कश्मीर में पिछले कुछ समय से आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. धारा 370 हटने के बाद घाटी में शांति का माहौल था लेकिन आतंकियों ने अब जम्मू को टारगेट करना शुरू कर दिया है. एक महीने के अंदर जम्मू क्षेत्र में पांच बड़े आतंकी हमलों ने एजेंसियों को अलर्ट कर दिया है.
ऐसे में सवाल ये की आतंकी इन मंसूबों को इतनी खामोशी से अंजाम कैसे दे रहे हैं कि इसकी भनक तक खुफिया एजेंसियों को नहीं लग पा रही है. तो आपको बता दें आतंकी पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से संपर्क साधने के लिए हाइब्रिड अल्ट्रासेट सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं. सेना को सर्च ऑपरेशन के दौरान ऐसे की अल्ट्रासेट सिस्टम बरामद हुए हैं.
दरअसल, अल्ट्रासेट हैंडसेट हाइब्रिड कम्युनिकेशन सिस्टम को एकीकृत करता है, जो सेलुलर तकनीक को विशेष रेडियो उपकरणों के साथ जोड़ता है. ये डिवाइस मैसेज के प्रसारण और प्राप्ति के लिए रेडियो वेव्स का इस्तेमाल करता है, जो GSM या CDMA जैसे पारंपरिक मोबाइल नेटवर्क से स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं. प्रत्येक अल्ट्रासेट सीमा पार स्थित एक कंट्रोल स्टेशन से जुड़ा होता है और सीधे हैंडसेट-टू-हैंडसेट कम्युनिकेशन को सपोर्ट नहीं करता है.
इसके अलावा ये हैंडसेट से कंप्रेस्ड डेटा को पाकिस्तान में एक सेंट्रल सर्वर तक पहुंचने के लिए चीनी सैटेलाइट्स का इस्तेमाल करते हैं. इसके बाद यह सर्वर मैसेज को उनके निर्दिष्ट प्राप्तकर्ताओं को भेजता है और यह हाइब्रिड तंत्र सुरक्षा एजेंसियों खुफिया जानकारी जुटाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे उपकरणों की पकड़ में नहीं आता. इसके अलावा जम्मू की पहाड़ी स्थलाकृति भी चीजों को कठिन बना रही है, जहां नवीनतम सर्विलांस और इंटरसेप्शन सिस्टम सही से काम नहीं कर पाते. यही कारण है कि आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही तकनीक बड़ी बाधा बन रही है और सेना पर घातक हमले हो रहे हैं.
सुरक्षा तंत्र के सूत्रों का कहना है कि एजेंसियां क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी समूहों के खिलाफ विश्वसनीय खुफिया जानकारी जुटाने और सफल ऑपरेशन के लिए जमीनी मानव संसाधन जुटाने की कोशिश कर रही हैं. अब तक राजौरी, उरी और सोपोर में 3 अलग-अलग आतंकवाद विरोधी अभियानों में सुरक्षाबलों द्वारा ऐसे 3 अल्ट्रासेट बरामद किए गए हैं, जिनका इस्तेमाल आतंकियों द्वारा किया गया.
कमेंट