क्षेत्रफल के हिसाब से देश का सबसे बड़ा सूबा राजस्थान… और उसका गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाता शहर अजमेर… जहां ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और पुष्कर मंदिर दोनों है… उस दिन शर्म से झुक हो गया जब उसी शहर में कुछ मुट्ठी भर दरिंदों ने 100 स्कूली छात्राओं के साथ ब्लैकमेल कर गैंगरेप किया. इनमें से 6 दरिंदों को आज अजमेर की ही एक पॉक्सो अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. साथ ही 5-5 लाख रूपये का अर्थदंड भी लगाया है.
इससे पहले अदालत ने अपने फैसले में आरोपियों नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गनी, सैयद जमीर हुसैन और इकबाल भाटी को दोषी करार दिया था. इस पूरे कांड के पीछे 18 आरोपी थे. 9 को पहले ही सजा सुनाई जा चुकी है. एक आरोपी दूसरे मामले में जेल में बंद है. वहीं एक सुसाइड कर चुका है और एक फिलहाल फरार बताया जा रहा है. बाकी बचे 6 लोगों को आजीवन सजा का फैसला सुनाया गया है.
कैसे सैक्स स्कैंडल का मालूम हुआ?
दरअसल, साल 1992 में जब राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत की सरकार थी. उस समय धार्मिक नगरी अजमेर के एक लोकल न्यूजपेपर दैनिक नवज्योति में ”बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल का शिकार” शीर्षक से खबर छपी. इस खबर ने सबको हिलाकर रख दिया. जिला प्रशासन से लेकर राजनेता, पुलिस महकमा, समाजिक- धार्मिक सेवा संगठन हर कोई खबर सुनकर हैरान था और हैरान हो भी क्यों ना. अखबार ने स्कूली छात्राओं को उनकी अश्लील तस्वीरों के जरिए ब्लैकमेल करते हुए उनका यौन शौषण किए जाने का पर्दाफाश जो किया गया था.
खुलासा हुआ कि एक गिरोह है जिसके सदस्य, अजमेर के गर्ल्स स्कूल सोफिया में पढ़ने वाली लड़कियों को फार्म हाउसों पर बुला-बुला कर रेप करता था. इन स्कूली छात्रों में आईएएस, आईपीएस और बड़े अधिकारियों की लड़कियां भी शामिल थी. लेकिन किसी को इस सैक्स स्कैंडल की भनक तक नहीं लगी. इन दरिंदों ने 17 से 20 साल की 100 से ज्यादा किशोरियों को अपनी हवस का शिकार बनाया था.
अश्लील फोटो के जरिए ब्लैकमैलिंग
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस पूरे सेक्स स्कैंडल का खेल फारूक चिश्ती नामक शख्स जो कि यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष भी था. उसके साथ यूथ कांग्रेस के ही दो नेता नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती भी थे. उन्होंने, पहले सोफिया स्कूल की एक लड़की को फंसाया और उसके साथ रेप किया. इस दौरान लड़की की कुछ अश्लील फोटो ले ली. जिसके दम पर वो उसे ब्लैकमेल करते और उसके साथ दरिंदगी करते. इतना ही नहीं दरिंदों ने उस किशोरी से स्कूल की दूसरी दोस्तों को भी लाने के लिए कहा और उनके साथ भी गैंगेरेप किया. फिर डरा- धमकाकर उनके मुंह बंद करवा दिए. इस तरह ब्लैकमेलिंग के जरिए हवस मिटाने का ये खेल चलता रहा. और 100 लड़कियों के साथ गैंग के लोगों ने दरिंदगी की.
कई मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस सैक्स कांड में कई नेता, पुलिसकर्मी और प्रशासन के अधिकारी भी शामिल थे. इन दरिंदों की दरगाह के खादिमों तक भी पहुंच थी. इस तरह से राजनैतिक और धार्मिक दोनों ही तरह की शक्तियां के दम पर वो खुलेआम बच्चियों का यौन शोषण करते थे.
हिंदू परिवारों से थी लड़कियां
लेकिन खबर अखबार में छपने के बाद और सब कुछ जानते हुए भी पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही थी. पुलिस को सांप्रदायिक दंगे होने का डर था क्योंकि रेप की शिकार लड़कियां ज्यादतर हिंदू परिवारों से थीं. रेप करने वाले ज्यादातर मुस्लिम समुदाय थे. लेकिन कहते हैं ना गुनाह छिपता नहीं है. धीरे-धीरे इस स्कैंडल के बारे में पूरे शहर को पता चल गया.
6-7 पीड़िताओं ने की थी आत्महत्या
समाज में अपनी बेइज्जती होती देख 6-7 लड़कियों ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. अब अममेर में माहौल गरमाता जा रहा था. इसी बीच दैनिक नवज्योति के एक पत्रकार संतोष गुप्ता ने इस केस पर सीरीज शुरू कर दी. उन्होंने ”छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?” शीर्षक से खबर के साथ लड़कियों की अश्लील तस्वीरें भी छाप दी ताकि छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सके. इसके बाद तो पूरे राजस्थान में जैसे कोई तूफान आ गया. इसके बाद पत्रकार ने, ”सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!” शीर्षक से तीसरी खबर प्रकाशित हुई. चौथी खबर में प्रदेश के गृहमंत्री का बयान ”उन्होंने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र” पर आर्टिकल लिखा. उनकी खबरों ने पुलिस और प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.
बस फिर क्या था. जनता सड़कों पर उतर गई. प्रदर्शन होने लगे. अजमेर बंद का ऐलान किया गया. जैसा कि इस रेप कांड में मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली युवा शामिल थे. और हिन्दू लड़कियां पीड़िता थी. इसे लेकर विश्वहिन्दू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने प्रदर्शन तेज कर दिया.
इस मामले के बारे में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत को अवगत कराया गया. उन्होंने एक्शन लेने को कह दिया. पुलिस ने गोपनीय जांच कराई तो पुलिस प्रशासन के हाथ- पांव फूल गए. केस को दबाने की पूरी कोशिश की गई. तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने वाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके इस सेक्स स्कैंडल को ही झूठा करार दे दिया. यहां तक कि उन्होंने चार लड़कियों के चरित्र पर ही सवाल खड़े कर दिए.
CID को सौंपी गई जांच
इसके बाद शांत रहने वाले राजस्थान में आंदोलन का बिगुल बज गया. अजमेर का सेक्स स्कैंडल नेशनल इश्यू बन चुका था. जिसके बाद सीएम भैरोंसिंह शेखावत ने इस केस को सीआईडी सीबी को सौंप दिया. अब सीआडी ने केस की जांच करना शुरू किया और 18 लोगों को इस सैक्स स्कैंडल का दोषी पाया. जिनमें फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती, नवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, प्रवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी, महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना और हरीश तोलानी का नाम शामिल था.
इसके बाद पीड़ित लड़कियों से आरोपियों की पहचान करवाने के बाद पुलिस ने 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. एक आरपी ने जमानत मिलने के बाद खुदकुशी कर ली. साल 1998 में अजमेर की अदालत ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई. इसी बीच मुख्य आरोपी फारूक चिश्ती ने अपना मेंटल बैलेंस खो दिया. उसकी वजह से उसकी ट्रायल पेंडिंग हो गई. कुछ समय बाद, कोर्ट ने चार आरोपियों की सजा कम कर दी. उन्हें उम्रकैद की बजाए दस साल जेल की सजा दी गई. इसके बाद राजस्थान सरकार नें सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दे डाली. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. अब पॉक्सो कोर्ट ने 6 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है.
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