नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए मनी लॉन्ड्रिंग कानून को लेकर एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि स्पेशल कोर्ट द्वारा शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद ईडी पीएमएलए की धारा 19 के तहत किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है.
जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने क्या कहा?
जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के दिसंबर 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने साफ किया है कि अगर मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी किसी शख्स को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया है और स्पेशल कोर्ट चार्जशीट पर संज्ञान लेकर उसे समन जारी करता है तो उसे कोर्ट में पेश होने के बाद मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जमानत की दोहरी शर्त को पूरा करने की जरूरत नहीं होगी.
आदेश के अनुसार एक बार पीएमएलए की धारा 44(1)(बी) के तहत शिकायत दर्ज होने पर, यह आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 200 से 205 द्वारा शासित होगी. इनमें से कोई भी प्रावधान पीएमएलए के साथ असंगत नहीं है.
कोर्ट से हिरासत की करनी होगी मांग
मनी लॉन्ड्रिंग कानून की धारा 45 में जमानत की दोहरी शर्त का प्रावधान है, जिसके चलते आरोपी को जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसी सूरत में अगर ईडी को उस आरोपी की हिरासत चाहिए तो उन्हें कोर्ट से ही हिरासत की मांग करनी होगी. कोर्ट आरोपी की हिरासत ईडी को तभी को देगा जब एजेंसी के पास पूछताछ की जरूरत को साबित करने के लिए पुख्ता कारण होंगे.
कब बना पीएमएलए कानून और कब हुआ लागू ?
पीएमएलए कानून को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 2002 में बनाया गया था. लेकिन यह कानून मनमोहन सिंह की सरकार में लागू हुआ था. अब तक इस एक्ट में कई बार संशोधन किए जा चुके हैं. इस एक्ट का उद्देश्य था काले धन को रोकना. पीएमएलए के कानून का पहला शिकार झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोडा बने थे. 2010 के बाद टूजी घोटाला, कोयला घोटाला समेत कई बड़े घोटाले हुए और पीएमएलए कानून के तहत शिकंजा और कसता ही चला गया. 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इसमें संशोधन कर इसे और अधिक सख्त बना दिया.
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