हिंदी फिल्मों के सदाबहार हीरो धर्मेंद्र ने बिना किसी सिफारिश के फिल्मों में तो अपना स्थान बनाया ही बल्कि आगे चलकर अपनी साफ-सुथरी छवि और दरियादिली से लाखों प्रशंसकों का दिल जीता. सफल हीरो बन जाने के बाद भी पंजाब का सीधा-सादा किसान उनके व्यक्तित्व से अलग नहीं हुआ. अपने कार्य जीवन और फिल्मों की शुरुआत के संबंध में उन्होंने एक संस्मरण अपने समय की प्रख्यात और लोकप्रिय हिंदी फिल्म पत्रिका माधुरी में लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था कि अपनी पहली नौकरी के इंटरव्यू के लिए वह अपने बाबूजी के साथ सूट और टाई लगाकर गए थे. वह एक ट्यूबवैल कंपनी में नौकरी के सिलसिले में था. लेकिन कंपनी के अधिकारियों ने कहा कि उनके पास मजदूरी का काम है और उसमें 80 रुपए से ज्यादा नहीं दिए जा सकते. यह सुनकर उनके बाबूजी को बहुत बड़ा सदमा लगा. उन्हें भी यह सुनकर बुरा लगा. उन्हें लगा कि वह अपने आर्यसमाजी और अध्यापक पिता की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे हैं. उनके आर्यसमाजी पिता जो जीवन भर दूसरे लोगों को सुधारते रहे. उनको यह दुख था कि वह अपने बेटे को सुधार नहीं पाए और वह दो कौड़ी का निकला. हालांकि धर्मेंद्र हाईस्कूल तक तो पक्के आर्यसमाजी की तरह सुबह-शाम प्रार्थना करते थे और आर्य समाज मंदिर में झाड़ू-बुहारी तक बड़ी श्रद्धा से करके आते थे. लेकिन फिर पढ़ने के लिए बाहर जाने पर उनके ऊपर फिल्मों का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह इंटर और बीए में कई बार फेल हुए. शायद यही कारण था कि अब उन्हें जो काम मिल रहा था वह मजदूरी का काम मिल रहा था. लेकिन यहां धर्मेंद्र ने अपना दूसरा रूप दिखाया. उन्होंने तुरंत कोट-टाई उतार दी और मजदूरी का काम करने के लिए अपनी सहमति दे दी. उनके बाबूजी की आंखों में एक पल को जो अनोखी चमक आई उसे देखकर वह धन्य हो गए और खुशी-खुशी काम पर चले गए. एक-दो दिन के बाद ही वह खुद ट्यूबवैल लगाने लगे. उनके अधिकारियों ने खुश होकर कहा कि अब तुम मजदूरों का काम नहीं करोगे. तुम आज से फिटिंग करोगे और सुपरवाइजर का काम करोगे. तुम्हारी तनख्वाह होगी 300 रुपए. इसके बाद वे फिर कोट-टाई पहनकर अपने बाबूजी के पास गए और उनके पैर छूकर बताया कि अब उन्हें 300 रुपए महीना मिलेगा तो वे हैरत से देखते रहे कि कौन-सा जादू जानता है उनका लड़का जो तीन दिन में 300 की तरक्की ले आया? उस पल उनके चेहरे का संतोष भी उन्हें नहीं भूलता. वह उनकी जिंदगी की पहली तरक्की थी और शायद जीवन की सबसे बड़ी तरक्की.
फिर उनके बाबूजी को लगा कि इस नौकरी में कहीं उन्हें विदेश न जाना पड़े इसलिए उन्होंने उनकी जल्दी से शादी कर दी. उन्हें डर था कि कहीं विदेश में जाकर उनका आर्यसमाजी बेटा रंग-ढंग न बदल ले. धर्मेंद्र भी अपने जीवन में स्थिर होना चाह रहे थे कि तभी फिल्मफेयर-यूनाइटेड प्रोड्यूसर के टैलेंट हंट का विज्ञापन देखकर एक स्टूडियो में अपने फोटो खिंचवा कर वहां भेज दिए. मां-बाप को बुरा लगा लेकिन वे साक्षात्कार के लिए बुलाए गए और उन्हें चुन लिया गया. यह अलग बात है कि जिन लोगों ने चुना, उन्होंने कोई काम नहीं दिया. वह निराश होने लगे थे और वापस पंजाब लौट जाने के बारे में सोचने लगे थे कि तभी उन्हें फिल्म `दिल भी तेरा हम भी तेरे’ के लिए बुलाया गया और वहां काम मिल गया. इस बीच एक फिल्म के तीन भागीदार निर्माताओं ने उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया. सबने कहा कि लड़का तो अच्छा है, हीरा है लाखों का है और जब साइनिंग अमाउंट 1001 रुपए देने की बारी आई तो तीनों की जेब से मात्र 51 रुपए निकले. इस तरह वह मात्र 51 रुपए में हीरो चुन लिए गए. तभी उन्हें विमल राय का बुलावा आया. वह उनसे जाकर मिले. विमल दा बहुत कम बोलते थे और धर्मेंद्र की जगह उन्हें धर्मेंद्रु कहते थे, उस दिन वह कुछ न बोले. आते वक्त बस एक बात बोले, जो काम किया है उसकी रील दिखाओ. अब धर्मेंद्र दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन जैसे नए अभिनेता की रील लेबोरेटरी से देने को कोई भी तैयार नहीं होगा. तब उन्होंने लेबोरेटरी में जाकर उसके एडिटर को मक्खन लगाया और कुछ रील चुपचाप ले जाकर विमल दा को दिखाईं. उन्होंने रील देखीं लेकिन कुछ बोला नहीं. फिर एक दिन बुलावा आया. वे मिले, वैसे ही चुपचाप, कहा बाहर बैठो. धर्मेंद्र दिनभर बाहर बैठे रहे. शाम को हताश होकर लौट ही रहे थे कि विमल दा नीचे उतरे और बोले तुमको हीरो लिया है, साइनिंग 1001 रुपए का ऊपर से चेक ले लो. क्रॉस चेक लेकर उड़े-उड़े जब घर पहुंचे तो मालूम हुआ इसको भुनाने के लिए बैंक में खाता खोलना होगा. खैर इस तरह वह `बंदिनी’ के हीरो बने और सफलता के शिखर की ओर बढ़ चले.
इसके बाद उन्होंने एक छोटी फिएट गाड़ी ले ली जिसका रंग हरा और नंबर था एमआरएक्स 9144. गाड़ी लेने की सूचना उन्होंने सबसे पहले विमल दा को भाग कर दी. वे कुछ नहीं बोले और बाहर चले गए. उनका दिल दुखा. लगा कि पहली गाड़ी लेने के उनके सुख को साझा करने वाला भी कोई नहीं. घंटों उदास घूमते रहे तभी किसी ने उनके कंधे पर हाथ रखा, वह विमल दा थे, बोले तुम कुछ कह रहे थे धर्मेंद्रु ?
झूठ, तुम कह रहे थे गाड़ी ली है? कहां है? दिखाओ. जब धर्मेंद्र ने उन्हें गाड़ी दिखाई तो उन्होंने इतना उत्साह दिखाया जैसे पहली बार गाड़ी देखी हो. यह तो धर्मेंद्र को बाद में मालूम हुआ कि इन घंटों में वे कितने बड़े मानसिक तनाव में गुजर कर आए थे. तब तो एक बार फिर विमल दा के सामने उनका सिर श्रद्धा से झुक गया.
हिन्दुस्थान समाचार
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