नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के अध्ययन दल की ‘टूवर्ड्स जस्टिस : एंडिंग चाइल्ड मैरेज’ ने बाल विवाह की रोकथाम में कानूनी कार्रवाइयों पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की. बुधवार को आयोजित एक समारोह में इस जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक असम में 2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. नई दिल्ली में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो और बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के संस्थापक और बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की मौजूदगी में बाल विवाह पीड़ितों द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट में कानूनी कार्रवाई बाल विवाह के खात्मे के लिए सबसे प्रभावी औजार बताया गया है. रिपोर्ट में लंबित मामलों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के अलावा बाल विवाह को बलात्कार की आपराधिक साजिश के बराबर मानते हुए इसमें सहभागी माता-पिता, अभिभावकों और पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सजा को दोगुना करने की भी सिफारिश की गई है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि आयोग अपने रुख को लेकर स्पष्ट है कि धार्मिक आधार पर बच्चों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. बाल विवाह निषेध कानून (पीसीएमए) और पॉक्सो धर्मनिरपेक्ष कानून हैं और वे किसी भी धर्म या समुदाय के रीतिरिवाजों का नियमन करने वाले कानूनों से ऊपर हैं.
बुधवार को अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के अध्ययन दल की रिपोर्ट ‘टूवर्ड्स जस्टिस : एंडिंग चाइल्ड मैरेज’ के जारी करने के अवसर पर प्रियंक कानूनगो ने कहा
कि यह रिपोर्ट बहुत ही महत्वपूर्ण समय पर आई है. हम इसे ध्यानपूर्वक देखेंगे ताकि यह समझ सकें कि इसके निष्कर्ष बाल विवाह के मुद्दे पर हमारे कामकाज और समझ में कैसे मदद कर सकते हैं. असम के एफआईआर दर्ज कर बाल विवाह रोकने के मॉडल का देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों को भी अनुकरण करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत हर मायने में वैश्विक नेता बनने की राह पर है. बच्चों पर इस महान राष्ट्र के कल का दारोमदार है और उनके भविष्य को सुरक्षित एवं संरक्षित करने की आवश्यकता है. सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.
बाल अधिकार कार्यकर्ता और बाल विवाह मुक्त भारत के संस्थापक भुवन ऋभु ने रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए कहा कि असम ने यह दिखाया है कि निवारक उपायों के तौर पर कानूनी कार्रवाइयां बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता का संदेश पहुंचाने में सबसे प्रभावी औजार हैं. आज असम में 98 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अभियोजन बाल विवाह को समाप्त करने की कुंजी है. बाल विवाह मुक्त भारत बनाने के लिए असम का यह संदेश पूरे देश में फैलना चाहिए. भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना तभी संभव है जब हम अगले दस सालों में बाल विवाह मुक्त दुनिया के निर्माण के लिए ठोस और प्रभावी कानूनी कदम उठाएं.
असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी-
2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है, जिनमें 8 लाख बच्चे हैं. नतीजे बताते हैं कि बाल विवाह के खिलाफ जारी असम सरकार के अभियान के नतीजे में राज्य के 30 प्रतिशत गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है जबकि 40 प्रतिशत उन गांवों में इसमें उल्लेखनीय कमी देखने को मिली जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था. रिपोर्ट यह भी बताती है कि इन 20 में से 12 जिलों के 90 प्रतिशत लोगों ने इस बात में भरोसा जताया है कि इस तरह के मामलों में एफआईआर और गिरफ्तारी जैसी कानूनी कार्रवाइयों से बाल विवाह की कारगर तरीके से रोकथाम की जा सकती है. रिपोर्ट बाल विवाह के खात्मे के लिए न्यायिक तंत्र द्वारा पूरे देश में फौरी कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है. रिपोर्ट के अनुसार 2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ. यानी लंबित मामलों की दर 92 प्रतिशत है. मौजूदा दर के हिसाब से इन 3,365 मामलों के निपटारे में 19 साल का समय लगेगा.
हिन्दुस्थान समाचार
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