इस्लामिक आतंकवाद का अक्सर यह कहकर बचाव करते देखा जाता है कि आतंक का कोई मत, पंथ, रिलीजन, मजहब और धर्म नहीं होता. आतंक तो आतंक होता है, किंतु वास्तव में भारत एवं दुनिया के संदर्भ में जिस तरह की लगातार आतंकी घटनाएं एक खास वर्ग विशेष इस्लाम को मानने वाले मुसलमानों द्वारा घटित की जा रही हैं, वह बार-बार यही इंगित करती है कि आतंक का न सिर्फ विशेष मजहब होता है, बल्कि आतंकवाद एक विशेष उद्देश्य से और पूरी दुनिया को सिर्फ एक ही रास्ते पर चलाने की मंशा से जारी है. निश्चित ही इससे जुड़ी भविष्य की कल्पना बहुत डरावनी है.
पहले इस्लाम के नाम पर भारत का विभाजन किया गया, अपनी जनसंख्या की तुलना में शेष भारत से अधिकांश भूमि एवं अन्य व्यवस्थाएं जुटाई गईं, फिर चुन-चुन कर नए इस्लामिक गणराज्य में गैर मुसलमानों को निशाना बनाया गया जो अब भी (पाकिस्तान-बांग्लादेश में) जारी है. वस्तुत: यह प्रश्न आज सभी के सोचने के लिए हैं, कि आखिर सभी को मुसलमान बना देने या बात नहीं मानने वालों को मौत के घाट उतार देने की जिद क्यों इन आतंकियों और इस तरह की जिहादी मानसिकता रखनेवाले मुसलमानों ने पाल रखी है? यह इस्लाम लोगों को डराकर उनकी जान लेकर किस मानवता का भला कर रहा है?
जम्मू-कश्मीर में हिंदू श्रद्धालुओं पर इस्लामी आतंकियों ने जो हमला किया और उसके लिए जिस दिन का चुनाव किया, हम सभी जानते हैं कि वह नरेन्द्र मोदी द्वारा तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने वाला था. आखिर; यह क्या संकेत करता है? यह हमला किसको डराने के लिए है और किसको मैसेज देने के लिए हुआ? देखा जाए तो इन तमाम प्रश्नों का जो एक उत्तर है वह है, आतंकवादी मुसलमान भारत सरकार एवं यहां रह रहे बहुसंख्यक हिन्दू समाज के लिए खुला संदेश दे रहे हैं, हम जो चाहें, जहां चाहें, जैसा चाहें वैसा, इस भारत में कहीं भी ‘कांड’ कर सकते हैं. आप अपनी सशक्त सत्ता का कितना भी दम भरें, इससे (आतंकवादियों को) कोई फर्क नहीं पड़ता, हम अपने मंसूबों को जब चाहे तब कामयाब कर सकते हैं.
इस हमले में आप देखिए, कैसे नन्हे गोद लिए बच्चों तक को नहीं बख्शा गया और उन पर भी चारों ओर से गोली बरसाई गईं. आज बच्चों की मौत और उनके घायल होने की तस्वीरें हर संवेदनशील भारतीय को रुला रही हैं. ऐसे में तथाकथित मानवता के समर्थकों से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि इजराइल को लेकर गाजा पट्टी के रफाह शहर पर दुनिया भर में चीत्कार मचाने वाली तथाकथित सेक्युलर जमात अब जम्मू-कश्मीर के रियासी हमले पर बहुत ही बेशर्मी के साथ चुप्पी साधे क्यों बैठी है? यहां खुलेआम इस्लामिक आतंकवादी हिन्दुओं को योजना से अपना निशाना बना रहे हैं, उनके लिए यह सेलिब्रिटी, तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार, इंटरनेशनल एनजीओ, मानवाधिकार संगठन अपने मुंह मे दही जमाए नजर आते हैं. आखिर यह मानवता के साथ कैसा दोगलापन है?
जम्मू-कश्मीर में शिवखोड़ी दर्शन करके कटरा लौट रहे श्रद्धालुओं पर रियासी में हुए हमले ने आज कई परिवारों को उजाड़ दिया है. हमले में कुछ लोगों ने अपने घर के सदस्यों को खोया तो कुछ के अपने पूरे परिवार ही उजड़ गए. एक परिवार के चार सदस्य मारे गए हैं, जिसमें कि मुस्लिम आतंकियों ने दो साल के बालक को भी मार दिया. ये परिवार जयपुर से था. इसी तरह बलरामपुर के रहनेवाले बंशी वर्मा मजदूरी करके घर खर्च चलाने वाले वह व्यक्ति हैं, उनका परिवार भी अयोध्या में भगवान श्रीराम लला के दर्शन के बाद जम्मू-कश्मीर, माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गया था. इस हमले में उनके परिवार समेत एक अन्य परिवार के सदस्यों ने भी आतंकी हमले में अपने परिजनों को खो दिया है.
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के गोंडा और गोरखपुर जिले से लोग दर्शन करने गए थे जो घायल हुए हैं और हमले के चश्मदीद हैं, उन्होंने अपने को जिंदा रखने के लिए क्या किया, सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. कल्पना करने मात्र से लगता है कि वह समय कितना विकट रहा होगा, जब स्वयं को जिंदा रखने की चुनौती आतंकवादियों की चारों ओर से बरस रहीं गोलियों के बीच इनके सामने थी. यह बता रहे हैं कि जब आतंकियों ने नकाब पहनकर पूरी बस पर ताबड़तोड़ गोलियां दागीं और उसके बाद जब बस खाई में गिर गई तब भी इन आतंकियों ने गोलियां दागना बंद नहीं किया था, ताकि कोई श्रद्धालु जिंदा न बचे. ऐसे में कई लोग बुरी तरह से घायल होने के बाद भी खुद को लाश जैसे दर्शाते रहे, जिससे कि इन इस्लामिक आतंकवादियों को यह विश्वास हो जाए कि बस में सवार सभी हिन्दू श्रद्धालु मारे जा चुके हैं. तब भी इस रियासी आतंकी हमले में एक बच्चे समेत 10 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हैं.
पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी भले ही आज ले ली है. लेकिन क्या यह सभी आतंकवादी बिना स्थानीय सहयोग के इतने बड़े हमले को अंजाद दे सकते थे? अभी तक कि जांच साफ दर्शा रही है कि स्थानीय लोग इस हमले में बराबर के षड्यंत्रकारी हैं और इन्होंने ही इन पाकिस्तानी आतंकियों को अपने यहां शरण देकर छुपाया हुआ है. आखिर इस स्थानीय मुसलमानों का पाकिस्तानियों के साथ क्या संबंध है? क्या यह वही संबंध हैं जो हमास के आतंकवादियों के समर्थन में सड़कों पर हुजूम निकालने, नारे लगाने और उनके लिए सहयोग के नाम पर चंदा इकट्ठा करने की एक मजहब आधारित मानसिकता को जन्म देती है?
जम्मू-कश्मीर के रियासी में हुए आतंकी हमले पर नीडरलैंड्स के नेता गीर्ट वाइल्डर्स ने जो कहा, उससे हम सभी को सीख लेनी चाहिए. गीर्ट वाइल्डर्स ने भारत से अपने लोगों की रक्षा करने की अपील की है. गीर्ट वाइल्डर्स का कहना है, कि ”कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकवादियों को हिंदुओं की हत्या करने की इजाजत न दें. अपने लोगों की रक्षा करें भारत!” यहां उनका कहना यही है कि भारत की मोदी सरकार एवं भारत के आम जन इस प्रकार के बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर होनेवाले आक्रमण का ठीक से जवाब दें.
दूसरी ओर भारत में जो लोग अल्पसंख्यकों में विशेषकर इस्लाम का पक्ष लेने की राजनीति करते हैं, उनके लिए भी गीर्ट वाइल्डर्स का यही संदेश है कि भारत के बहुसंख्यक समाज का दर्द समझें. वास्तव में आज उन सभी से जरूर पूछा जाएगा जो कल तक अल्पसंख्यक अत्याचार के नाम से बड़ी-बड़ी रैलियां निकाल रहे थे. ऐसे लोगों को मुसलमान का ही दर्द दिखाई देता है, हिंदुओं के मरने या हिंदुओं पर हुए आतंकी हमले से उनको कोई दर्द क्यों नहीं होता?
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(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)
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