रक्षा बंधन का त्यौहार पूरे देश में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है. भाई-बहन के अटूट स्नेह को दर्शाता ये पर्व, हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. बहनें, प्यार और सुरक्षा का प्रतीक मानकर अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी बांधती हैं और भाई के स्वास्थ जीवन और सफलता की कामना करती है. वहीं भाई अपने बहनों की हमेशा रक्षा करने और हर समय उनकी मदद करने का वादा करता है साथ ही भाई बहन को उपहार भी देता है. रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर बहुत सी कहानियां और पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं. चलिए जानते हैं.
पहली कथा- ऐसा माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सतयुग में हुई थी. कहा जाता है कि मां लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर इस परंपरा का शुभारंभ किया था. राजा बलि का नाम तो आपने सुना होगा. जब राजा बलि के दानधर्म से खुश होकर और उसकी बात मानकर भगवान विष्णु, राजा बलि के साथ रहने के लिए पाताल लोक चले गए तो देवी लक्ष्मीण कर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी. राजा बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए. मैं उन्हें ही लेने आई हूं. इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया. जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे. यह चार महीने चर्तुमास के रूप में जाने जाते हैं जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक होते हैं.
दूसरी कथा- एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच में भीषण युद्ध हुआ था तो दानवों की हार होने लगी थी. तब देवराज की पत्नी शुचि ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था. तब जाकर समस्य देवताओं के प्राण बच पाए थे.
तीसरी कथा- ये कथा महाभारत से जुड़ी हुई है. युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था. वहीं अभिमन्यु युद्ध में विजयी हों, इसके लिए उनकी दादी माता कुंती ने भी उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर भेजा था. वहीं द्रौपदी ने भी उनकी लाज बचाने वाले अपने सखा और भाई भगवान कृष्ण को भी राखी बांधी थी. इस दिन सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि थी.
चौथी कथा– सिकंदर की पत्नी ने हिंदू शासक पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया. फिर एक दिन सिकंदर और हिंदू राजा पुरु के बीच युद्ध छिड़ गया. युद्ध के दौरान पुरु ने राखी के प्रति अपना स्नेह और अपनी बहन से किए वादे का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दे दिया.
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