अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर पेन्सिलवेनिया में एक चुनावी रैली के दौरान जानलेवा हमला हुआ था. 120 मीटर दूरी पर स्थित इमारत के ऊपर से शूटर ने ट्रंप को निशाना बनाते हुए गोलीबारी की लेकिन गनिमत रही कि गोली ट्रंप के कान को छूते हुए निकल गई. अगर, गोली थोड़ा सा अंदर लगती तो पूर्व राष्ट्रपति की जान भी जा सकती थी. हालांकि ट्रंप की सुरक्षा में तैनात सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स ने शूटर को मौके पर ही ढेर कर दिया. लेकिन ट्रंप की सुरक्षा में सेंध लगाने का मामला गरमाता जा रहा है. हर किसी की जुबां पर यही सवाल है कि ट्रंप की हाईटेक सिक्योरिटी के बावजूद हमलावर ने ये नापाक हरकत कैसे कर दी.
ट्रंप की सुरक्षा की जिम्मेदार सीक्रेट सर्विस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. सवाल है कि सीक्रेट सर्विस की बाज जैसी नजरों से शूटर जैसे बच गया. पूर्व राष्ट्रपति पर महज 100 मीटर की दूरी से हमला किया गया. क्या सीक्रेट सर्वेस के एजेंट्स ने रैली से पहले इलाके की तलाशी नहीं ली? खैर सुरक्षा में चूक की असली वजह जांच के बाद ही सामने आई आएगी. आइए जानते हैं सीक्रेट सर्विस अन्य जांच एजेंसियों से कैसे अलग है.
सीक्रेट सर्विस, FBI और CIA के कामों में अंतर
सीक्रेट सर्विस, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी की शाखा है. ये पैसों के अलावा हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच करती है. वहीं FBI, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस के तहत काम करने वाली संस्था है. ये पहले से जुटाई हुई खुफिया सूचनाओं को लेते हुए जांच-पड़ताल करती है. CIA का काम विदेशी हरकतों और ग्लोबल मुद्दों पर नजर रखना और उनसे जुड़ी खुफिया जानकारियां राष्ट्रपति को देना है.
1865 में हुई थी सीक्रेट सर्विस की स्थापना
साल 1865 में सीक्रेट सर्विस की स्थापना ट्रेजरी डिपार्टमेंट की शाखा के तौर पर शुरू हुई थी. शुरूआत में इसका काम डॉलर की जालसाजी को रोकना था. उस समय फेक करेंसी जमकर बनाई जा रही थी. वहीं साल 1901 में तत्कालीन राष्ट्रपति विलियम मैकिनले की न्यूयॉर्क में हत्या के बाद सीक्रेट सर्विस के कंधं पर फेक करेंसी का चलन रोकने के साथ-साथ राष्ट्रपति की सुरक्षा का भी दायित्व सौंप दिया गया.
पूर्व राष्ट्रपति और उनके परिवार को भी सिक्योरिटी
वहीं पचास के दशक में फॉर्मर प्रेसिडेंट एक्ट पास हुआ इसके अनुसार, पूर्व राष्ट्रपतियों और उनके पति या पत्नी को पूरी जिंदगी
सिक्रेट सर्विस सुरक्षा मुहैया कराती है. लेकिन अगर वो दूसरी शादी कर लें तो सीक्रेट सर्विस उसे सुरक्षा नहीं देती. कई बार ये सुरक्षा लंबे समय तक भी मिलती है, अगर राष्ट्रपति खुद किसी वजह से ये डिमांड करें, या उन्हें धमकियां मिलती दिख रही हों तो सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स उन्हें सुरक्षा मुहैया कराते हैं.
चुनाव के समय उम्मीदवारों को सुरक्षा
सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के सबसे मजबूत दावेदारों को चुनाव के समय सुरक्षा मुहैया कराते हैं. एजेंट चुनाव से 120 दिनों ही राजनेताओं को सुरक्षा देना शुरू कर देते हैं. यूनाइटेड स्टेट्स कोड के सेक्शन 3056 के तहत दावेदारों को सेफ्टी मुहैया कराई जाती है लेकिन छुटपुट पार्टियों के कैंडिडेट को सुरक्षा नहीं दी जाती. इनके बारे में कहा जाता है कि ये लोग वोट काटने के लिए ही चुनाव में खड़े होते हैं.
सीक्रेट सर्विस की ताकत
सीक्रेट सर्विस के पास वारंट इश्यू करने की ताकत होती है, इसके एजेंट बिना वारंट के भी गिरफ्तारी कर सकते हैं. एजेंसी में फायरआर्म्स रखने वाले कुल 3200 स्पेशल एजेंट्स हैं.1300 डिवीजन ऑफिसर्स और 2 हजार से ज्यादा टेक्निकल और सपोर्ट पर्सनल हैं. सीक्रेट सर्विस की डायरेक्टर किंबरली ए चीटल हैं. आम जनता और रिपब्लिकन पार्टी के कार्यकर्ता, चीटल से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं.
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