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Opinion: कानून का खौफ होता तो नहीं होता कोलकाता कांड

साल 2012 में दिल्ली के निर्भयाकांड के यौन हिंसा पर सख्त कानून बनाए गए और बलात्कार पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया. इसके बावजूद यौन अपराध खत्म नहीं हुए . दुष्कर्म की प्रकृति अधिक आक्रामक, अधिक क्रूर हो गई है और एक हद तक सतर्कतावाद और गैंगस्टरवाद का एक रूप बन गई है.

प्रियंका सौरभ by प्रियंका सौरभ
Aug 23, 2024, 09:52 am IST
Kolkata Doctor Rape Murder Case

Kolkata Doctor Rape Murder Case

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साल 2012 में दिल्ली के निर्भयाकांड के यौन हिंसा पर सख्त कानून बनाए गए और बलात्कार पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया. इसके बावजूद यौन अपराध खत्म नहीं हुए . दुष्कर्म की प्रकृति अधिक आक्रामक, अधिक क्रूर हो गई है और एक हद तक सतर्कतावाद और गैंगस्टरवाद का एक रूप बन गई है. भारत में लगभग हर दिन क्रूर बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज होती है.हाल के वर्षों में भयावह यौन हमलों की रिपोर्ट में वृद्धि हुई है. समाजशात्री कहते हैं कि यह नया भारत है जहां कानून का शासन पूरी तरह से टूट गया है, जिसका सीधा असर महिलाओं पर पड़ रहा है, क्योंकि यह पितृसत्ता के बेधड़क अतिक्रमणों का दौर भी है. पीड़ितों के इर्द-गिर्द प्रचलित कलंक और पुलिस जांच में विश्वास की कमी के कारण बड़ी संख्या में बलात्कार की रिपोर्ट नहीं की जाती है. भारत की पंगु पड़ी आपराधिक न्याय प्रणाली में मामले सालों तक अटके रहने के कारण दोष सिद्धि दुर्लभ बनी हुई है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में औसतन प्रतिदिन लगभग 90 बलात्कार की घटनाएं होती हैं. वर्ष 2022 में पुलिस ने एक युवती के साथ कथित क्रूर सामूहिक बलात्कार और यातना के बाद 11 लोगों को गिरफ्तार किया. इस युवती को दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया था. 2022 में ही भारत में एक पुलिस अधिकारी को भी गिरफ्तार किया गया था. उन पर एक 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप है, जो अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार की रिपोर्ट करने के लिए उनके पुलिस स्टेशन गई थी. मार्च में, अपने पति के साथ मोटरसाइकिल यात्रा पर गई एक स्पेनिश पर्यटक के सामूहिक बलात्कार के बाद कई भारतीय पुरुषों को गिरफ्तार किया गया था. 2021 में मुंबई में एक 34 वर्षीय महिला की बलात्कार और क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किए जाने के बाद मृत्यु हो गई. निर्भयाकांड के बाद कोलकाता के आरजी कर रेप और हत्याकांड ने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा अब तो आम हो गई है. उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया पर ट्रोल, जो हर मुखर महिला या उसकी बेटी को चुप कराना, गाली देना या बलात्कार करना चाहते हैं, उन्हें जवाबदेह नहीं बनाया जाता है. उल्लंघनकर्ताओं के पास बढ़ती हुई दंडमुक्ति और न्यायिक साधन भी राजनीतिक आकाओं के सामने आत्मसमर्पण करने के साथ, बलात्कार से लड़ना कठिन हो गया है. देश में महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में वृद्धि, साथ ही देश की कठोर जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर रहने वालों के साथ व्यवहार, ऊपर से नीचे तक दंडमुक्ति की संस्कृति के परिणामस्वरूप एक उत्साहजनक कारक के रूप में कार्य करता है. यह महिलाओं के अधिक सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा करने और लगभग सभी क्षेत्रों में पुरुष आधिपत्य को चुनौती देने के खिलाफ एक प्रतिक्रिया है. अधिकांश पुरुष अभिभूत हैं और नहीं जानते कि अपने आहत अहंकार को कैसे संभालें और व्यापक बेरोजगारी ने समग्र रूप से निराशा पैदा की है. भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में मामलों के वर्षों तक अटके रहने के साथ दोषसिद्धि का निम्न स्तर भी ऐसे क्रूर अपराधों का जन्मदाता है. पुरुष अकसर यौन हिंसा का इस्तेमाल दमनकारी लिंग और जाति पदानुक्रम को मजबूत करने के लिए एक हथियार के रूप में करते हैं.

बलात्कार की घटनाओं की संख्या में वृद्धि और मुखालफत के लिए अधिक संख्या में महिलाओं के आगे आने के बावजूद देश में सजा की दर कम बनी हुई है. कई मामलों में, सबूतों की कमी को अकसर कम सजा दर या उच्च न्यायालयों द्वारा सजा को पलटने का कारण बताया जाता है. कुछ साल पहले स्पेनिश पर्यटक के साथ जो हुआ वह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और देश में अराजकता के बारे में बहुत कुछ बताता है. हम जानते हैं कि यौन अपराधों की बहुत कम रिपोर्टिंग होती है और इसे बदलना होगा. अगर यह बलात्कार संस्कृति नहीं है, जिसे समाज के समझदार पुरुषों और महिलाओं, संस्थानों और सरकारी अंगों द्वारा समर्थित और बरकरार रखा जाता है, तो यह क्या है? आप सभी कानून, सभी तेज अदालतें, यहां तक कि मौत की सजा भी ला सकते हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदल सकता जब तक कि एक समान मानसिकता में बदलाव न हो जो लड़कियों और महिलाओं के बारे में सोचने का एक नया तरीका शुरू करे. हमने बलात्कार संस्कृति को खत्म करने का काम भी शुरू नहीं किया है. हमने पितृसत्ता को जलाने वाली माचिस भी नहीं जलाई है.

दिसंबर 2012 में सरकार ने आखिरकार हमारी बात जरूर सुनी थी. एक पल के लिए ऐसा लगा था कि हम आगे बढ़ रहे हैं. इसके बजाय आज हम रुक गए हैं या इससे भी बदतर, पीछे चले गए हैं. महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर, अब हमारे पास ऐसे कानून हैं जो वस्तुतः अंतरधार्मिक विवाहों पर प्रतिबंध लगाते हैं और अदालतें उन जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार करती हैं जो अपने जीवन के लिए डरते हैं. स्वतंत्र भारत में आधुनिक समान नागरिक संहिता के लिए पहला नमूना लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण की बात करता है. हर स्तर पर महिलाओं की स्वायत्तता और स्वतंत्र एजेंसी को छीना जा रहा है. ऐसा नहीं है कि घर हमेशा एक सुरक्षित जगह है. डरावनी कहानियों में अनाचार और घरेलू हिंसा शामिल हैं. भारत में, जहां अंतरंग साथी द्वारा हिंसा की दूसरी सबसे बड़ी व्यापकता है, 46% महिलाएं कुछ परिस्थितियों में इसे स्वीकार्य मानती हैं – ससुराल वालों का अनादर करना या बिना अनुमति के घर से बाहर जाना. जब तक हम उन विचारों को नहीं बदल सकते, तब तक हम भारत की प्रतिष्ठा के नुकसान पर विलाप करते रहेंगे.

(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

हिन्दुस्थान समाचार

Tags: Kolkata Trainee Doctor Rape Murder CaseA G Kar Medical College HospitalKolkata NirbhayaA G Kar Doctor Rape Murder Case
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