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भारत की सांस्कृतिक अवधारणा का अपमान और संविधान की भावना के विरुद्ध है सैम पित्रोदा का नस्लभेद संबंधी वक्तव्य

काँग्रेस की सलाहकार टोली के प्रमुख सदस्य सैम पित्रोदा ने रंग, क्षेत्र और कदकाठी के आधार पर भारतीय समाज को विभाजित करने संबंधी अंग्रेजों के षड्यंत्र को एक बार फिर स्थापित करने का प्रयास किया है.

रमेश शर्मा by रमेश शर्मा
May 13, 2024, 05:34 pm IST
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काँग्रेस की सलाहकार टोली के प्रमुख सदस्य सैम पित्रोदा ने रंग, क्षेत्र और कदकाठी के आधार पर भारतीय समाज को विभाजित करने संबंधी अंग्रेजों के षड्यंत्र को एक बार फिर स्थापित करने का प्रयास किया है. अपनी सत्ता मजबूत करने लिये अँग्रेजों ने सामाजिक और क्षेत्र विभाजन का यही षड्यंत्र किया था. इस प्रकार का विभाजन भारतीय परंपरा, दर्शन और सांस्कृतिक का तो अपमान है ही, यह भारत के संविधान की भावना के भी विपरीत है.

सैम पित्रोदा अपने वक्तव्यों को लेकर सदैव चर्चित रहे हैं. उन्होने कभी मिडिल क्लास से अधिकतम टैक्स वसूलने की सलाह दी, तो कभी विरासत में मिली संपत्ति का एक बड़ा भाग सरकार द्वारा ले लेने की बात कही. जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अयोध्या में भगवान रामलला जन्मस्थान मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ तब उन्होंने मंदिर को अनावश्यक बताया था. अब उनका नया वक्तव्य आया है. उन्होंने इस वक्तव्य में भारत के निवासियों को उनके रंग, क्षेत्र एवं कद-काठी के आधार पर वर्गीकृत किया है और विदेशी नस्लों से जोड़ा है. सैम पित्रोदा ने अपने वक्तव्य में पूर्वी भारत के लोगों चाइनीज नस्ल जैसा, उत्तर भारत के लोग अंग्रेजी, पश्चिम भारत के लोगों को अरब, और दक्षिण के लोगों अफ्रीकी नस्ल जैसा माना है.

सैम पित्रोदा यहीं नहीं रुके. उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण भारत के लोग अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान होते हैं. सैम पित्रोदा इन दिनों अमेरिका में रहते हैं. उनका ये वक्तव्य वहीं से आया है. वे काँग्रेस के वरिष्ठ सदस्य और ओव्हरसीज काँग्रेस के अध्यक्ष हैं. काँग्रेस की यह शाखा अमेरिकी और यूरोपीय देशों में सक्रिय है. काँग्रेस के सलाहकार समूह में वे महत्वपूर्ण सदस्य हैं, राजीव गाँधी के विश्वस्त रहे और उन्हें राहुल गाँधी का सलाहकार भी माना जाता है. उनके सुझावों पर काँग्रेस ने अनेक नीतिगत निर्णय लिये हैं. भारत में विभेद पैदा करने वाला वक्तव्य ऐसे समय आया जब पूरा देश अठारहवीं लोकसभा चुनाव के वातावरण में तैर रहा है. चार चरणों का मतदान हो चुका है. तीन चरणों का मतदान और होना है. लोकसभा के इस चुनाव में भी वर्ष 2019 की भाँति साँस्कृतिक राष्ट्रभाव और सामाजिक एकत्व भाव प्रबल हो रहा है. सत्य क्या है यह तो चार जून को परिणाम के साथ ही पता चलेगा किन्तु अभी यह माना जा रहा है कि इस सांस्कृतिक राष्ट्रभाव और एकत्व का झुकाव की ओर है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले कार्यकाल में अपना पद संभालते ही इस एकत्व पर जोर दिया था. उनका नारा था- “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास.” समय के साथ अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान मंदिर योजना ने भी आकार लिया. अब यह मोदीजी का नारा हो या कालचक्र का अपना प्रभाव कि सामाजिक एकत्व और साँस्कृतिक राष्ट्रभाव इन दस वर्षों में अधिक मुखर हुआ है. इसका आधार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को माना जा रहा है.

लोकसभा के इस चुनाव में भी इसकी झलक स्पष्ट है. इस वातावरण से उन राजनीतिक दलों को अपनी सफलता कुछ दूर दिखाई दे रही है जिनका लक्ष्य केवल सत्ता है और उसे प्राप्त करने केलिये कोई भी फार्मूला अपना सकते हैं. सल्तनत काल और अंग्रेजी काल का इतिहास गवाह है विदेशी शक्तियों ने भारत में अपनी जड़े जमाने के लिए सामाजिक और क्षेत्रीय विभेद पैदा करने का ही षड्यंत्र किया था. इसी की झलक इस चुनाव प्रचार में दिख रही है. सामाजिक एकत्व में सेंध लगाने केलिये पहले जाति आधारित जनगणना और धर्म आधारित आरक्षण पर बहुत जोर दिया गया. फिर शब्दांतरण से मुस्लिम समाज के आरक्षण का संकेत भी आया. इंडी गठबंधन के मह्त्वपूर्ण घटक लालू प्रसाद यादव ने तो मुस्लिम समाज को आरक्षण देने की बात खुलकर कही. इन बातों का प्रभाव तीसरे चरण के मतदान में न दिखा. बल्कि पहले और दूसरे चरण के मतदान के रुझान में तो मीडिया ने यह अनुमान भी व्यक्त कि इस बार भाजपा दक्षिण भारत के केरल और तमिलनाडु में भी खाता खोल सकती है.

यदि ऐसा हुआ तो संसद में विपक्ष की शक्ति वर्तमान स्थिति से कुछ कमजोर हो सकती है. इसकी भरपाई अगले चार चरणों के मतदान से ही संभव है. जो केवल और केवल सामाजिक एकतव में सेंध लगाकर ही संभव है. यह केवल संयोग है या किसी रणनीति का अंग कि सैम पित्रोदा का वक्तव्य तीसरे चरण के मतदान के तुरन्त बाद आया . इस वक्तव्य में अँग्रेजों के उसी षड्यंत्र की झलक है जो उन्होंने भारत में अपनी जड़ों को जमाने के लिये किया था. उनकी घोषित नीति थी- “बाँटो और राज करो.” इसी षड्यंत्र के अंतर्गत उन्होंने विभाजन के बीज बोये थे.

अपनी “डिवाइड एण्ड रूल” थ्योरी में अंग्रेजों ने जो बिन्दु उठाये थे, ठीक वही बिन्दु सैम पित्रोदा के वक्तव्य में हैं. अंग्रेजों ने सबसे पहले आर्यों को हमलावर बताया था और उन्हें यूरोपीय नस्ल से जोड़ा था दक्षिण भारत को उत्तर भारत से अलग बताया और वनवासियों को अफ्रीकन नस्ल से जोड़ा था. अपनी सत्ता की जड़े जमाने के लिये अँग्रेजों ने समाज को बाँटने का काम केवल भारत में नहीं किया. पूरी दुनियाँ में किया, वे जहाँ गये वहाँ किया. अमेरिका और अफ्रीका में तो रंग के आधार पर कानून भी बनाये थे. दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी ने सबसे पहला आँदोलन रंग भेद के विरुद्ध ही किया था.

भारत में सामाजिक विभाजन को गहरा करने के लिये अँग्रेजों ने जाति, धर्म और क्षेत्र को आधार बनाया. इसी आधार पर सेना गठित की और जेल मैनुअल बनाया. अधिकांश प्रांतों में दो रेजिडेंट बनाई गई. जैसे पंजाब रेजिमेंट भी और सिक्ख रेजीडेंट भी, राजस्थान रेजिमेंट भी और राजपूताना राइफल्स भी, मराठा रेजिमेंट भी और महार रेजिमेंट भी. अंग्रेजों ने धर्म के आधार पर मुस्लिम रेजिमेंट भी बनाई थी. सबकी भर्ती की प्राथमिकता में अंतर था. भारत में अंग्रेजों जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, रंग और कदकाठी के आधार बोई गई इस विष वेल में वामपंथी विचारकों ने खाद पानी देकर बनाये रखा. अंग्रेजी षड्यंत्र और वामपंथी कुतर्कों की पूरी झलक सैम पित्रोदा के बयान में है.

उत्तर से दक्षिण तक भारत की एकत्व अवधारणा

इस वक्तव्य के बाद तूफान तो उठना था. चूँकि यह वक्तव्य न केवल भारतीय सामाजिक संरचना और साँस्कृतिक अवधारणाओं के विरुद्ध है अपितु संविधान की भावना के भी विरुद्ध है. भारतीय वाड्मय पूरे विश्व को एक कुटुम्ब मानता है. दक्षिण भारत की धरती का विकास उत्तर भारत में जन्में भगवान परशुराम जी ने किया और दक्षिण भारत में जन्में आदि शंकराचार्य ने पूरे भारत में वैदिक पीठ स्थापित किये. भगवान नारायण का निवास दक्षिण के महासागर में है और भगवान शिव का निवास उत्तर के हिमालय पर. कैलाश पर निवास करने वाले शिवजी के लिये एक प्रार्थना है- “कर्पूर गौरम् करुणावतारम्” अर्थात वे कपूर के समान गौरवर्ण हैं.

दक्षिण के महासागर में निवास करने वाले नारारण के लिये प्रार्थना है- “मेघवर्णम् शुभांगम् ” अर्थात वे बादलों के समान काले हैं. यदि दो ईश्वर अलग-अलग रंग के हैं. राम सांवले हैं और लक्ष्मण गोरे, कृष्ण काले हैं तो बलराम गोरे. भारत में न तो रंग का कोई भेद है न क्षेत्र का. लेकिन विदेशी सत्ताओं ने ऐसे बीज बोये जिनका उपयोग आज भी कुछ राजनैतिक दल कर रहे हैं. सैम पित्रोदा का बयान आते ही सामाजिक क्षेत्र में गहरी प्रतिक्रिया हुई. भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिना कोई विलंब किये जवाबी हमला बोला. पहले तो काँग्रेस ने वक्तव्य से किनारा किया और यह कहकर अपना बचाव किया कि यह सैम पित्रोदा की निजी राय है किन्तु जब बात न बनी तो काँग्रेस नेता जयराम ने पित्रोदा के काँग्रेस से त्यागपत्र देने और पार्टी द्वारा स्वीकार करने की सूचना मीडिया को दी.

अब सैम पित्रोदा का त्यागपत्र वास्तविक है या चुनावी वातावरण में बचाव की रणनीति. यह सत्य तो भविष्य में ही स्पष्ट होगा. किन्तु इस वक्तव्य से यह बात एक बार फिर प्रमाणित हो गई कि अंग्रेज भले भारत से चले गये पर उनकी रीति-नीति पर चलने वाले लोग अभी भारत में हैं और वे अंग्रेजियत का पूरी शक्ति से पालन करते हुए भारत को अंग्रेजों की नीतियों का रंग देने के अभियान में जुटे हैं. वे यह भूल जाते हैं कि राजनीति अलग है और राष्ट्रनीति अलग. भारत राष्ट्र और भारतीय समाज जीवन किसी भी राजनीति से ऊपर है. सत्ता और राजनीति को राष्ट्र एवं समाज की सेवा का माध्यम होना चाहिए न कि समाज और राष्ट्र में विभेद के बीज बोकर सत्ता का मार्ग बनाना चाहिए.

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

Tags: CongressOpinion StorySam Pitroda
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