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Opinion: मोदी सरकार 3.O का पहला बजट होगा पेश, शिक्षा को मिले वरीयता

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी. इससे एक दिन पहले निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सर्वे रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा. हर किसी की निगाहें इसी बात की और हैं कि वित्त मंत्री के पिटारे से उनके लिए क्या कुछ खास निकलता है. लेकिन शिक्षा को लेकर बजट में वरीयता मिलनी ही चाहिए. 

गिरीश्वर मिश्र by गिरीश्वर मिश्र
Jul 22, 2024, 11:24 pm IST
आज से बजट सत्र की शुरूआत

आज से बजट सत्र की शुरूआत

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मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश होने जा रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी. इससे एक दिन पहले निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सर्वे रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा. हर किसी की निगाहें इसी बात की और हैं कि वित्त मंत्री के पिटारे से उनके लिए क्या कुछ खास निकलता है. लेकिन शिक्षा को लेकर बजट में वरीयता मिलनी ही चाहिए.  शिक्षा की बहुआयामी और बहुक्षेत्रीय भूमिका से शायद ही किसी की असहमति हो. यह मानव निर्मित सबसे प्रभावी और प्राचीनतम हस्तक्षेप है जो जीवन और जगत को बदलता चला आ रहा है. समाज के अस्तित्व, संरक्षण और संवर्धन के लिए शिक्षा जैसा कोई सुनियोजित उपाय नहीं है. इसीलिए हर देश में शिक्षा में निवेश वहां की अर्थव्यवस्था का एक मुख्य मद हुआ करता है. आज ज्ञान -विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दृष्टि से विश्व में अग्रणी राष्ट्र अपनी शिक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. वे शिक्षा की गुणवत्ता को समृद्ध करने के लिए लगातार सक्रिय रहते हैं और शिक्षा की तकनीकी को उन्नत करते रहते हैं. देश, काल और परिस्थिति की बनती-बिगड़ती मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के कलेवर में बदलाव उनके लिए एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. साथ ही शिक्षा की सुविधा और प्रक्रिया पूरे समाज के लिए लगभग एक जैसी व्यवस्था स्वीकृत है. ठीक इसके विपरीत भारत में शिक्षा अनेक विसंगतियों से जूझती आ रही है. लोकहित के व्यापक लक्ष्यों के लिए समानता और समता आवश्यक है पर भारत में शिक्षा विभेदनकारी हो रही है और परिवर्तन को लेकर शंका और प्रतिरोध है. आज इन सबके चलते क्या प्रवेश क्या परीक्षा हमारी व्यवस्था चरमरा रही है. शिक्षा के क्षेत्र में ढलान के लक्षण लाभकारी नहीं हैं.

परंपरा में शिक्षा, विद्या और ज्ञान की प्राप्ति दुख से निवृत्ति के लिए आवश्यक मानी गई है. साथ ही ज्ञान का विस्तार लौकिक और पारलौकिक दोनों ही प्रकार के ज्ञान को समेटता है. इस पद्धति से ज्ञान देने के लिए गुरु-शिष्य की एक सशक्त प्रणाली विकसित हुई और गुरुकुल से लेकर विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय तक की अद्भुत संस्थाओं का विकास हुआ. उस प्रणाली से पठन-पाठन करते हुए साहित्य, आयुर्वेद, ज्योतिष, कामशास्त्र, नाट्यशास्त्र, व्याकरण, योग, न्याय, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, वेद आदि अनेक विषयों का अध्ययन-अध्यापन हो रहा था. आज उपलब्ध ग्रंथों से इन विषयों के पीछे हुई लंबी और कठिन साधना का कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता है. इस व्यवस्था की क्षमता और विलक्षण दृढ़ता का भी पता चलता है कि काल क्रम में सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन होते रहे फिर भी अपनी आंतरिक शक्ति की बदौलत सब कुछ के बावजूद यह ज्ञान परंपरा आज भी साँस ले रही है. विदेशी आक्रांताओं ने भी यहाँ की देशज शिक्षा में षड़यंत्रकारी दखल दिया. इस का सबसे जटिल और दूरगामी असर अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुआ. यह बात प्रमाणित है कि भारत का दोहन और शोषण ही साम्राज्यवादी अंग्रेजी राज का एकल उद्देश्य था. इस काम में पाश्चात्य ज्ञान को यहाँ रोप कर यहां की अपनी ज्ञान परंपरा को विस्थापित करने को उन्होंने अपना विशेष सहायक माना. धर्मांतरण की तर्ज़ पर भारतीय मानस को एक नये पश्चिमी सांचे में ढालना और देशज ज्ञान के प्रति भारतीयों के मन में वितृष्णा का भाव पैदा करना ही अंग्रेजों का उद्देश्य बन गया था.

भारतीय मूल के ज्ञान का हाशियाकरण तेजी से शुरू हुआ तथा ज्ञान और संस्कृति के अप्रतिम प्रतिमान के रूप में अंग्रेजियत छाती चली गई. भारतीयों को अशिक्षित ठहरा कर उनके लिए अंग्रेजों द्वारा शिक्षा की जगह कुशिक्षा का प्रावधान किया गया. यह कुछ इस तरह हुआ मानों अंग्रेजी शिक्षा विकल्पहीन है और विकसित होने के लिए अनिवार्य है. परिणाम यह हुआ कि भारतीय शिक्षा के समग्र, समावेशी और स्वायत्त स्वरूप विकसित करने की बात धरी रह गई. हम उसके अंशों में थोड़ा बहुत हेर फेर ला कर काम चलाते रहे. स्वतंत्र भारत में अपनाई गई शिक्षा की नीतियां , योजनाएं और उनका कार्यान्वयन प्रायः पुरानी लीक पर ही अग्रसर हुआ. स्वतंत्र होने के बाद भी पश्चिमी मॉडल के जाल से आज भी हम उबर नहीं पाये हैं. शिक्षा के बाजारीकरण और आजीविका से उसका रिश्ता एक नये समीकरण को जन्म देने लगा और देशज शिक्षा को पीछे धकेल रहा था और हम सब अचेत तो नहीं पर दिग्भ्रम में जरूर पड़े रहे. गौरतलब है कि लगभग दो सदी के अंग्रेजी प्रभाव में हमारी सभ्यता में भी वेश-भूषा, खान-पान और मनोरंजन आदि में परिवर्तन आया. इन सब का स्वाद बदलने लगा. साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों में भी परिवर्तन शुरू हुआ. पाश्चात्य दृष्टि को मानक, वैज्ञानिक और सार्वभौमिक मानते हुए कर उसे ऊपर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में आरोपित किया जाता रहा. व्यवस्था की जड़ता इतनी रही कि शिक्षा के प्रसंग में उठने वाले सभी सरोकार जैसे देश का विकास, शिक्षण की गुणवत्ता, विभिन्न सामाजिक वर्गों का समावेशन, शिक्षा जगत में स्वायत्तता की स्थापना, शैक्षिक नवाचार बातचीत के विषय तो बनते रहे किंतु वास्तविकता में अधिकतर यथास्थिति ही बनी रही. संरचनात्मक बदलाव, विषय वस्तु, छात्र पर शैक्षिक भार, और अध्यापक प्रशिक्षण आदि गंभीर विषयों को लेकर भी असमंजस ही बना रहा. आज प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक इतने पैमाने देश में चल रहे हैं और लोकतंत्र के नाम पर इतने तरह की विकृतियाँ पनप गई हैं कि उनसे पार पाना मुश्किल हो रहा है. शिक्षा में तदर्थवाद या एड हाकिज्म का बोलबाला होता गया.

आज भारतीय शिक्षा की दुनिया में बड़ी सारी विषमताओं आ गई है. शिक्षा संस्थाओं की अनेक जातियां और उपजातियां खड़ी हो गई हैं और उनमें अवसर मिलने की संभावना सबको उपलब्ध नहीं है. पूरी तरह सरकारी, अर्ध सरकारी और स्ववित्तपोषित संस्थाओं की अजीबोगरीब खिचड़ी पक रही है. सबके मानक और गुणवत्ता के स्तर भिन्न हैं. फीस, प्रवेश, पढ़ाई और परीक्षा के तौर तरीके भी बेमेल हैं. बच्चे को पढ़ाना अभिभावकों के लिए बरसों बरस चलने वाला युद्ध और संघर्ष का सबब बन चुका है. देश को वर्ष 2047 में विकसित करने का बहुप्रचारित संकल्प सभी भारतीयों के लिए बड़ा ही लुभावना लगता है. विकसित भारत की कल्पना को साकार करने के लिए किसी जादुई छड़ी से काम न चलेगा. उसके लिए योग्य, प्रशिक्षित और निपुण मानव संसाधन की ज़रूरत सबसे ज्यादा होगी. जनसंख्या वृद्धि को देखते हए शिक्षा में प्रवेश चाहने वाले लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. इस दृष्टि से योजना बनानी होगी और बजट में शिक्षा के लिए प्रावधान बढ़ाने की जरूरत है. अनेक वर्षों से शिक्षा पर देश के बजट में छह प्रतिशत खर्च करने की बात कही जा रही है परंतु वास्तविक व्यय तीन प्रतिशत भी बमुश्किल हो पाता है. कड़वा सच यह भी है कि खानापूर्ति से आगे बढ़कर कुछ करने का अवसर सिकुड़ता ही रहा है.

हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के महत्वाकांक्षी प्रस्तावों के क्रियान्वयन के लिए वित्त की आवश्यकता को स्वीकार करना होगा. फरवरी-मार्च 2024 में प्रकाशित आंकड़ों को देखे तो पता चलता है कि शिक्षा के लिए आवंटित राशि में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. फिर भी, यह राशि शिक्षा के लिए अपेक्षित निवेश सीमा 6 प्रतिशत से कम है. ऐसा लगता है कि प्राथमिकता के आधार पर अलग-अलग में मदों घट-बढ़ कर सरकार वित्तीय नियोजन का उपाय कर रही है. एक तरफ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के बजट को कम किया गया है तो दूसरी तरफ केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अधिक राशि आवंटित की गई है. ऐसे ही उन संस्थाओं को जिन्हें सरकार प्रतिष्ठित संस्थान का दर्जा देती है, उसके बजट में भी वृद्धि की है. पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में विद्यालयी शिक्षा के बजट में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि की गई. यह राशि समग्र शिक्षा अभियान को गति प्रदान करने का कार्य करेगी. यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि विद्यालय स्तर पर प्राथमिकता के आधार पर शिक्षकों का नियोजन बाधित न हो, इसे ध्यान में रखते हुए इस राशि का उपयोग होगा. इसी तरह पीएम श्री योजना को भी प्रभावी बनाना होगा. सरकार को उच्च शिक्षा में बेहतर और समावेशी अवसर पैदा करने के लिए नए क्षेत्रों में संभावनाओं को तलाशना होगा. यदि हम विद्यालय स्तर के लिए बढ़ाया गया बजट अगर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है तो निकट भविष्य में उच्च शिक्षा पर निवेश बढ़ाना अपरिहार्य हो जाएगा. सरकार को यह भी संज्ञान में लेना होगा कि यदि शिक्षा रूपी लोकवस्तु पर राज्य निवेश नहीं बढ़ाएगा तो इसका लाभ बाजार की ताकतें उठाएंगी. इसका दोहरा नुकसान होगा. पहला, शिक्षा के लिए आम आदमी का निवेश बढ़ जायेगा. दूसरा, भारत जैसे देश में समावेशन की गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी. यह भी विचारणीय है कि आधुनिक तकनीकी के माध्यम से शिक्षा के प्रसार और विस्तार के लिए भी प्राथमिकता से निवेश करना होगा. सरकार द्वारा संस्थानों से स्व वित्त पोषण की उम्मीद करना शिक्षा के लोक स्वरूप को क्षति पहुंचाएगा. विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने ले लिए समर्थ मानव पूंजी की तैयारी हेतु वित्तीय आवंटन, नियोजन और अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति के आकलन द्वारा भावी भूमिका के निर्धारण उपागम द्वारा शिक्षा को प्रभावी बनाना होगा.

(लेखक,महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति हैं.)

हिन्दुस्थान समाचार

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Tags: Budget 2024Modi Sarkar 3.O First BudgetFinance MinisterNirmala Sitaraman
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