इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिद के मौलवी को जमानत देने से इनकार कर दिया है. मौलवी पर मानसिक रूप से विक्षिप्त नाबालिग लड़के को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन कराने के बाद उसे जबरन ‘मदरसे’ में रखने का आरोप लगाया गया है. जस्टिस समीर जैन की पीठ ने मौलवी को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि आरोपित के खिलाफ गंभीर आरोप हैं. कथित पीड़ित ने भी सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज अपने बयान में उसके खिलाफ आरोप लगाए हैं.
आरोपी याची मौलवी सैयद शाद उर्फ मो. शाद को इसी साल 18 फरवरी को आईपीसी की धारा 504 और 506 और उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) के तहत गिरफ्तार किया गया था. मामले में जमानत की मांग करते हुए आरोपित ने अदालत का रुख किया था. याची मौलवी के खिलाफ मुकदमा थाना- नौबस्ता, कानपुर नगर में दर्ज कराया गया है. याची के वकील ने तर्क दिया कि उसे झूठे आरोप के आधार पर वर्तमान मामले में आरोपी बनाया गया है. यह भी तर्क दिया गया कि कथित पीड़ित मानसिक रूप से विक्षिप्त था और उसने न तो अपना धर्म बदला और न ही उसे धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया.
दूसरी ओर सरकारी वकील ने जमानत प्रार्थना का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि आवेदक मस्जिद में मौलवी है. इसने न केवल सूचनाकर्ता के मानसिक रूप से विक्षिप्त नाबालिग बेटे को अपना धर्म बदलने के लिए बहलाया, बल्कि उसे बहलाने के बाद ‘मदरसे’ में रखा. उसके बाद जबरन उसका धर्म बदल दिया. इस पृष्ठभूमि में, यह देखते हुए कि याची मस्जिद में मौलवी है और उस पर मानसिक रूप से विक्षिप्त नाबालिग का जबरन धर्म परिवर्तन करने का आरोप लगाया गया है, न्यायालय ने आरोपों की गंभीरता और प्रस्तुत साक्ष्य को देखते हुए उसे जमानत देने से इनकार कर दिया.
हिन्दुस्थान समाचार
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