कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार से अनिवार्य तकनीकी रिपोर्ट मिलने के बाद राज्यपाल ने “अपराजिता बिल” को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया है. हालांकि, राजभवन ने विधानसभा सचिवालय की ओर से बहस का पाठ और उसका अनुवाद उपलब्ध न कराने पर नाराजगी जताई है, जो नियमों के तहत आवश्यक है.
ममता सरकार को संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करे- राज्यपाल
इससे पहले, बिल को लेकर तीखी बहसें, परस्पर आरोप-प्रत्यारोप, राजनीतिक धमकियों और अल्टीमेटम के बीच, मुख्यमंत्री ने चेतावनी दी थी कि अगर राज्यपाल बिल पर अपनी मंजूरी नहीं देते हैं तो वे राजभवन के बाहर धरना देंगी. राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस धमकी भरे रुख पर नाराजगी जाहिर की और सरकार को कानूनी और संवैधानिक मर्यादाओं का पालन न करने पर फटकार लगाई.
आज सुबह मुख्य सचिव ने राज्यपाल से मुलाकात की और दोपहर में राज्य सरकार ने अनिवार्य तकनीकी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी. इसके बाद राज्यपाल ने इस बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रख दिया. अब पश्चिम बंगाल का यह बिल महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के अन्य लंबित बिलों के साथ शामिल हो गया है, जो राष्ट्रपति की मंजूरी के इंतजार में हैं.
बिल में कई खामियां- राज्यपाल
राज्यपाल ने जल्दबाजी में पारित इस बिल में हुई गलतियों और कमियों की ओर इशारा करते हुए सरकार को चेतावनी दी, “जल्दबाजी में कदम न उठाएं और बाद में पछताएं.” उन्होंने कहा कि लोग बिल के लागू होने तक इंतजार नहीं कर सकते. उन्हें न्याय चाहिए और उन्हें मौजूदा कानून के दायरे में न्याय मिलना चाहिए. सरकार को प्रभावी ढंग से कार्य करना चाहिए और उस मां के आंसू पोंछने चाहिए जिसने अपनी बेटी को खो दिया है.
राज्यपाल ने बिल में मौजूद खामियों और कमियों को उजागर करते हुए सरकार को सलाह दी कि वह जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय अपना होमवर्क ठीक से करे.
हिन्दुस्थान समाचार
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