इलाहाबाद हाईकोर्ट से यूपी की योगी सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 69 हजार प्राइमरी टीचरों की भर्ती के मामले में फैसला सुनाते हुए पूरी मेरिट लिस्ट को ही रद्द कर दिया है. साथ ही हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि तीन महीने के भीतर नई मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश दिया है, जिसमें बेसिक शिक्षा नियमावली और आरक्षण नियमावली का पालन हो. वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश से यूपी सरकार को बड़ा झटका लगा है. नई चयन सूची तैयार होने से पिछले 4 सालों से नौकरी कर रहे हजारों शिक्षकों की नौकरी चली जाएगी.
दरअसल, यूपी सरकार ने 69000 सहायक शिक्षकों की भर्ती दिसंबर 2018 में निकाली और जनवरी 2019 में एग्जाम कराया गया. इस भर्ती में 4. 10 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए. करीब 1.40 लाख परीक्षार्थी सफल हुए. फिर मेरिट लिस्ट जारी की गई. मेरिट लिस्ट के सामने आते ही विवाद सामने आया, क्योंकि आरक्षण को लेकर जो अभ्यर्थी अपना चयन पक्का मान रहे थे, उनका नाम लिस्ट में नहीं था. छात्रों का आरोप था कि 19000 पदों पर भर्ती में विसंगति हुई है और मेरिट में आरक्षण के प्रावधानों की अनदेखी का आरोप लगा. छात्रों का कहना था कि OBC समुदाय को सिर्फ 4 फीसदी ही आरक्षण दिया गया, जबकि उसे 27 प्रतिशत कोटे का हक है. एससी-एसटी वर्ग के आऱक्षण में 21 की जगह सिर्फ 16 प्रतिशत रिजर्वेशन की बात कही गई. इसके बाद उन्होंने कई दिनों का प्रदर्शन किया और जब सरकार नहीं मानी तो इन अभ्यर्थियों ने अदालत कादरवाजा खटखटाया गया. हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने भी माना कि भर्ती में आरक्षण घोटाला हुआ है और फिर से पूरी मेरिट जारी होनी चाहिए.
वहीं यूपी सरकार का कहना है कि 70 फीसदी अभ्यर्थियों का चयन आरक्षण वर्ग से हुआ. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में कहा कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में 31, 228 ओबीसी वर्ग से चयनित हुए हैं, इसमें 12360 आरक्षित पदों और 18598 मेरिट के आधार पर चयनित हुए हैं. वहीं अभ्यर्थियों का कहना था कि सरकार अगर आरक्षण नियम का पालन करती तो 48 से 50 हजार भर्तियां आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की होती.
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