भगवान श्रीकृष्ण का जीवन दर्शन धर्म, जाति, व्यक्ति एवं लिंग से बहुत ऊपर है. लोक मान्यता है कि गुणातीत देवकीनंदन श्रीकृष्ण का अवतरण जन्माष्टमी के दिन हुआ. यह पावन संयोग है कि विष्णु जी के अष्टम अवतार श्रीकृष्ण माता देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में अष्टमी तिथि को अवतरित हुए. जन्माष्टमी के पावन अवसर की प्रतीक्षा कर रहे भारत सहित दुनिया के कई देशों में बसे कृष्ण भक्तों में आनन्द और हर्षोल्लास है. द्वापर युग में आसुरी शक्तियों के अधर्म, अन्याय, पापाचार, अनाचार का प्रभाव चरम पर था. धर्म की रक्षा और अधर्मियों का नाश करने स्वयं भगवान को श्रीकृष्ण स्वरूप में पृथ्वी पर आना पड़ा. उन्होंने समस्त संसार को पाप, अधर्म, अत्याचार से मुक्त कर धर्म की संस्थापना की.
नन्हें कान्हा से योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण बनने की जीवन यात्रा में घनश्याम श्रीकृष्ण ने मनुष्य की भांति जीवन की अनेक बाधाएं, संघर्ष, दुःख, कष्ट, अपमान तथा पीडाओं को सह कर संसार को यह शिक्षा दी कि मनुष्य फल की इच्छा छोड़कर केवल अच्छे कर्म कर स्वयं पर विश्वास करें. योगेश्वर बनने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनके गुरु सांदीपनि जी का है, जिन्होंने प्रिय शिष्य कृष्ण को धर्म, भक्ति, ज्ञान, योग, वेद, शास्त्र, संगीत, शस्त्र, पुराणों, गुरु सेवा एवं गुरु दक्षिणा आदि विषयों की दुर्लभ शिक्षाएं प्रदान की.
गुरु दक्षिणा में भगवान श्रीकृष्ण ने महर्षि सांदीपनि एवं गुरूमाता को उनका खोया हुआ पुत्र पुण्डरक वापस लाकर दिया. हम सब परम सौभाग्यशाली हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा के साथ उनके योगेश्वर बनने की गाथा मध्यप्रदेश में लिखी गई.
कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भ्राता बलराम के साथ मथुरा से शिक्षा प्राप्ति के लिए महर्षि सांदीपनि की शरण में उज्जैन आये थे. नारायण (उज्जैन) में उनकी मित्रता सुदामा से हुई. श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता की मिसाल युग-युगांतर से है. भगवान श्रीकृष्ण से मित्रता की संसार को जो शिक्षा मिली, वह अनुकरणीय है. भगवान श्रीकृष्ण ने जिस जगह शिक्षा प्राप्त की थी, उनके गुरु सांदीपनि जी का आश्रम आज भी उज्जैन में विद्यमान है, जो भगवान श्रीकृष्ण के योगेश्वर बनने का साक्षात प्रमाण है. भगवान श्रीकृष्ण, सांदीपनि जी के गुरुकुल में 64 दिन रहे. इन 64 दिनों में 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया. चार दिन में 4 वेद, 18 दिन में 18 पुराण, 6 दिन में 6 शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया.
अपनी विनम्रमा और श्रद्धा के कारण गुरु कृपा से भगवान श्रीकृष्ण को इन्दौर के समीप जानापाव में परशुराम जी से सुदर्शन चक्र रूपी अमोघ शस्त्र की प्राप्ति हुई. धार के पास अमझेरा में वीरता के बल पर रूक्मणी हरण में रूक्मी को हराया. बदनावर का ग्राम कोद वे पवित्र स्थान हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण की पौराणिक जागृत लीलास्थली हैं. मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मध्यप्रदेश सरकार ने राम वन-पथ-गमन की तरह अब “श्रीकृष्ण पाथेय” निर्माण का संकल्प लिया है. इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश में जहां-जहां भगवान श्रीकृष्ण के चरण पड़े थे, उन्हें तीर्थ क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा. इससे पूरी दुनिया को यह पता चलेगा कि भगवान श्रीकृष्ण का अटूट सम्बंध गोकुल, मथुरा, नंदगांव, वृंदावन और द्वारिका से ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश से भी है. विश्व के लोग यहां आकर इन तीर्थों का दर्शन कर पुण्य लाभ ले सकेंगे.
श्रीकृष्ण ने नारी सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी. जनश्रुति है श्रीकृष्ण ने दैत्य नरकासुर का वध कर बन्दी बनाई गईं 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराया था. साथ ही कुटिल कौरवों के चीरहरण से द्रौपदी की रक्षा भी की. गोपाल श्रीकृष्ण गौ-माता को बहुत मानते थे. गौ-वंश उन्हें प्राणों से प्रिय रहा. गायों की रक्षा के प्रति हमारी सरकार भी प्रतिबद्ध है. इस दिशा में गौ-शालाओं के विकास के लिये विशेष प्रयास भी किये जा रहे हैं.
श्रीकृष्ण का आदर्श जीवन हर युग मे प्रासंगिक तथा प्रेरणादायी है. प्राणी उनके द्वारा बताए गए मार्ग का अनुकरण कर महान बन सकता है. वर्तमान पीढ़ी को चाहिए कि वह भौतिकता की चमक-दमक में अपने पौराणिक इतिहास को विस्मृत न होने दे.
आइए, हम सब प्रदेशवासी ऐसे महान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव-जन्माष्टमी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाए – जय श्री कृष्ण.
(लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)
हिन्दुस्थान समाचार
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