कोविशील्ड वैक्सीन टीका लगवाने वाले लोग दहशत में हैं. क्या इसकी वजह कोरोना वैक्सीन निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका का साइड इफैक्ट को लेकर कोर्ट में सरेआम कबूल कर लेना है? बीते एकाध दिनों से पूरे संसार में इसी को लेकर चर्चा हो रही है. भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में कोरोना के बाद कुछ ऐसा हुआ है कि कम उम्र और बिल्कुल तंदुरुस्त और चंगे भले इंसानों को अचानक हार्ट अटैक होना आरंभ हुआ. सांस्कृतिक मंचन हो, या शादी-ब्याह, पार्टी समारोह. लोगों का नाचने के दौरान गश खाकर गिरना और उसके तुरंत बाद मौत हो जाने की अनगिनत कहानियां हैं. करीब दो-तीन साल में हुई ऐसी मौतें पहेली बनी हुई हैं. अब संदेह और गहरा गया है. ऐसा दावा है कि ये सब कोविशील्ड टीके के साइड इफैक्ट के चलते हो रहा है. भ्रम है या हकीकत? ये तो भगवान ही जाने पर कोविशील्ड कंपनी का खुलासा यह दर्शाता है कि भविष्य में भी टीकाधारकों को साइड इफैक्ट हो सकता है. इस वैक्सीन के इस्तेमाल के आंकड़ा देखें तो सिर्फ भारत में ही एक अरब 17 करोड़ का है, जिसे कोरोना के बाद लोगों ने बचाव को ध्यान में रखकर लगवाए थे. पूरे संसार की बात करें, तो ये आंकड़ा ढाई से तीन अरब तक पहुंचता है.
गौरतलब है कि कोविशील्ड कंपनी एस्ट्राजेनेका ने जब से ब्रिटिश कोर्ट में जज के समक्ष स्वीकारा है कि उनके टीके के इस्तेमाल से ‘ब्लड क्लॉटिंग’ यानी खून के थक्कों के जमने की प्रबल संभावनाएं हैं, तब से चारों तरफ हंगामा कटा हुआ है. कंपनी की इस स्वीकारता से संसार भर में कोविशील्ड का टीका लगवाने वालों में दहशत का माहौल है. लोग डरे हुए हैं. लोग चिकित्सकों से परामर्श करने में लगे हुए हैं. हालांकि, तसल्ली इस बात की है कि भारत के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. भारतीय चिकित्सा तंत्र ने इसे मात्र भ्रम ही बताया है. उन्होंने फिलहाल वैक्सीन को सुरक्षित बताते हुए, भरोसा दिया है कि अगर साइड इफैक्ट देखें भी तो उस पर काबू पाने में हमारा हेल्थ सिस्टम सक्षम है. सरकार की ओर से भी यही बताया गया है. पर, लोगों के भीतर बैठ चुका डर निकलने का नाम नहीं ले रहा.
एस्ट्राजेनेका का मामला कोर्ट तक पहुंचा कैसे? ये जानना भी जरूरी है. दरअसल, ब्रिटिश नागरिक जैमी स्कॉट ने एस्ट्राजेनेका कंपनी के कोर्ट में खदेड़कर मुकदमा दर्ज करवाया था. उन्होंने अप्रैल-2021 में कोविशील्ड के टीके लगवाए थे, जिसके बाद वह स्थाई तौर पर मस्तिष्क से क्षतिग्रस्त हो गए. जैमी स्कॉट समेत कई अन्य कई लोग भी थ्रोम्बोसिस नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त हो गए. तभी इन सभी ने मिलकर कंपनी के खिलाफ कोर्ट में केस दर्ज करवा दिया. उसके बाद इस दिग्गज दवा कंपनी ने कोर्ट में वैक्सीन के कारण गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं पैदा होने की बात स्वीकार ली. कोर्ट ने कंपनी को प्रभावित लोगों को 10 करोड़ पाउंड हर्जाना देने का आदेश भी दिया है. इस खुलासे के बाद कोविड-19 की अन्य वैक्सीन जैसे फाइजर, मॉडर्ना भी सवालों के घेरे में हैं. ऐ कंपनियां भारत में उस वक्त खूब एक्टिव थी. इन्हें भी अपने टीकों के संबंध में अब जवाब देना होगा, क्योंकि मसला वैश्विक स्तर पर गरमा चुका है.
मालूम हो, जब कोरोना कहर बरपा रहा था. पूरी दुनिया इसके चपेट में थी. तब, कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद किया गया. वैसे कम ही लोग जानते होंगे कि कोविशील्ड नाम भारत ने ही दिया था. एस्ट्राजेनेका वैक्स जोब्रिया टीके का निर्माण भारतीय फार्मा कंपनी ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ यानी एसआईआई ने भी अपने स्तर से किया था. टीका बनने के बाद बाकायदा उसका ट्रायल हुआ. सबसे पहले चूहों पर प्रयोग किया गया. उसके बाद एकाध गंभीर मरीजों को टीका लगाया गया, जिसका रिजल्ट बेहतरीन पाया गया. फिर, डब्ल्यूएचओ की स्वीकति मिली, उसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के संयुक्त पैनल की देखरेख में मुकम्मल पड़ताल हुई, तब कहीं जाकर टीकों को मरीजों में लगवाना आरंभ हुआ.
हां, इतना जरूर है कोविशील्ड को ब्रिटेन में आनन-फानन में नियमों के विरुद्ध जल्दबाजी में बिना ट्रायल के लोगों को टीका देना शुरू कर दिया गया था. यह बात भी वहां की हुकूमत ने कोर्ट में स्वीकारी है. इसलिए एस्ट्राजेनेका का ये कहना सच साबित होता है कि वैक्सीन बहुत दुर्लभ मामलों में टीटीएस का कारण बन सकती है. चिकित्सकों के मुताबिक इसे लंबे ट्रायल की आवश्यकता थी. जो उस वक्त नहीं किया गया. इसकी जवाबदेही फार्मा कंपनी की ही बनती है. जब उन्हें ये पता था कि इसके दुष्परिणाम भविष्य में अच्छे नहीं होंगे? तो क्यों लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की इजाजत उन्होंने दी. कई ऐसे सवाल हैं जिन्हें बिंदूवार तरीके से अब एस्ट्राजेनेका कंपनी को ही देने होंगे. ऐसे में भारतीय डाक्टरों को चाहिए, अगर इस टीके से साइड इफैक्ट की उन्हें जरा भी संभावना दिखती है तो उसका तोड़ बिना किसी देरी के खोजना शुरू कर देना चाहिए.
कोरोना से जब संसार तकरीबन-तकरीबन हार चुका था. सभी को अपने जीवन को बचाने के लिए जूझना पड़ रहा था. तब, एस्ट्राजेनेका ने वैश्विक साझेदारों के साथ वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की तीन बिलियन खुराक बनाई. सरकारों ने उन्हें बाकायदा लक्ष्य दिया था. जल्दबाजी हुई थी, जिसे स्वीकारा जा चुका है. उन्हीं की भांति भारत में भी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कोविशील्ड टीके का उत्पादन युद्धस्तर पर किया और उन्हें भारत सरकार को सौंप दिया. कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर कोविड वैक्सीन बनाई थी. वहीं, भारत में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ने एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता करके कोविशील्ड वैक्सीन बनाई. इसके बाद देश में आधे से अधिक लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई. कुछ अन्य कंपनियों की वैक्सीन को भी लोगों ने लगवाया था. लेकिन असर सबका एक जैसा ही दिखाई पड़ता है. हालांकि भारत के वैज्ञानिक और चिकित्सक इस मत में कतई नहीं हैं कि अचानक हुई मौतों का संबंध कोरोना के टीकों से है. पर, ब्रिटिश कोर्ट के मामले ने विशेषज्ञों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. भारतीय चिकित्सक भी इसकी खोज में लग गए हैं. यहां, जिम्मेदारी अब हुकूमत की बनती है कि लोगों के मन में कोविशील्ड को लेकर पनप चुके डर को कैसे भी दूर करें?
डॉ. रमेश ठाकुर
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
हिन्दुस्थान समाचार
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