गौतमबुद्धनगर जिले में सरकारी दावों की उस समय पोल खोल दी जब एक ऑटो चालक अपनी एक दिन की नवजात बच्ची की जान बचाने के लिए पिता दो अस्पतालों में वेंटिलेटर बेड के लिए सात घंटों तक चक्कर काटते रहे लेकिन बेड नहीं मिल सका. अपनी मासूम की जान बचाने के लिए मां एंबुलेंस के अंदर ही बच्ची को ऑक्सीजन मास्क लगाकर बैठी रही लेकिन बच्ची ने दम तोड़ दिया.
छपरौला निवासी ऑटो चालक अपनी पत्नी को लेबर पेन होने पर सुबह बादलपुर के स्वास्थ्य केंद्र लेकर गए थे. सुबह 10 बजे बेटी का जन्म हुआ. बेटी जन्म के दौरान रो नहीं रही थी और उसे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. बच्ची की हालत को गंभीर देखते हुए चिकित्सकों ने उसे जिम्स रेफर कर दिया. जब ऑटो चालक जिम्स पहुंचा लेकिन वहां पर बेड खाली नहीं थे, इसलिए चिकित्सकों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया.
आरोप है कि वहां मौजूद चिकित्सक ने उनके साथ अभद्रता भी की. ऑटो चालक एवं उसकी पत्नी इसके बाद सरकारी एंबुलेंस के जरिये बच्ची को चाइल्ड पीजीआई लेकर पहुंचे. ऑटो चालक का आरोप है कि चाइल्ड पीजीआई में 20 हजार रुपये खर्च होने की बात कही गई. भर्ती के दौरान तुरंत 7 से 8 हजार रुपये दवा और अन्य चीजों के लिए जमा करने थे, लेकिन हमारे पास भर्ती करने तक के पैसे नहीं थे. चिकित्सक बिना पैसों के बच्ची को भर्ती करने को तैयार नहीं हुए. बच्ची को दोबारा से बादलपुर के स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाने लगे, लेकिन अस्पताल ने एंबुलेंस नहीं दी. जिस एंबुलेंस में लाए थे उसके चालक ने कहा कि बहुत समय से एंबुलेंस चल रही है और अब ऑक्सीजन खत्म होने वाली है. मजबूरी में बच्ची को ऑटो से लेकर बादलपुर के स्वास्थ्य केंद्र आए, लेकिन उसकी मौत हो चुकी हो गयी.
चाइल्ड पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक डॉ आकाश राज ने बताया कि अस्पताल मरीज को भर्ती करने के लिए फीस लगती है. हालांकि, उन्हें बच्ची के मामले की जानकारी नहीं है.
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हिन्दुस्थान समाचार
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