प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी मौलाना को जमानत देने से इंकार कर दिया और कहा कि पीड़िता को ’इस्लाम’ स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया और निकाह कराया गया.
न्यायालय ने कहा कि धर्म परिवर्तन होने के नाते मौलाना भी उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के तहत समान रूप से उत्तरदायी है. कोर्ट मौलाना मोहम्मद शाने आलम की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें मुकदमे के लम्बित रहने के दौरान उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) के तहत दर्ज मामले में जमानत की मांग की गई थी. मामला थाना अंकुर विहार, गाजियाबाद का है.
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि, “ पीड़िता ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे ’इस्लाम’ स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था और निकाह कराया गया था. याची मौलाना (धर्म परिवर्तक) होने के नाते अधिनियम, 2021 के तहत समान रूप से उत्तरदायी है.“
वर्तमान मामले में मौलाना का कहना था कि वह मौलाना-धार्मिक पुजारी है और उसने केवल आरोपी अमान के साथ पीड़िता का निकाह कराया था और उसने पीड़िता को जबरन “इस्लाम“ में परिवर्तित नहीं किया था. उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 2 महीने से अधिक समय से जेल में बंद है. उसका कहना था कि निकाहनामा पर उसकी मुहर और हस्ताक्षर हैं और इसके अलावा, उसकी कोई भूमिका नहीं है.
न्यायालय ने कहा, “हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां भोले-भाले लोगों को गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, दबाव, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया है.“
कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि, “धर्म परिवर्तक“ का तात्पर्य किसी भी धर्म के उस व्यक्ति से है जो एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन कराता है, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए, जैसे फादर, कर्मकांडी, मौलवी या मुल्ला आदि.“
न्यायालय ने कहा कि याची जो अधिनियम, 2021 की धारा 2(प) में परिभाषित “धर्म परिवर्तक“ की परिभाषा के अंतर्गत आता है, उसने अधिनियम, 2021 की धारा 8 में दिए गए जिला मजिस्ट्रेट से आवश्यक घोषणा प्राप्त किए बिना ही आरोपी अमन के साथ मुखबिर का निकाह सम्पन्न कराया. न्यायालय ने जमानत अर्जी खारिज कर दी.
हिन्दुस्थान समाचार
कमेंट