अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में कल यानि मंगलवार से नाटो शिखर सम्मेलन की शुरूआत होने जा रही है. मेजबान अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन नाटो में सभी सहयोगी 32 देशों के प्रतिनिधियों का स्वागत करेंगे. बताया जा रहा है कि सम्मेलन के दौरान अमेरिका यूक्रेन के लिए अपना समर्थन पेश करेगा. वहीं नाटो देशों के राष्ट्रध्यक्षों भी यूक्रेन के प्रति समर्थन मजबूत कर सकते हैं. इसके अलावा यूरोपीय देशों के लिए सैन्य राजनीतिक और वित्तीय समर्थन बढ़ाने के लिए बाइडेन कई महत्वपूर्ण नई घोषणाएं करने कर सकते हैं.
अधिकारियों ने बताया कि सम्मेलन में यूक्रेन को सैन्य, राजनीतिक और वित्तीय सहायता देने के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं भी की जा सकती हैं. अधिकारियों के मुताबिक, सम्मेलन में यूरोपीय संघ और हिंद-प्रशांत साझेदारों के साथ अमेरिका के सहयोग को और मजबूत करने के लिए एक बैठक भी आयोजित की जाएगी.
बता दें 10 जुलाई को राष्ट्रपति बाइडन नाटो के 32 सहयोगियों की बैठक में सबसे नए सदस्य के रूप में स्वीडन का स्वागत करेंगे. मार्च 2024 में स्वीडन को नाटो के सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है. इसके बाद शाम में बाइडेन नाटो के सभी नेताओं को व्हाइट हाउस में डिनर के लिए आमंत्रित करेंगे. 11 जुलाई को यूरोपीयन यूनियन (ईयू) और इंडो-पैसेफिक साजेदारों ऑस्ट्रेलिया, जपान दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड के साथ नाटो एक बैठक करेगा. वहीं ये शिखर सम्मेलन नाटो की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ को भी चिह्नित करेगा, जो अब 32 देशों का एक मजबूत सैन्य गठबंधन है.
यूक्रेन और रूस के बीच पिछले ढाई साल से युद्ध जारी है. अमेरिका और सहयोगी देशों ने युद्ध रुकवाने की कोशिश की लेकिन युद्ध रुकने का नाम नही ले रहा है. अमेरिका ने यूक्रेन से सीधे तौर पर कहा है कि वो नाटो में शामिल नहीं हो. लेकिन यूक्रेन, रूस के आगे झुकने को तैयार नहीं है. रूस, यू्क्रेन को समर्थन करने वाले यूरोपीय देशों को भी चेतवानी जे चुका है. वहीं नाटो देश पूरी तरह यूक्रेन के साथ खड़े हैं और अब नाटो की बैठक में यूक्रेन के लिए सैन्य और वित्तीय समर्थन पर ऐलान किया जा सकता है.
क्या है नाटो?
नाटो यानि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन का गठन 75 साल पहले साल 1949 में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस सहित 12 देशों द्वारा किया गया था. यूरोप और उत्तरी अमेरिका में नाटो के 32 सदस्य हैं, जिनमें ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन और तुर्की शामिल हैं. साल 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद, कई पूर्वी यूरोपीय देश अल्बानिया, बुल्गारिया, हंगरी, पोलैंड, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, रोमानिया, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया इसमें शामिल हो गए. मई 2022 में फिनलैंड इसका सदस्य बना. वहीं मार्च 2024 में स्वीडन ने भी नाटो की सदस्यता ग्रहण कर ली. इस संगठन का उद्देश्य सोवियत संघ, साम्यवादी राज्यों का एक समूह जिसमें रूस भी शामिल था उसके विस्तार को रोकना था. नाटो के सदस्य इस बात पर सहमत हैं कि यदि उनमें से किसी पर हमला होता है, तो अन्य को उसकी आत्मरक्षा में सहायता करनी चाहिए. बता दें नाटो के पास अपनी कोई सेना नहीं है, लेकिन सदस्य देश संकट के समय सामूहिक सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं. वे सैन्य योजनाओं का समन्वय भी करते हैं और संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करते हैं.
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