पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में हालात बद से बदतर हो गए हैं. नौकरी में आरक्षण खत्म करने से शुरू हुआ मामूली प्रर्दशन अब इतना हिंसक हो गया है कि पूरे देश में कर्फ्यू लगाना पड़ा है. प्रदर्शनकारी जगह-जगह आगजनी कर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. वहीं सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने आज बांग्लादेशी संसद में घुसकर जमकर तोड़फोड़ की. पीएम आवास पर भी लोगों ने धाबा बोल दिया. इतना ही नहीं ढाका के बिजॉय सारणी में राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को भी प्रदोडर्शनकारियों ने बख्शा नहीं. उनकी मूर्ति के साथ भी तोड़फोड़ की.
बांग्लादेश में हालात इतने खराब हैं कि पूरे इंटरनेट पर बैन है और अब सेना ने मोर्चा संभाल लिया है. मुल्क में तख्तापलट हो गया है. इतना ही नहीं वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा है. शेख हसीना, इस्तीफा देकर भारत के हिंडन एयरबेस पर मौजूद हैं. बांग्लादेश के आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमान ने अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है.
दरअसल, प्रदर्शनकारी छात्रों ने हिंसा बढ़ाने के लिए शेख हसीना को जिम्मेदार ठहराया और उनसे सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग की. इन छात्रों ने इंटरनेट बहाली, स्कूल-कॉलेज फिर से खोलने और गिरफ्तार छात्रों को रिहा करने की सरकार से मांग की. चार अगस्त को छात्रों ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया. इस दौरान जगह-जगह हिंसा हुई. इस हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों के मारे गए.
प्रदर्शन रोकने के लिए सरकार ने पुलिस हटाकर सेना को तैनात कर दिया. लेकिन पूर्व सेना प्रमुख जनरल इकबाल करीम भुइयां ने सरकार से सेना को वापस बुलाने के लिए कहा दिया. जिसके बाद प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना के दफ्तर में आग लगा दी.
ढाका हाईकोर्ट के फैसले से शुरू विवाद
2 महीने पहले यानि 5 जून 2024 को ढाका हाईकोर्ट ने आरक्षण को लेकर एक ऐसा फैसला सुनाया जिसकी वजह से बांग्लादेश के छात्र आक्रोशित हो गए. दरअसल, हाईकोर्ट ने सरकार को पुराना कोटा सिस्टम बहाल करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि 2018 से पहले जैसे आरक्षण मिलता था, उसे फिर से उसी तरह लागू किया जाए. इससे सामान्य वर्ग के छात्र भड़क गए और सड़कों पर उतर आए. उन्होंने जमकर आगजनी और प्रदर्शन किया.
बांग्लादेश का आरक्षण सिस्टम
साल 1971 में बांग्लादेश का उदय हुआ और तभी से वहां 80 फीसदी रिजर्वेशन सिस्टम लागू है. इस सिस्टम के मुताबिक, स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को नौकरी में 30%, पिछड़े जिलों के लिए 40%, महिलाओं के लिए 10% आरक्षण दिया गया. वहीं सामान्य छात्रों के लिए सिर्फ 20% सीटें ही आरक्षित रखी गई. लेकिन 5 साल बाद 1976 में विरोध के चलते पिछड़ों का आरक्षण 40 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी कर दिया गया. वहीं सामान्य वर्ग का आरक्षण बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया. 9 सालों तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन साल 1985 में पिछड़े जिलों का आरक्षण घटाकर 10% कर दिया गया और अल्पसंख्यकों के लिए 5% कोटा जोड़ा गया. अब सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं. मसला अब स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाले आरक्षण का था. शुरूआत में स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-बेटियों को ही आरक्षण मिलता था. कुछ सालों के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को मिलने वाली सीटें खाली रहने लगीं. इसका फायदा सामान्य छात्रों को मिलता था. लेकिन 2009 में स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को भी आरक्षण मिलने लगा. इससे सामान्य छात्रों की नाराजगी बढ़ गई. 2018 में हसीना सरकार ने इस पूरे कोटा सिस्टम को खत्म कर दिया. इसी साल जून में हाईकोर्ट ने हसीना सरकार के उस फैसले को गलत ठहराया और आरक्षण फिर से लागू करने का आदेश दिया. सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी.
इसके बाद छात्र सड़कों पर उतर आए. उन्होंने सरकार से कोटा सिस्टम में सुधार करने की मांग की. छात्रों का दावा था कि कोटा सिस्टम का फायदा हसीना की पार्टी आवामी लीग के नेताओं को मिल रहा है. छात्रों ने शेख हसीना पर फेवरेटिज्म का आरोप भी लगाया.
शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को कहा ‘रजाकार’
शेख हसीना ने एक टेलीविजन इंटव्यू के दौरान विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को पाक समर्थित रजाकार कह दिया था. जिसके बाद छात्रों ने ‘रजाकार’ शब्द को ही सरकार के खिलाफ अपना हथियार बना लिया. उन्होंने कहा कि सरकार, छात्रों को सिर्फ अपनी मांग रखने के लिए ‘गद्दार’ साबित करना चाहती है. शेख हसीना के इंटरव्यू के बाद छात्रों का प्रदर्शन और हिंसक हो गया. प्रदर्शनकारी छात्रों ने उस सरकारी टीवी चैनल में आग लगा दी, जिसे PM हसीना ने इंटरव्यू दिया था.
छात्रों की मौत पर चुप्प रहीं शेख हसीना
शेख हसीना, हिंसक प्रदर्शनों के बाद हुए नुकसान को देखने के लिए 25 जुलाई को मीरपुर-10 मेट्रो स्टेशन का दौरा करने पहुंची. इस दौरान मेट्रो स्टेशन में हुई तोड़-फोड़ को देखकर शेख हसीना के आंसू निकल पड़े. शेख हसीना अपने आंसुओं को टिशू पेपर से पोछतें हुए नजर आईं. हालांकि उन्होंने प्रदर्शन में 200 से ज्यादा छात्रों की मौत पर एक बार भी कुछ नहीं कहा. इससे प्रदर्शनकारी छात्र और ज्यादा आक्रोशित हो गए. और उन्होंने पीएम शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की.
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