कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार (22 मई 2024) को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जो पश्चिम बंगाल की ममता सरकार के लिए बड़ा झटका है. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 2010 में ममता सरकार द्वारा कई वर्गों को दिया गया अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आरक्षण को समाप्त कर दिया. कोर्ट ने राज्य में सेवाओं व पदों पर रिक्तियों में इस तरह के आरक्षण को अवैध करार देते हुए कहा कहा है कि इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धार्मिक आधार अपनाया गया जो कि गलत है.
हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जिन वर्गों का ओबीसी दर्जा हटाया गया है, उसके सदस्य यदि पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, तो उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी. कोर्ट ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा ओबीसी की एक नई सूची तैयार की जाए.
क्यों रद्द हुआ मुस्लिम आरक्षण?
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए मुस्लिमों के कुछ वर्गों को ओबीसी आरक्षण दिया गया जो लोकतंत्र और पूरे समुदाय का अपमान है. इतना ही नहीं अदालत ने कहा कि जिन समुदायों को आयोग ने ओबीसी आरक्षण दिया गया वो जल्दबाजी में दिया गया क्योंकि यह ममता बनर्जी का चुनावी वादा था और सत्ता हासिल करते ही इसे पूरा करने के लिए असंवैधानिक हथकंडा अपनाया गया.
अपने आदेश में अदालत ने कहा कि वर्ष 2010 में बंगाल में पिछड़े मुस्लिमों के लिए 10% आरक्षण की घोषणा 6 माह के अंदर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने 42 समुदायों को ओबीसी के रूप में अनुशंसित कर की थी, जिनमें से 41 समुदाय मुस्लिम धर्म से जुड़े थे.
इस फैसले का किस पर नहीं पड़ेगा असर
वहीं वकील सुदीप्त दासगुप्ता ने बताया, “2011 में दायर जनहित याचिका में दावा किया गया था कि वर्ष 2010 के बाद दिए गए सभी ओबीसी प्रमाण पत्र 1993 (पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग) अधिनियम को दरकिनार कर दिए गए. जो लोग वास्तव में पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें उचित प्रमाण पत्र नहीं दिए गए. डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में उन सभी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया जो 2010 के बाद जारी किए गए. वर्ष 2010 से पहले ओबीसी प्रमाण पत्र रखने वालों को कलकत्ता हाईकोर्ट की सुनवाई का खामियाजा नहीं भुगतना पड़ेगा.”
फैसला देने वाली पीठ ने निर्देश दिया कि 5 मार्च, 2010 से 11 मई, 2012 तक 42 वर्गों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने वाले राज्य के कार्यकारी आदेशों को भी, इस तरह के वर्गीकरण की सिफारिश करने वाली रिपोर्टों की अवैधता को देखते हुए रद्द कर दिया.
इसका प्रभावी रूप से तात्पर्य है कि 2010 और 2024 के बीच जारी किए गए सभी ओबीसी प्रमाण पत्र अलग कर दिए गए हैं और अब ये प्रमाणपत्र धारक विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान नहीं उठा सकते हैं.
सीएम ममता ने इस फैसले का किया विरोध
अदालत के फैसले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह हाईकोर्ट के फैसले को अस्वीकार करती हैं और इसे चुनौती देंगी. उन्होंने कहा, “हम बीजेपी के आदेश को स्वीकार नहीं करेंगे. ओबीसी आरक्षण पहले की ही तरह जारी रहेगा.”
कोर्ट के फैसले के बाद अब क्या?
कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर अब ओबीसी की नई लिस्ट बनेगी. अदालत ने कहा कि पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग अब पिछड़ा वर्ग आयोग से सलाह लेकर एक नई रिपोर्ट तैयार करे. कोर्ट ने कहा है कि इस रिपोर्ट में बताए कि किसे ओबीसी में शामिल करना है और किसे बाहर रखना होगा और रिपोर्ट तैयार होने के बाद इसे विधानसभा में पेश किया जाए.
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