बीच पंजीकृत हुए. एलजी वी के सक्सेना द्वारा दिए गए आदेश के बाद इस मामले की जांच हुई.
दिल्ली सरकार के श्रम विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए 2018 और 2021 के बीच पंजीकृत नौ लाख से अधिक श्रमिकों के रिकॉर्ड की प्रारंभिक जांच में सामने आया कि 1,11,516 फर्जी प्रविष्टियां हैं. सामान्य मोबाइल नंबर वाले 65,000 कर्मचारी, समान स्थानीय आवासीय पते के साथ 15,747 और एक ही स्थायी पते के साथ 4,370 प्रविष्टियां संदिग्ध पाई गई.
पैनिक बटन के नाम पर 500 करोड़ के घोटाले का आरोप
ये महिला सुरक्षा के नाम पर सबसे बड़े घोटालों में एक है. दरअसल पिछले वर्ष दिल्ली बीजेपी ने आरोप लगाया था कि AAP और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने सार्वजनिक के मालिकों से मामूली शुल्क लेकर टैक्सियों और बसों सहित सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों में पैनिक बटन लगाए.
आरोप के अनुसार आप सरकार ने ‘पैनिक बटन शुल्क’ फीस के तौर पर 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की वसूली की. बीजोपी ने आरोप लगाए कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर लगाए गए ये बटन निष्क्रिय रहते हैं.
कमेंट