लखनऊ: कन्नौज शहर की अपनी समृद्ध पुरातात्विक और सांस्कृतिक विरासत रही है. इस क्षेत्र का पुराना नाम कन्याकुज्जा या महोधी हुआ करता था, बाद में कन्याकुज्जा की जगह कन्नौज हो गया. कन्नौज नाम आज प्रचलित है. प्रदेश की राजनीति में कन्नौज संसदीय सीट की अहम भूमिका है. कन्नौज को समाजवादियों का गढ़ माना जाता है. उप्र की संसदीय सीट संख्या 42 कन्नौज में चौथे चरण में 13 मई को मतदान होगा.
कन्नौज लोकसभा सीट का इतिहास
कन्नौज लोकसभा सीट साल 1967 में अस्तित्व में आई थी. समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया को यहां की जनता ने अपना पहला सांसद चुना. इस सीट से कांग्रेस नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी एक बार सांसद रह चुकी हैं. पिछली बार 2019 को छोड़ दें तो कन्नौज सीट पर 1998 से 2014 तक के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) को जीत मिली. यहां 2 उपचुनावों समेत 7 चुनावी मुकाबले में सपा विजयी रही.
साल 1998 में पहली बार सपा से प्रदीप यादव सांसद चुने गए थे, जिसके बाद 1999 मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज से चुनाव जीता लेकिन बाद उन्होंने ये सीट छोड़ दी और फिर अखिलेश यादव ने उपचुनाव में जीत हासिल की. अखिलेश यादव ने 2004 और 2009 का लोकसभा चुनाव यहां से जीता. 2012 के उपचुनाव में डिंपल यादव यहां से निर्विरोध चुनी गई थीं. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा. तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार सुब्रत पाठक को 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीत मिली थी. साल 2014 में इस सीट से अखिलेश यादव की धर्मपत्नी डिंपल यादव ने चुनाव लड़ा और भाजपा के सुब्रत पाठक को हरा दिया लेकिन 2019 में बाज़ी पलट गई और भाजपा के सुब्रत पाठक ने कन्नौज से जीत दर्ज कर डिंपल यादव से हार का बदला ले लिया. भाजपा इस सीट पर 1996 और 2019 में दो बार जीत दर्ज करा चुकी है. बसपा को इस सीट पर अब तक अपनी पहली जीत का इंतजार है.
पिछले दो चुनावों का हाल
2019 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज में सीधा मुकाबला भाजपा के सुब्रत पाठक और सपा की डिम्पल यादव के बीच था. जीत सुब्रत पाठक के हाथ लगी. भाजपा प्रत्याशी को 563,087 (49.35%) वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर रही सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव को 550,734 (48.27%) वोट हासिल हुए. कांग्रेस ने इस सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था. वहीं बसपा-सपा का गठबंधन था.
2014 के चुनाव की बात करें, तो इस चुनाव में सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव ने भाजपा के सुब्रत पाठक को हराया था. जीत का अंतर 19,907 वोट का था. डिम्पल यादव को 43.98 फीसदी और सुब्रत पाठक को 42.10 फीसदी वोट हासिल हुए थे. बसपा और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी तीसरे और चौथे स्थान पर रहे. दोनों प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. कांग्रेस ने इस सीट पर प्रत्याशी नहीं उतारा था.
किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार
भाजपा ने मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक को मैदान में उतारा है. इंडिया गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं. बसपा ने इमरान बिन ज़फर पर दांव लगाया है.
कन्नौज सीट का जातीय समीकरण
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में कुल करीब 18 लाख मतदाता हैं. जिसमें 16 फीसदी मुस्लिम, करीब-करीब इतने ही यादव और 15 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं. करीब 10 फीसदी राजपूत और 39 फीसदी अन्य जाति-वर्ग के मतदाता हैं जिसमें बड़ा हिस्सा दलित वोटर्स का है.
विधानसभा सीटों का हाल
कन्नौज संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं. जिसमें 3 कन्नौज जिलें में पड़ती हैं जबकि एक-एक सीट औरैया और कानपुर देहात जिले में पड़ती हैं. छिबरामऊ, तिर्वा कन्नौज (अ0जा0) सीटें कन्नौज, रसूलाबाद (अ0जा0) सीट कानपुर देहात और बिधूना सीट औरेया जिले में हैं. बिधूना सीट पर सपा और बाकी पर भाजपा काबिज है.
जीत का गणित और चुनौतियां
कन्नौज लोकसभा सीट के जातीय-सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यह सीट यादव-मुस्लिम बाहुल्य सीट है और यहां के समीकरण सपा के लिए मुफीद रहे हैं. सपा प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश 12 वर्ष बाद फिर इस सीट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं. इससे भाजपा को चुनौती मिलना तय है. भाजपा को विकास राष्ट्रवाद और रामकाज के सहारे फिर विजयश्री का भरोसा है. सपा ने पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक यानी पीडीए का नारा दिया है. वहीं सपा मोदी बनाम अखिलेश और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है. हालांकि, इस सीट का इतिहास रहा है कि आखिर में मतदान जातीय समीकरणों पर आकर टिक जाता है.
राजनीतिक विशलेषक केपी त्रिपाठी के अनुसार, कन्नौज के सियासी समीकरण में माना जाता है कि बहुसंख्यकों के साथ छोटी जातियों को जिसने जोड़ लिया, चुनाव में वही जीतता है. भाजपा ने विधानसभा चुनाव से ही यादव और मुस्लिमों के अलावा अन्य जातियों में गहरी पैठ बनाई है. यादवों के प्रभावशाली स्थानीय नेताओं को भी भाजपा ने जोड़ा है.
कन्नौज से कौन कब बना सांसद
1967 डॉ. राममनोहर लोहिया (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1971 एस0एन0 मिश्रा (कांग्रेस)
1977 राम प्रकाश त्रिपाठी (भारतीय लोकदल)
1980 छोटे सिंह यादव (जनता पार्टी सेक्यूलर)
1984 शीला दीक्षित (कांग्रेस)
1989 छोटे सिंह यादव (जनता दल)
1991 छोटे सिंह यादव (जनता पार्टी)
1996 चन्द्र भूषण सिंह (भाजपा)
1998 प्रदीप कुमार यादव (सपा)
1999 मुलायम सिंह यादव (सपा)
2000 अखिलेश यादव (सपा) उपचुनाव
2004 अखिलेश यादव (सपा)
2009 अखिलेश यादव (सपा)
2012 डिम्पल यादव (सपा) उपचुनाव
2014 डिम्पल यादव (सपा)
2019 सुब्रत पाठक (भाजपा)
हिन्दुस्थान समाचार
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