बांदा: देश में आजादी के बाद लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव, कांग्रेस का तिरंगा परचम फहराता रहा. 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों ने हैट्रिक लगाई. लेकिन अब कांग्रेस की दुर्गती ऐसी हो गई है कि पूरे बुंदेलखंड में हाथ कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.
बांदा चित्रकूट संसदीय सीट में तो कांग्रेस को पिछले 40 वर्षों से जीत नसीब नहीं हुई. पिछले चुनाव में बुंदेलखंड की सभी चारों सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई थी. अब हालात यह है की झांसी को छोड़कर तीन सीटों पर इस बार कांग्रेस का सिंबल हाथ का पंजा नजर नहीं आएगा.
बुंदेलखंड में आजादी के बाद 1991 तक कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे. झांसी लोकसभा में 1952, 57, 62, 67, 71, 80 और 1984 में कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. जालौन लोकसभा में कांग्रेस ने 1952, 57, 62, 67 व 1971 में जीत दर्ज की. बांदा चित्रकूट संसदीय सीट पर 1952 और 1957 में कांग्रेस ने जीत हासिल की इसके बाद कम्युनिस्ट और कांग्रेस के बीच मुकाबला होने से कभी कांग्रेस तो कभी कम्युनिस्ट का परचम लहराया. कांग्रेस ने आखिरी चुनाव 1984 में जीता था. तब कांग्रेस के भीष्म देव दुबे ने जीत हासिल की थी. इसके बाद से कांग्रेस जीत को तरस रही है. यही स्थिति हमीरपुर महोबा लोकसभा सीट की भी है. यहां पर कांग्रेस ने अब तक सात बार जीत हासिल की है. 1952 से लेकर 1971 तक यहां कांग्रेस लगातार जीत दर्ज करती रही. बाद में 1980 और 1984 में भी जीत हासिल की. लेकिन 1991 के बाद यहां भी कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई.
अगर हम पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो बुंदेलखंड की चारों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई. बांदा लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के बाल कुमार पटेल प्रत्याशी थे. जो सिर्फ 75438 वोट हासिल कर पाए थे. जालौन में बृजलाल खबरी 89,555 वोट पाए थे. झांसी में शिवशरण कुशवाहा 86,139 वोट पाए थे. इसी तरह हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के प्रीतम सिंह 1,13534 मत हासिल कर पाए थे. इन चारों प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई थी.
इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन है. जिसके कारण कांग्रेस के खाते में सिर्फ झांसी सीट आई है, जबकि बांदा, महोबा और जालौन सीट पर सपा प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे. गठबंधन के चलते ही ईवीएम से इस बार कांग्रेस का सिंबल हाथ गायब रहेगा. अब देखना है कि गठबंधन का कांग्रेस को कितना फायदा होगा.
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा में गठबंधन था. बसपा का कैडर वोट सपा में गया था, यही वजह है कि सपा और बसपा प्रत्याशियों ने भाजपा प्रत्याशियों से कड़ा मुकाबला किया था. इस बार के चुनाव में कांग्रेस के परंपरागत मतदाता भी सपा को वोट करते हैं तो भी सपा को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद नहीं है. क्योंकि अब कांग्रेस के पास पहले जैसा जनाधार नहीं है.
हिन्दुस्थान समाचार
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